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Vindhyachal Dham: विंध्यधाम में साढ़े तीन घंटे तक दर्शन-पूजन पर रही रोक, मंदिर के कपाट बंद करके हुआ ये खास काम

Vindhyachal Dham विंध्याचल स्थित मां विंध्यवासिनी धाम परिसर की बुधवार को परंपरानुसार भक्तों व तीर्थ पुरोहितों ने गंगा जल से धुलाई की। सुबह 10 बजे से दोपहर दो बजे तक विधिवत धुलाई की गई। चिलचिलाती धूप की परवाह किए बगैर भक्तों ने बुधवार को मिट्टी और पीतल के मटके में पक्का घाट से गंगा जल लाकर मंदिर परिसर की विधिवत धुलाई की।

By Amit Kumar Tiwari Edited By: Swati Singh Updated: Wed, 24 Apr 2024 09:26 PM (IST)
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मीरजापुर : विंध्यधाम में मंदिर की ढ़ुलाई के लिए कतारबद्ध श्रद्धालु। जागरण

जागरण संवाददाता, मीरजापुर। विंध्याचल स्थित मां विंध्यवासिनी धाम परिसर की बुधवार को परंपरानुसार भक्तों व तीर्थ पुरोहितों ने गंगा जल से धुलाई की। सुबह 10 बजे से दोपहर दो बजे तक विधिवत धुलाई की गई। गंगा में स्नान ध्यान करने के बाद भक्ति भाव से सराबोर श्रद्धालुओं ने घड़े में गंगा जल भरने के बाद कंधे पर रखकर मंदिर की तरफ तेजी से बढ़े जा रहे थे।

विंध्याचल का कोना-कोना गंगा जल से धोया गया।विंध्याचल में चिलचिलाती धूप की परवाह किए बगैर भक्तों ने बुधवार को मिट्टी और पीतल के मटके में पक्का घाट से गंगा जल लाकर मंदिर परिसर की विधिवत धुलाई की। इस दौरान परिसर मां विंध्यवासिनी के जयकारे से गुंजायमान हो उठा। दर्शन पूजन के लिए मंदिर का कपाट बंद रहा।

हुई मां विंध्यवासिनी की भव्य आरती

धुलाई के बाद मां विंध्यवासिनी की भव्य आरती की गई। तत्पश्चात मां का कपाट भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया गया। बताया जाता है कि चैत्र नवरात्र बाद प्रति वर्ष वैशाख कृष्ण प्रतिपदा को आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि नवरात्र में व पूरे वर्ष भर विंध्य क्षेत्र में तमाम साधक अपने- अपने तरीके से तंत्र मंत्र के साथ साधना करते हैं। उसका दुष्प्रभाव स्थानीय जनता पर न पड़े, इसलिए पूजा पाठ के साथ शुद्धि की जाती है।

कुंड की भी हुई सफाई

मंदिर परिसर की धुलाई के बाद पंडोहा के समीप स्थित मां विंध्यवासिनी के कुंड की साफ-सफाई की गई। लगभग चार फीट के व्यास में बने इस कुंड की सफाई वर्ष में एक बार की जाती है। गर्भगृह का पानी यहां आता है और यहां से सीधे गंगा नदी में विसर्जित हो जाता है। इस कुंड में त्रिदेव (ब्रहमा, विष्णु व महेश) की मूर्ति स्थापित है।

सभी वर्गो के लोगों ने किया प्रतिभाग

मंदिर परिसर के साफ-सफाई के आयोजन की सबसे बड़ी विशेषता रही कि इसमें मंदिर से जुड़े हुए सभी वर्गो के लोगों ने प्रतिभाग किया। इसमें प्रमुख रूप से तीर्थ पुरोहित, नाविक, नाई, धरकार व अनुसूचित वर्ग के लोग शामिल रहते है। मां विंध्यवासिनी का विशेष श्रृंगार कर पूजन अर्चन किया गया। परिसर की धुलाई के बाद मां का शयन लगाकर भोग प्रसाद का वितरण किया गया।

देर रात हुई निकासी

विंध्याचल मंदिर परिसर की सफाई के बाद मां विंध्यवासिनी की एक प्रतिमूर्ति बनाकर उनका श्रृंगार कर मध्यरात्रि में निकासी की गई। इसका उद्देश्य यह है कि इसके पूर्व यहां पर जितनी भी तंत्र मंत्र की क्रियाएं हुई हैं उन सभी को आबादी क्षेत्र से बाहर कर अभिमंत्रित कर बांध दिया जाता है ताकि किसी का अनिष्ट न हो।

साढ़े तीन घंटे तक बंद रहा मंदिर का कपाट

परंपरानुसार चैत्र पूर्णिमा के अगले दिन बुधवार को विहान में मां विंध्यवासिनी का विशेष श्रृंगार व पूजन किया जाता रहा है। इस बार भी मां विंध्यवासिनी के साथ ही मंदिर में स्थापित अन्य देव विग्रहों का भी विशेष श्रृंगार किया गया। बुधवार को साढ़े तीन घंटे तक दर्शन-पूजन पर रोक थी। विंध्य पंडा समाज के अध्यक्ष पंकज द्विवेदी के अनुसार मां विंध्यवासिनी मंदिर व मंदिर में स्थापित समस्त देव विग्रहों को चैत्र पूर्णिमा के अगले दिन गंगा जल से स्नान कराया गया। मां आदिशक्ति का विशेष श्रृंगार व पूजन किया गया। यही नहीं, भक्तों में प्रसाद भी वितरित हुआ।

हुआ मां का दिव्य श्रृंगार

बुधवार सुबह 10 से 12 बजे तक दर्शनार्थियों को प्रवेश नहीं दिया गया। वहीं दोपहर 12 से 1:30 बजे तक मां का शृंगार किया गया। इसके बाद ही दर्शनार्थियों को मंदिर में प्रवेश दिया गया। चैत्र नवरात्र बाद प्रति वर्ष वैशाख कृष्ण प्रतिपदा को आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि नवरात्र में व पूरे वर्ष भर विंध्य क्षेत्र में तमाम साधक अपने- अपने तरीके से तंत्र मंत्र के साथ साधना करते हैं। उसका दुष्प्रभाव स्थानीय जनता पर न पड़े, इसलिए पूजा पाठ के साथ शुद्धि की जाती रही है।

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