राजपूत दबदबे वाली औरंगाबाद सीट पर कांटे की टक्कर, क्या इस बार कांग्रेस का किला भेद पाएगी बीजेपी?
औरंगाबाद विधानसभा क्षेत्र में इस बार कांटे की टक्कर है। कभी कांग्रेस का गढ़ रहे इस क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला है। विकास के वादे और जातीय समीकरणों के साथ-साथ भितरघात का डर भी उम्मीदवारों को सता रहा है। लोजपा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के आने से एनडीए की स्थिति मजबूत हुई है। देखना यह है कि मतदाता इस बार किसे चुनते हैं।
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प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (जागरण)
सनोज पांडेय, औरंगाबाद। औरंगाबाद विधानसभा क्षेत्र में इस बार घमासान है। कभी कांग्रेस के गढ़ रहे औरंगाबाद में भाजपा के प्रदेश मंत्री त्रिवक्रम नारायण सिंह एनडीए प्रत्याशी के रूप में चुनौती दे रहे हैं।
1952 से यहां कांग्रेस का गढ़ रहा है। बीच के वर्षों में यहां से भाजपा के रामाधार सिंह विधायक व मंत्री बने। वर्ष 2015 एवं 2020 के चुनाव में कांग्रेस के आनंद शंकर ने भाजपा के रामाधार सिंह को पराजित किया था। 2020 के चुनाव में भाजपा यहां मात्र 2243 मतों से पराजित हुई थी।
11 नवंबर को यहां मतदान होना है। विकास के वादे के साथ जातीय गोलबंदी का प्रयास हो रहा है। इस बार लोजपा रामविलास एवं राष्ट्रीय लोक मोर्चा के आने से एनडीए की स्थिति मजबूत हुई है। दोनों उम्मीदवार एक ही जाति से हैं जिस कारण दूसरी जातियों के वोट उनके समर्थक जोड़-घटाव कर रहे हैं।
बसपा से शक्ति मिश्रा व जन सुराज से नंदकिशोर यादव मुकाबला को त्रिकोणीय बनाने में लगे हैं। ओबरा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे नंदकिशोर को जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने औरंगाबाद से टिकट दिया है।
मैदान में 15 प्रत्याशी
वैसे यहां से इस बार कुल 15 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। दो महिला प्रत्याशी भी अपनी किस्मत आजमा रही हैं। मतों की बात करें तो सबसे अधिक मत राजपूतों के हैं। वर्ष 2000 के चुनाव को छोड़ दें तो यहां से हमेशा राजपूत प्रत्याशी ही विजयी हुए हैं।
कहा जाता है कि इस जाति का झुकाव जिस प्रत्याशी की ओर होती है उसकी पक्की मानी जाती है। विधानसभा चुनाव में मेडिकल कॉलेज के साथ विकास का मुदा छाया हुआ है।
कुशवाहानगर के अनिल कुशवाहा एवं बाकन गांव के अवधेश चंद्रवंशी कहते हैं कि विकास के मामले में यह क्षेत्र पीछे रह गया है जबकि बिहार के हर कोने में विकास हो रहा है। इस बार समीकरण उलटा है। जो विकास नहीं करेगा जनता उन्हें जीत का माला नहीं पहनाएगी।
ग्रामीण सड़कों का हाल दिखाते हुए कहते हैं कि इसके लिए किसी ने आवाज नहीं उठाई। इस विधानसभा क्षेत्र में कुछ स्थानीय तो कुछ राज्य स्तरीय मुदा हावी हैं। मुदों के बीच यहां जातीय गोलबंदी से जीत की फसल कटेगी। भितरघात की राजनीति ने दोनों दलों के प्रत्याशियों को परेशान कर रखा है। यहां उन्हें अपनों से खतरा लग रहा है।
पीएम के चुनावी सभा के बाद यहां का माहौल बदला है। चर्चा यह भी है कि यहां तेजस्वी यादव नहीं आएंगे। तेजस्वी की चुनावी सभा न होने पर बहस जारी है। जीत का सेहरा मतदाता किसके सिर बांधेंगे यह 14 नवंबर को पता चलेगा।
- औरंगाबाद में मतदाताओं की संख्या : 3,12,159
- पुरुष मतदाता : 1,64,865
- महिला मतदाता : 1,47,288
- थर्ड जेंडर मतदाता : 6
- 100 से अधिक उम्र के मतदाता : 181
- मतदान केंद्रों की संख्या : 352

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