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    एआई संग दिमाग भी चलाएं, वरना भूल जाएंगे दिमाग का इस्तेमाल... चिंतित हैं विशेषज्ञ

    By AMIT KUMAR TIWARIEdited By: Praveen Vashishtha
    Updated: Tue, 02 Dec 2025 03:51 PM (IST)

    विशेषज्ञों का कहना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का उपयोग करते समय दिमाग का इस्तेमाल करना भी ज़रूरी है। केवल एआई पर निर्भर रहने से सोचने और सीखने की क्षमता कम हो सकती है। एआई को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करें, लेकिन अपने दिमाग का उपयोग करना न भूलें। संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

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    चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के अटल सभागार में गणित विभाग की ओर से आयोजित इंटरनेशनल सेमिनार मे मौजूद प्रोफेसर छात्र-छात्राएं। जागरण

    जागरण संवाददाता, मेरठ। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के गणित विभाग की ओर से ‘आर्टीफिशियल इंटेलिजेंस फ्रंटियर्स : इनोवेशन इन फजी आप्टीमाइजेशन, साइबर सिक्योरिटी एंड सिमुलेशन’ यानी ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता फ्रंटियर्स फजी आप्टिमाइजेशन, साइबर सुरक्षा और सिमुलेशन में नवाचार’ विषय पर पांच दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ सोमवार को परिसर के अटल सभागार में हुआ। देश-विदेश के ख्याति प्राप्त विशेषज्ञों की मौजूदगी में हुए उद्घाटन सत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर गहन विमर्श हुआ।

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    नई दिल्ली स्थित इंटर यूनिवर्सिटी एक्सिलरेटर सेंटर के निदेशक प्रो.अविनाश चंद्र पांडेय ने कहा कि एआई भविष्य को गहराई से प्रभावित करने जा रहा है।
    उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि एआई एक बड़ा अवसर भी है और खतरा भी। इसे अपनाने का तरीका ही हमारी दिशा तय करेगा। प्रोफेसर अविनाश पांडेय ने कहा तकनीक पर निर्भरता इतनी बढ़ गई है कि मानव मस्तिष्क की क्षमता पर असर पड़ रहा है।

    कैलकुलेटर, मोबाइल, लैपटॉप आदि का हमारे दिमाग पर ऐसा असर पड़ा है जो काम हम आसानी से करते थे, उसे भी करना बंद कर दिया। इसी तरह यदि एआई पर निर्भर होकर अपना दिमाग चलाना बंद कर दिया तो हम दिमाग का इस्तेमाल करना भी भूल जाएंगे।

    प्रोफेसर अविनाश पांडेय ने चेताया कि एआई वही बताता है, जिसे आप पहले डाटा के रूप में देते हैं, जबकि समय के साथ पुराने सवाल के जवाब बदलते रहते हैं। बदले जवाब को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में शिक्षक की भूमिका होगी। कहा कि बदलते समय में अगर हम एआई का उपयोग करना नहीं सीखेंगे, तो एआई हमें नियंत्रित करना शुरू कर देगा। उन्होंने कहा शिक्षण में एआई का इस्तेमाल हमें जेन-जी की जरूरतों के अनुरूप पाठ्यक्रम तैयार करना होगा तभी शिक्षक के तौर पर हमारी उपयोगिता बनी रह सकेगी।

    बच्चों में बढ़ते गैजेट एडिक्शन, डिस्ट्रैक्शन व स्लीप डिसरप्शन को उन्होंने बड़ी चुनौती बताते हुए कहा कि तकनीक का संतुलित उपयोग ही समाधान है। बताया कि हम मोबाइल में पासवर्ड तो लगा लेते हैं लेकिन फोन हमारी हर बात सुनता है, हर गतिविधि देखता है, हर पासवर्ड उसको पता है जो उसके पास से कही और जाता है। बताया कि ऐसे में क्वांटम कंप्यूटिंग डेटा सुरक्षा का आधार बनेगी, जिसपर भारत में भी कम चल रहा है।

    प्रोफेसर पांडेय ने 1968 की फिल्म 'ए स्पेस ओडिसी' का उदाहरण देते हुए कहा कि मानव ने जिस एआई की कल्पना दशकों पहले की थी, वह अभी भी पूर्ण रूप से साकार नहीं हो पाई है। उसमें बोलते हुए मनुष्य के होंठों को पढ़कर कंप्यूटर ने टेक्स्ट संदेश तैयार किया था।

    सीसीएसयू के डीन एकेडमिक्स प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि तकनीक ने समाज को बदला है पर सावधानी भी जरूरी है। कहा कि मानव इतिहास में जब-जब नई तकनीकें आईं, समाज में बड़े परिवर्तन हुए। उन्होंने साइबर सुरक्षा के खतरों और सामाजिक प्रभावों पर खास जोर दिया। तकनीक समाज को नई दिशा देती है, पर इसका अंधेरा पक्ष हमें सावधान रहने की याद भी दिलाता है।

    कहा कि भारत जैसे सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाले देश में एआई कार्यों पर लोगों की निर्भरता कम करेगी, तो हमें यह भी सोचना होगा कि देशवासियों को एम्प्लॉयमेंट सिक्योरिटी कैसे मुहैया कराई जाए।

    सृजन संचार के निदेशक शैलेंद्र जायसवाल ने कहा कि तकनीक इतनी तेजी से बदल रही है कि आने वाले दस साल का अनुमान लगाना भी मुश्किल है। इसीलिए अब फोरकास्ट के स्थान पर नियरकास्ट की बात हो रही है। उन्होंने कहा एआई आने के बाद लगातार नई टेक्नोलॉजी सामने आ रही हैं। विश्व की लगभग सभी बड़ी कंपनियां एआई आधारित भविष्य पर काम कर रही हैं। आगे फिजिकल वर्ल्ड में रोबोटिक्स का वर्चस्व बढ़ेगा।

    कार्यशाला के चेयरमैन प्रो. मुकेश शर्मा ने बताया कि वर्कशॉप में साइबर सुरक्षा, फज़ी ऑप्टिमाइजेशन, कंप्यूटर विज़न, इमेज प्रोसेसिंग व सिमुलेशन पर विस्तृत चर्चा होगी।

    एकेडेमिया-इंडस्ट्री इंटरफेस को मजबूत बनाना इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य है।प्रतिभागियों के लिए कई हैंड्स-ऑन सत्र भी आयोजित किए जाएंगे। गणित विभाग की प्रो. जयमाला ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि कार्यशाला की थीम समाज और देश के भविष्य को दिशा देने वाली है।

    शोध निदेशक प्रो. बीरपाल सिंह ने विश्वविद्यालय की शोध उपलब्धियों के बारे में बताया। कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला के कहा कि विज्ञान, कला, कॉमर्स और सभी संकायों के छात्र-छात्राओं को एक-दूसरे के क्षेत्रों में रुचि लेनी चाहिए। उन्होंने कहा, दिमाग की शक्ति सबसे ऊपर है… तकनीक तभी उपयोगी है जब हम उसे समझदारी से इस्तेमाल करें।