देहरादून में 'मझदार' में काबुल हाउस की पार्किंग, एक करोड़ 'स्वाहा'; अफगान के राजा से है कनेक्शन
देहरादून के सर्वे चौक पर काबुल हाउस की जमीन पर बन रही पार्किंग हाईकोर्ट के स्टे के कारण अधर में लटक गई है। अफगान बादशाह के परिवार की यह जमीन सरकार को कार्यालय या शिक्षण संस्थान के लिए दी गई थी, लेकिन प्रशासन ने यहां पार्किंग बना दी। हाईकोर्ट ने निर्माण पर रोक लगाकर प्रशासन से जवाब मांगा, पर नौ महीने बाद भी जवाब नहीं दिया गया, जिससे करीब एक करोड़ रुपये का नुकसान हो गया।

हाईकोर्ट के स्टे पर नौ माह बाद भी पक्ष नहीं रख पाए जिला-प्रशासन और नगर निगम। आर्काइव
अंकुर अग्रवाल, जागरण देहरादून। सर्वे चौक के पास करीब 400 करोड़ रुपये बाजारी भाव वाले 'काबुल हाउस' की जिस बेशकीमती जमीन पर देहरादून जिला प्रशासन सार्वजनिक पार्किंग बना रहा था, वह दरअसल व्यावसायिक उपयोग करने के लिए सरकार को दी ही नहीं गई थी। अफगान बादशाह की यह जमीन सरकारी कार्यालय या कोई सरकारी शैक्षणिक आदि बनाने के लिए सरकार को दी गई थी। इसके बावजूद प्रशासन ने नगर निगम के बजट से जमीन पर पार्किंग का निर्माण करा दिया। यही वजह रही कि नैनीताल हाई कोर्ट ने फरवरी में पार्किंग निर्माण पर रोक लगाकर प्रशासन से तीन हफ्ते में जवाब मांगा था। ...लेकिन, स्थिति यह है कि नौ माह बाद भी प्रशासन की ओर से इस मामले में पक्ष नहीं रखा गया और करीब एक करोड़ रुपये पानी में बह गए।
देहरादून में सर्वे चौक के पास काबुल हाउस स्थित है, जहां कभी अफगानिस्तान के शासक का परिवार रहता था। यह जमीन अफगान बादशाह के वंशजों ने सरकार को पाकिस्तानी शरणार्थियों के अस्थायी निवास के लिए दी थी, लेकिन सरकार ने बाद में इसे शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया। दिसंबर-2023 में जिला प्रशासन ने यहां पर कब्जा कर रह रहे एक दर्जन परिवारों को बेदखल कर जमीन पर कब्जा ले लिया। लगभग 30 बीघा इस जमीन पर दिसंबर-2024 में जिलाधिकारी सविन बंसल (तत्कालीन प्रशासक नगर निगम) की ओर से पार्किंग निर्माण के आदेश दिए गए। नगर निगम के बजट से बनने वाली 285 वाहनों की क्षमता की पार्किंग के निर्माण का कुल खर्च 99.35 लाख रुपये बताया गया। निर्माण की जिम्मेदारी ग्रामीण निर्माण विभाग को दी गई। गत फरवरी के पहले हफ्ते तक यहां 50 प्रतिशत निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया। जिसमें जमीन को समतल कर फर्श तैयार करना
शामिल रहा।
इसी दौरान काबुल हाउस के वंशजों की ओर से हाईकोर्ट में अपील दाखिल कर निर्माण पर रोक लगाने की मांग की गई। दावा किया गया कि यह जमीन राज्य सरकार को कार्यालय या शिक्षण संस्थान जैसे उपयोग के लिए दी गई थी, जबकि पार्किंग बनाकर इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा। हाईकोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए 10 फरवरी को निर्माण पर रोक लगा दी और प्रशासन से तीन मार्च तक पक्ष रखने को कहा। स्थिति यह है कि नौ माह बाद भी प्रशासन ने अपना पक्ष नहीं रखा और अधूरे निर्माण के साथ अब काबुल हाउस की जमीन पर अधर में फंसी हुई है।
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अफगान के राजा याकूब खान का था काबुल हाउस
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज के अनुसार एंग्लो-अफगान युद्ध में जब अफगान के राजा मोहम्मद याकूब खान को देश निकाला दिया गया था, तब अंग्रेज उन्हें मसूरी के बाला हिसार लेकर आए थे। यहां सर्दियों में उन्हें ठंड लगा करती थी तो देहरादून के सर्वे चौक के पास काबुल हाउस को उनका विंटर हाउस बनाया गया था। उनकी निगरानी के लिए यहां चौकी बनाकर सैनिक तैनात किए गए, जो आज भी करनपुर चौकी के रूप में संचालित हो रही है। वर्तमान में जहां बिजली दफ्तर है, वह उनका गेस्ट हाउस होता था आइआरडीटी आडिटोरियम का क्षेत्र उनका दरबार था।
काबुल हाउस की कीमत 400 करोड़ रुपये
साल-1876 में बनाए गए काबुल हाउस से वर्ष-1947 में भारत-पाक बंटवारे के बाद जब मोहम्मद याकूब खान चले गए तो सरकार ने इसे शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया। दिसंबर-2023 में सरकार ने लोगों से इसे खाली करा लिया। करीब 149 साल पुराने काबुल हाउस की इस समय बाजारी कीमत लगभग 400 करोड़ रुपये की बताई जाती है, जिसे ध्वस्तीकरण कर पार्किंग जोन बनाने की तैयारी जिला प्रशासन कर रहा था।
तीन पार्किंग के लिए जारी हुए थे पौने 11 करोड़
जिला प्रशासन की ओर से पार्किंग के प्रस्ताव के बाद नगर निगम के बजट से पौने 11 करोड़ रुपये तीन पार्किंग के लिए जारी हुए थे। इनमें दो आटोमेटेड पार्किंग परेड ग्राउंड और लैंसडोन चौक का कुल बजट 9.68 करोड़ रुपये था, जबकि काबुल हाउस पार्किंग का बजट 99.35 लाख रुपये था। इनमें लैंसडोन चौक पार्किंग की वाहन क्षमता 132 जबकि परेड ग्राउंड कनक चौक की क्षमता 129 है। आटोमेटेड पार्किंग शुरू हो गई हैं। इस मामले में नगर निगम की बोर्ड बैठक में पार्षद योगेश घाघट ने सवाल भी उठाए थे और काबुल हाउस की पार्किंग का पैसा निगम को वापिस दिलाने की मांग की थी।

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