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श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में हुआ 75 फीसदी मतदान, मतों की गणना शुरू; देशभर में कर्फ्यू लागू

Sri Lanka Elections श्रीलंका में आर्थिक संकट के बाद हुए पहले राष्ट्रपति चुनाव में तकरीबन 75 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाला। इससे पहले 2019 के राष्ट्रपति चुनाव में 83 फीसदी मतदान हुआ था। मतदान संपन्न होने के साथ ही मतों की गणना भी शुरू हो गई। अप्रिय घटना रोकने के लिए श्रीलंका में रात 10 बजे से रविवार सुबह छह बजे तक कर्फ्यू लागू किया गया है।

By Agency Edited By: Sachin Pandey Updated: Sat, 21 Sep 2024 11:42 PM (IST)
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22 निर्वाचन क्षेत्रों में 13,400 मतदान केंद्रों पर मतदाताओं ने मतदान किया।

पीटीआई, कोलंबो। श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए शनिवार को हुए मतदान में लगभग 75 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इससे पहले नवंबर 2019 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में 83 प्रतिशत मतदान हुआ था। स्थानीय समयानुसार सुबह सात से शाम चार बजे तक 22 निर्वाचन क्षेत्रों में 13,400 मतदान केंद्रों पर मतदाताओं ने मतदान किया।

निर्वाचन महानिदेशक समन श्रीरत्ननायके ने कहा कि मतदान शांतिपूर्ण रहा और कहीं से भी अप्रिय घटना की सूचना नहीं मिली है। शाम चार बजे मतदान संपन्न होने के साथ ही डाक मतों की गणना शुरू हो गई। डाक मतों की गिनती के बाद शाम छह बजे से सामान्य मतों की गणना शुरू की गई।

देशभर में कर्फ्यू लागू

मतदान समाप्त होने के बाद अप्रिय घटना रोकने के लिए श्रीलंका में रात 10 बजे से रविवार सुबह छह बजे तक कर्फ्यू लागू किया गया है। वर्ष 2022 के आर्थिक संकट के बाद द्वीप देश में कराए गए पहले चुनाव पर नजर रखने के लिए 8000 स्थानीय और विदेशी पर्यवेक्षक तैनात थे। विदेशी पर्यवेक्षकों में यूरोपीय संघ, राष्ट्रमंडल, एशियन चुनाव नेटवर्क के 116 अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों के अलावा सात दक्षिण एशियाई देशों के पर्यवेक्षक शामिल हैं।

इस चुनाव को निवर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के लिए अग्निपरीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है, जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का दावा किया है। त्रिकोणीय मुकाबले में 75 वर्षीय विक्रमसिंघे को नेशनल पीपुल्स पावर (एनपीपी) के 56 वर्षीय अनुरा कुमारा दिसानायके और समागी जन बालावेगया (एसजेबी) के 57 वर्षीय साजिथ प्रेमदासा से कड़ी टक्कर मिल रही है।

तत्कालीन राष्ट्रपति को छोड़ना पड़ा था देश

श्रीलंका ने अप्रैल 2022 में खाद्यान्न, ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी के बीच दिवालिया होने की घोषणा की थी। देश में महीनों से जारी विरोध-प्रदर्शन के हिंसक रूप अख्तियार करने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को श्रीलंका छोड़कर भागने और इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। कुछ हफ्तों बाद संसद ने विक्रमसिंघे को नया राष्ट्रपति नियुक्त किया था।