Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Total Loss in Car Insurance: व्हीकल इंश्योरेंस में क्या होता है टोटल लॉस, जानिए इसके नफा-नुकसान

व्हीकल इन्श्योरेन्स में किसी वाहन को टोटल लॉस उस वक्त डिक्लियर किया जाता है जब कोई कार बाइक या थ्री व्हीलर इस हद तक डैमेज हो जाता है कि उसे पहले जैसी स्थित में नहीं लाया जा सकता है। इसके साथ ही अगर रिपेयर वैल्यू IDV रकम के 75 प्रतिशत से ज्यादा होती है तो इसे कंस्ट्रक्टिव टोटल लॉस कहा जाता है।

By Subhash Gariya Edited By: Subhash Gariya Updated: Sat, 27 Apr 2024 08:00 AM (IST)
Hero Image
आइए, जान लेते हैं कि व्हीकल इन्श्योरेन्स में टोटल लॉस क्या होता है।

ऑटो डेस्क, नई दिल्ली। अगर आप अपनी कार के लिए नई कार इन्श्योरेन्स प्लान खरीद रहे हैं तो इससे जुड़े क्रिटिकल और टेक्नीकल जानकारी आपको मालूम होनी चाहिए। व्हीकल इन्श्योरेन्स को लेकर एक ऐसा ही टेक्निकल टर्म टोटल लॉस (Total Loss) हैं। इस आर्टिकल में हम आपको मोटर इन्श्योरेन्स के बारे में डिटेल में जानकारी दे रहे हैं।

मोटर इन्श्योरेन्स में क्या होता है टोटल लॉस?

व्हीकल इन्श्योरेन्स में किसी वाहन को टोटल लॉस उस वक्त डिक्लियर किया जाता है, जब कोई कार, बाइक या थ्री व्हीलर इस हद तक डैमेज हो जाता है कि उसे पहले जैसी स्थित में नहीं लाया जा सकता है। इस स्थित में कार को टोटल लॉस में डाल दिया जाता है।

दूसरी ओर, अगर गाड़ी के मरम्मत में आने वाला खर्च आईडीवी (इन्श्योरेन्स डिक्लेयर्ड वैल्यू ) से  75 प्रतिशत अधिक हो जाती है, तो इसे कंस्ट्रक्टिव टोटल लॉस (सीटीएल) घोषित कर दिया जाता है। आमतौर पर किसी भी व्हीकल को दो स्थिति में टोटल लॉस किया जाता है। 

1. एक्सीडेंट: अगर कार एक्सीडेंट में डैमेज हो जाए और रिपेयर में ज्यादा खर्च हो या कार किसी काम की न रह जाए।

2. चोरी: कार चोरी हो जाए और अथॉरिटी उसे खोज न पाएं।

एक्सीडेंट या वाहन चोरी होने की स्थिति में इन्श्योरेन्स कंपनी ग्राहक को गाड़ी के आईडीवी के बराबर की रकम ग्राहक को देती है। अगर रिपेयर रकम आईडीवी के 75 प्रतिशत या उससे ज्यादा हो तो इसे टोटल लॉस में डाल दिया जाता है।

टोटल लॉस और कंस्ट्रक्टिव टोटल लॉस में अंतर

अगर वाहन इस हद तक डैमेज हुआ है कि उसे एक्सीडेंट से पहले वाली स्थिति में नहीं लाया जा सकता है तो उसे टोटल लॉस कहते हैं। अगर डैमेज रिपेयरिंग में लगने वाली लागत व्हीकल के आईडीवी राशि के 75% से ज्यादा है, तो इसे कंस्ट्रक्टिव टोटल लॉस में शामिल कर लिया जाता है।

कंस्ट्रक्टिव टोटल लॉस में एक्सीडेंटल व्हीकल की रिपेयरिंग में पैसा खर्च करने की तुलना में नया वाहन खरीदना बेहतर माना जाता है। जबकि टोटल लॉस में व्हीकल को रिपेयर किया ही नहीं जा सकता है।

यह भी पढ़ें: Car Tips: कार इंश्‍योरेंस क्‍यों होता है जरूरी, एड ऑन कवर से मिलते हैं क्‍या फायदे, जानें पूरी डिटेल

Insured Declared Value का कैलकुलेशन कैसे होता है?

IDV का कैलकुलेशन व्हीकल की सेलिंग कीमत और सभी एक्सेसरीज की वैल्यू के आधार पर तय होती है। इसके साथ ही व्हीकल की गाड़ी के उम्र के आधार पर IDV कम होती रहती है। नीचे हम आपके साथ गाड़ी की उम्र के साथ-साथ IDV की डेप्रिसिएशन तय होती है। 

व्हीकल की उम्र डेप्रिसिएशन रेट
6 महीने तक  5 प्रतिशत
6 महीने से एक साल तक  15 प्रतिशत
एक साल से 2 साल तक 20 प्रतिशत
2 साल से 3 साल तक 30 प्रतिशत
3 साल से 4 साल तक 40 प्रतिशत

4 साल से 5 साल तक

50 प्रतिशत

5 साल से ऊपर इन्श्योरेंस कंपनी निर्धारित करती है।

इन बातों पर निर्भर करती है गाड़ी की IDV

  • व्हीकल की उम्र
  • गाड़ी की मौजूदा माइलेज
  • गाड़ी का मॉडल और वेरिएंट
  • गाड़ी की मैकेनिकल कन्डीशन
  • गाड़ी की रजिस्ट्रेशन डेट
  • इंजन कैपेसिटी
  • गाड़ी की एक्स-शोरूम कीमत
  • गाड़ी के प्रकार - प्राइवेट या कमर्शियल

यह भी पढ़ें: Car Insurance Types: कितने तरह के होते हैं कार इंश्योरेंस? जानिए आपके लिए कौन सबसे बेहतर