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    छठ की विदाई में आंसुओं का सैलाब, मिट्टी छोड़ परदेस लौटे लाखों, वोट करने का सपना रह गया अधूरा!

    Updated: Mon, 27 Oct 2025 12:45 AM (IST)

    बिहार में छठ पर्व की समाप्ति के बाद, लाखों कामगार और नौकरीपेशा लोग रोजी-रोटी के लिए दूसरे राज्यों में लौटने को मजबूर हैं। स्टेशनों पर भारी भीड़ है और ट्रेनों में टिकट मिलना मुश्किल हो रहा है। रोजगार की मजबूरी के कारण लोगों को वापस जाना पड़ रहा है, जिसका असर चुनावों पर भी पड़ता है क्योंकि कई प्रवासी मतदाता वोट नहीं डाल पाते। छठ पर्व आस्था का प्रतीक होने के साथ-साथ लोकतंत्र में मतदाताओं की अनुपस्थिति की याद भी दिलाता है।

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    छठ की विदाई में आंसुओं का सैलाब

    अजीत कुमार झा, तेघड़ा (बेगूसराय)। महापर्व छठ में माहौल भावनाओं और परंपरा के रंग में रंग गया है। छठ की समाप्ति के साथ ही बिहार के लाखों कामगार और नौकरीपेशा लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए फिर से दिल्ली, मुंबई, गुजरात और पंजाब जैसे राज्यों की ओर लौटने की तैयारी में हैं। 

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    बरौनी जंक्शन से लेकर पटना, मुजफ्फरपुर और हाजीपुर तक रेल स्टेशनों पर फिर वही दृश्य है, सामान से लदे बैग, स्वजनों की विदाई की आंखें और प्लेटफार्म पर उमड़ी भीड़। 

    नो मोर बुकिंग की स्थिति

    सरकार द्वारा चलाई गई स्पेशल ट्रेनों के बावजूद स्थिति यह है कि सीमांचल एक्सप्रेस में वेटिंग 51, हमसफर में 104, जबकि वैशाली, अवध-असाम, राजधानी और पूर्वोत्तर संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस में नो मोर बुकिंग की स्थिति बनी हुई है।

    यात्रियों की इस भीड़ से साफ है कि छठ के लिए घर आए लाखो कामगार अब अपनी कर्मभूमि की ओर लौट रहे हैं। आरक्षित बर्थ मिलना मुश्किल है, बावजूद इसके लोग 24 से 36 घंटे खड़े होकर यात्रा करने को मजबूर हैं।

    रोजगार की मजबूरी, वोट पर भारी

    छठ के बाद लौटने वालों में ज्यादातर लोग निर्माण, फैक्ट्री, ट्रांसपोर्ट और सिक्योरिटी जैसे असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं। ये लोग मानते हैं कि छठ ही वह समय है जब साल में एक बार परिवार और मिट्टी से जुड़ने का मौका मिलता है। 

    मगर पर्व खत्म होते ही नौकरी बचाने की चिंता उन्हें फिर परदेस खींच लाती है। इस सामूहिक पलायन का सीधा असर विधानसभा चुनाव पर भी पड़ता है। निर्वाचन आयोग भी स्वीकार कर चुका है कि बिहार और उत्तर प्रदेश में मतदान प्रतिशत कम रहने का एक प्रमुख कारण प्रवासी मतदाता हैं, जो काम के कारण वोट नहीं डाल पाते हैं।

    छठ पर्व जहां बिहारियों की आस्था और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है, वहीं इसका समापन लोकतंत्र के इस सबसे बड़े पर्व पर मतदाताओं की अनुपस्थिति की याद भी छोड़ जाता है।