बांग्लादेश के चुनावी सियासत में उलझी हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, जानें- हसीना सरकार की बड़ी चुनौती
हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा बांग्लादेश में होने वाले आम चुनाव के मद्देनजर अब यह सियासी रूप लेता जा रहा है। सरकार के समक्ष एक तरफ कट्टपंथियों से निपटने की बड़ी चुनौती है तो दूसरी ओर अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की चिंता सता रही है।
By Ramesh MishraEdited By: Updated: Wed, 27 Oct 2021 11:03 PM (IST)
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार पर भारत सरकार बहुत सधा हुआ बयान दे रही है। हालांकि, इसको लेकर कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं। भारत सरकार का बांग्लादेश के प्रति नरम रवैये को लेकर कई तरह से प्रश्न खड़े हो रहे हैं। उधर, बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार कट्टरपंथियों और हिंदू अल्पसंख्यकों को साधने में जुटी है। बांग्लादेश में होने वाले आम चुनाव के मद्देनजर अब यह मुद्दा सियासी रूप लेता जा रहा है। बांग्लादेश की मौजूदा सरकार अब इस पूरे मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। उसे एक तरफ कट्टपंथियों से निपटने की बड़ी चुनौती है तो दूसरी ओर हिंदू अल्पसंख्यकों की रक्षा की भी चिंता सता रही है। आइए जानते हैं कि सरकार ने अब तक हिंदू अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए क्या कदम उठाए हैं।
धर्मनिरपेक्ष संविधान पर चुप हुई हसीना सरकारहाल में बांग्लादेश के सूचना मंत्री मुराद हसन ने घोषणा की थी कि बांग्लादेश एक धर्मनिरपेक्ष देश है। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान द्वारा बनाए गए 1972 के संविधान की देश में वापसी होगी। भारत के अथक प्रयास के बाद बांग्लादेश आजाद हुआ था। इसलिए भारत के प्रभाव में आकर मुजीबुर्रहमान ने एक धर्मनिरपेक्ष देश की कल्पना की थी। उन्होंने इस्लामिक राष्ट्र की परिकल्पना का त्याग किया था। हसन ने आगे कहा था कि हमारे शरीर में स्वतंत्रता सेनानियों का रक्त है, हमें किसी भी हाल में 1972 के संविधान की ओर वापस जाना होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान की वापसी के लिए मैं संसद में बोलूंगा। सूचना मंत्री ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इस्लाम हमारा राष्ट्रीय धर्म है। उन्होंने कहा कि जल्द ही हम 1972 के धर्मनिरपेक्ष संविधान को फिर अपनाएंगे। हम 1972 का संविधान वापस लाएंगे। इस बिल को हम पीएम शेख हसीना के नेतृत्व में संसद में अधिनियमित करवाएंगे। हालांकि, कट्टरपंथियों के दबाव के आगे अब यह मुद्दा शांत हो गया है।
हिंदू अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए नया कानून बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की चर्चा शांत होने के बाद वहां की सरकार अब एक नए कानून को लाने की तैयारी में है। दरअसल, हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले के बाद बांग्लादेश सरकार एक कानून बनाने जा रही है। सरकार का मानना है कि इससे हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए कानूनी प्रक्रिया में आसानी होगी। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार का मत है कि अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले की घटनाओं के अनेक मामलों में फैसले नहीं आ पाते। इसकी मुख्य वजह गवाह हैं। सरकार का कहना है कि गवाहों के अभाव में यह सुनवाई पूरी नहीं हो पाती। इसलिए सरकार गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक नया कानून बनाने जा रही है। दूसरे, अल्पसंख्यकों पर हमले के मामले में सुनवाई की प्रक्रिया बेहद लंबी होती है। कभी-कभी इन पर कोई फैसला भी नहीं हो पाता। बांग्लादेश के कानून मंत्री ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय पर हमले की घटनाओं की सुनवाई के परिपेक्ष में सरकार यह कानूनी पहल करने जा रही है।
हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर हो रही सियासत प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि दरअसल, बांग्लादेश में अगले वर्ष आम चुनाव होने हैं। हसीना सरकार की नजर अपने अल्पसंख्यक वोटरों पर है। दूसरे, सरकार कट्टरपंथियों को भी कोई मौका नहीं देना चाहती कि वह अपना नंबर बढ़ा सके। शेख हसीना सरकार अल्पसंख्यकों को यह भरोसा दिलाने में जुटी है कि वह कट्टपंथियों के सामने नतमस्तक नहीं है। यही कारण है कि हसीना सरकार के एक बड़े मंत्री ने बांग्लादेश के इस्लामिक राष्ट्र के मामले में एक सार्वजनिक बयान दिया। उन्होंने देश में दोबारा धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की वकालत की। हालांकि, कट्टरपंथियों के दबाव के आगे यह सारा मामला दब गया। कट्टरपंथियों ने चेतावनी दी कि अगर देश में इस्लामिक राष्ट्र के मामले में कोई छेड़छाड़ की गई तो यह हिंसा और उग्र होगी। इसलिए यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। अब सरकार ने हिंदू अल्पसंख्यकों की संतुष्टि के लिए एक नए कानून की बात कर रही है।
भारत के लिए खास है ढाका प्रो. पंत का कहना है कि भारत सरकार मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए बेहद सतर्क होकर बयान दे रही है। भारत और बांग्लादेश के रिश्ते अब नए दौर में प्रवेश कर चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी सुधार हुआ है। कोरोना महामारी के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए पीएम मोदी ने बांग्लादेश का चुनाव किया। बांग्लादेश भी भारत के साथ संबंधों को उतना ही महत्व देता रहा है। यही वजह रही कि मोदी के ढाका पहुंचने पर बांग्लादेश में उनकी समकक्ष ने खुद एयरपोर्ट पर पहुंचकर उनकी अगवानी की थी। समारिक दृष्टि से भी भारत के लिए बांग्लादेश बेहद अहम है। पूर्वोत्तर राज्यों को चीन की नजर से बचाने के लिए बांग्लादेश से कनेक्टिविटी बेहद जरूरी है। दूसरे, बांग्लादेश की बढ़ती अर्थव्यवस्था को भारत के साथ जोड़ने से दोनों देशों का बड़ा फायदा होगा। हिंद प्रशांत क्षेत्र के बढ़ते महत्व के मद्देनजर भारत के लिए बांग्लादेश की बड़ी भूमिका होगी।