निठारी कांड: 19 साल की कानूनी लड़ाई, जब सब कुछ बिखर गया तब मिली रिहाई; वीरान पड़ा मकान हुआ खंडहर
सुप्रीम कोर्ट ने निठारी कांड के दोषी सुरेंद्र कोली को बरी कर दिया है। 19 सालों में कोली ने अपना परिवार खो दिया। पत्नी और बेटा उसे छोड़कर चले गए, और मां का भी देहांत हो गया। उसका घर खंडहर हो गया है। ग्रामीणों ने उसे बेकसूर बताते हुए मदद का वादा किया है। भाई ने वकील से संपर्क के बाद मिलने की बात कही है।

वीरान पड़ा मकान खंडहर, आगे की जिंदगी गांव में बिताएगा या दिल्ली में तलाशेगा नया ठिकाना, कुछ पता नहीं
संवाद सहयोगी, जागरण सल्ट। नोएडा के निठारी हत्या व दुष्कर्म कांड में दोषी ठहराए गए सुरेंद्र कोली को उच्चतम न्यायालय ने दोषमुक्त घोषित कर रिहा तो कर दिया है। मगर इन 19 वर्षों में अपना सब कुछ खो चुका सुरेंद्र आगे की जिंदगी कहां, कैसे गुजारेगा यह किसी को नहीं मालूम। पहले पत्नी पुत्र को लेकर अज्ञात पर चली गई। फिर बेटे के निर्दोष साबित होने की आस में मां चल बसी। वीरा पड़ा मकान भी खंडहर हो चुका है। वह गांव लौटेगा या फिर दिल्ली में ही नया ठिकाना तलाशेगा, संशय बना हुआ है।
अलबत्ता दिल्ली में रहने वाले उसके बड़े भाई चंदन कोली ने कहा कि सुरेंद्र के अधिवक्ता जब बताएंगे, संपर्क साधेंगे, उसके बाद ही देखा जाएगा। मिलेंगे बातचीत होगी। बगैर मिले अभी कुछ नहीं कह सकते। अभी कोई संपर्क भी नहीं हुआ है। वहीं ग्रामीणों ने कहा- दोषमुक्त होने तक सुरेंद्र का परिवार बिखर चुका है। वह आज भी उनके लिए सुरेंद्र ही है। गांव आएगा तो मकान बनाने और जो भी बन पड़ेगा, मदद करेंगे।
पत्नी जेल में मिलने जाती रही, फिर हो गई गुमनाम
वर्ष 2004-05 में मंगरूखाल निवासी सुरेंद्र कोली ने जब रोजगार के सिलसिले में दिल्ली के लिए कदम बढ़ाए थे, तब किसी ने नहीं सोचा था कि वह देश को झकझोर देने वाले जघन्य कांड का आरोपित ठहराया जाएगा। मां कुंती देवी व पत्नी शांति और बेटी को आर्थिक तंगी से बाहर निकालने का सपना लेकर सुरेंद्र कोली दिल्ली में मनिंदर सिंह पंधेर के यहां नौकरी करने लगा।
2006 में निठारी हत्या व दुष्कर्म कांड ने उससे सब कुछ छीन लिया। तब उसकी पत्नी गर्भवती थी। पुत्र को जन्म देने के बाद वह जेल में मिलने जाती थी। लगभग दस वर्ष पूर्व जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा सुनाई, उसके बाद उसकी पत्नी का हौसला टूटता गया। 2015 में न्यायालय ने फांसी की सजा में राहत देते हुए उम्रकैद सुनाई थी।
बहू के जाने के बाद बूढी मां भी चल बसी
2019 के आसपास सुरेंद्र की पत्नी सामाजिक तिरस्कार की डर से करीब 13 वर्षीय बेटे का भविष्य देख उसे लेकर गांव से चली गई थी। वह कहां है, किसी को नहीं पता। तब सुरेंद्र की मां कुंती देवी गांव में अकेली रह गई। वह कहती रही कि उसके गरीब बेटे को रसूखदारों ने बलि का बकरा बना दिया। बहू के जाने के कुछ ही माह बाद कुंती देवी ने भी दम तोड़ दिया।
क्या कहते हैं ग्रामीण
‘को दोषमुक्त किए जाने से गांव वालों को भी राहत मिली है। लेकिन बहुत देर होने से निराशा भी हो रही है। गरीबी के कारण उसे इस कांड में फंसाया गया। कानूनी लड़ाई लड़ते इन वर्षों में उसका परिवार बिखर गया।
-धर्म सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता मंगरूखाल’
‘सुरेंद्र कोली की रिहाई से समूचा गांव खुश है। यदि सुरेन्द्र गांव वापस आता है तो खंडहर हो चुके उसके घर को बनाने में गांववासी सहयोग करेंगे। उसे गलत फंसाया गया था। ग्रामीण उसे बेकसूर मानते रहे हैं।
- बालम सिंह, मंगरूखाल’
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