पुतिन की प्लानिंग में फंसा पश्चिम, भारत-चीन और अमेरिका को लेकर क्या है रूस की योजना?
कार्नेगी रसिया यूरेसिया सेंटर के निदेशक एलेक्जेंडर गबुयेव कहते हैं कि पुतिन के लिए यह सम्मेलन व्यक्तिगत रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिखाता है कि उन्हें कमजोर या किनारे करने के पश्चिमी प्रयास विफल रहे हैं। ब्रिक्स में एक साथ इतने देशों का जुटना यह दिखाएगा कि रूस इस नए समूह का नेतृत्व करने वाला महत्वपूर्ण देश है और यह नया समूह पश्चिमी प्रभुत्व को खत्म कर देगा।
एपी, वॉशिंगटन। ढाई साल से भी लंबे समय से युद्धरत रूस के खिलाफ एकजुट होते पश्चिमी देशों की एक के बाद एक कार्रवाई, पाबंदियों और यूक्रेन को आर्थिक-सामरिक समर्थन के बावजूद क्रेमलिन कमजोर होता नजर नहीं आ रहा। बल्कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की नई प्लानिंग ने पश्चिम को एक तरह से पटकनी दी है।
ब्रिक्स सम्मेलन की मेजबानी
मंगलवार से पुतिन रूस के कजान शहर में ब्रिक्स सम्मेलन की मेजबानी करने जा रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, तुर्किये के रेसेप तैय्यप एर्दोगन और ईरान के मसूद पेजेश्कियान के साथ गलबहियां करते दिखेंगे। इस सम्मेलन में विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की बढ़ती मौजूदगी यह साफ करती है कि यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध में जुटे रहने और रूसी राष्ट्रपति के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय गिरफ्तारी वारंट जारी किए जाने से, पुतिन को किनारे करने की योजना कारगर नहीं होगी।
पांच राष्ट्रों का ब्रिक्स
शुरुआत में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे पांच राष्ट्रों का ब्रिक्स गठित करने का उद्देश्य पश्चिमी दबदबे वाली दुनिया में एक संतुलन बनाना था। हालांकि, इस वर्ष इसमें तेजी से बढ़ोतरी हुई। जनवरी में ईरान, इजिप्ट, इथियोपिया और यूएई ब्रिक्स से जुड़ गए, जबकि तुर्किये, अजरबैजान और मलेशिया ने औपचारिक रूप से इसमें शामिल होने के लिए आवेदन कर दिया है। इसके अलावा कई अन्य देश भी इससे जुड़ने में अपनी दिलचस्पी दिखा चुके हैं। रूस इसे एक बड़ी सफलता मान रहा है।