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आपराधिक मामला न बताना नौकरी से इनकार की वजह नहीं: इलाहाबाद हाई कोर्ट

HCने कहा है कि किसी उम्मीदवार को केवल आपराधिक मामला न बताने के कारण नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने बलिया के पुलिस अधीक्षक के आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें वर्ष 2015 की पुलिस भर्ती में चयनित अभ्यर्थी को कांस्टेबल के पद पर नियुक्ति से इनकार कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा हर गैर प्रकटीकरण को अयोग्यता के रूप में प्रचारित करना अन्यायपूर्ण है।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Thu, 14 Nov 2024 10:36 AM (IST)
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने टिप्‍पणी की है। जागरण
 विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि मात्र आपराधिक मामला नहीं बताने के कारण किसी उम्मीदवार को नियुक्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकता। इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति सलिल राय की पीठ ने बलिया के पुलिस अधीक्षक का वह आदेश रद कर दिया है जिसमें वर्ष 2015 की पुलिस भर्ती में चयनित अभ्यर्थी को कांस्टेबल को तैनाती दिए जाने से इनकार कर दिया गया था।

कोर्ट ने 15 दिसंबर 2024 तक याची को नियुक्त करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा, हर गैर प्रकटीकरण को अयोग्यता के रूप में प्रचारित करना अन्यायपूर्ण है। याची आशीष कुमार राजभर के नियुक्ति संबंधी दावे को इसलिए खारिज कर दिया गया था कि क्योंकि उसने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को छिपाया था।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि याची नियुक्ति के परिणामस्वरूप वेतन और अन्य भत्तों के साथ-साथ वरिष्ठता सहित सेवा लाभों का हकदार होगा, जो उसके शामिल होने की तारीख से ही प्रभावी होगा। आशीष उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड द्वारा 2015 में जारी विज्ञापन के क्रम में कांस्टेबल पद के लिए चुना गया था।

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चयनित उम्मीदवारों को हलफनामे में यह बताने के लिए कहा गया था कि अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले अथवा अदालत में विचाराधीन केस की जानकारी दें। जून 2018 में दायर हलफनामे में याची ने बताया कि उसके खिलाफ कोई आपराधिक दर्ज या लंबित नहीं है। बाद में उसे पता चला कि अप्रैल 2017 में उनके खिलाफ एक मामला दर्ज हुआ था। उसने दूसरा हलफनामे में इस बात की जानकारी दी।

जिलाधिकारी की सिफारिश के बावजूद एसपी बलिया ने दावा खारिज कर दिया। याची ने इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने एसपी को पुनर्विचार करने का निर्देश दिया। इसके बाद भी मार्च 2019 के आदेश में भी आशीष का दावा खारिज कर दिया गया। याची ने फिर याचिका दायर की।

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कोर्ट ने अवतार सिंह बनाम भारत संघ और अन्य के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का उल्लेख किया। कहा कि स्पष्ट है कि केवल दोषसिद्धि ही किसी उम्मीदवार को अयोग्य नहीं ठहराती। याचिका स्वीकार कर ली कि आपराधिक मामले का खुलासा न करना याचिकाकर्ता की नियुक्ति के लिए घातक नहीं हो सकता।

प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास आदेश मानें या उपस्थित हों

हाई कोर्ट ने प्रमुख सचिव (औद्योगिक विकास) नरेन्द्र भूषण को प्रथम दृष्टया अवमानना का दोषी माना है और उन्हें स्पष्टीकरण के साथ हाजिर होने का निर्देश दिया है। पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना का आरोप निर्मित किया जाए?

हालांकि कोर्ट ने प्रमुख सचिव को एक मौका और दिया है कि वह निर्देश का पालन कर अनुपालन हलफनामा दाखिल करें। यदि ऐसा करते हैं तो उन्हें उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी। प्रकरण में अगली सुनवाई पांच दिसंबर को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार ने जगदीश प्रसाद यादव एवं 49 अन्य की अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है।

परिणाम को चुनौती

हाई कोर्ट ने राज्य कृषि सेवा परीक्षा 2024 की प्रारंभिक परीक्षा परिणाम की वैधता की चुनौती देने वाली याचिका पर आयोग को याची के प्राप्तांक पेश करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 14 को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने देवेश वत्स व दो अन्य की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है।

याची के अधिवक्ता सिद्धार्थ व अनुराग ने कहा कि आयोग ने 10 अप्रैल 2024 को भर्ती विज्ञापन निकाला। विज्ञापन शर्तों के मुताबिक मुख्य परीक्षा के लिए एक पद के सापेक्ष 15 अभ्यर्थियों को सफल घोषित किया जाना था, लेकिन एक पद के सापेक्ष 7.5 के अनुपात में 2029 अभ्यर्थी सफल घोषित किए गए।

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