बेगूसराय में एशिया का वृंदावन गोकुल के बाद दूसरा सबसे बड़ा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला, 99 वर्ष में प्रवेश
भगवान की महिमा अपार थी। श्री कृष्ण जन्मोत्सव मेला के आयोजन के बाद तेघड़ा में लोगों को प्लेग से निजात मिलने लगी । 1929 में स्वर्गीय सूर्यनारायण पोद्दार हाकीमनुनु पोद्दार हरिलाल सहित उनके नेतृत्व मैन रोड में मुख्य मंडप में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। इसके बाद यह सिलसिला करीब तीन दशकों तक चला।

संवाद सहयोगी, तेघड़ा(बेगूसराय)। एशिया का वृंदावन गोकुल के बाद दूसरा सबसे बड़ा श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला। जिसमें अलग-अलग मंडपों में बांके बिहारी के जन्मोत्सव के अलग-अलग स्वरूप। अद्भुत छठा बिखेरती मंडपों में मोहिनी रूप की स्थापित प्रतिभाएं। सजावट भी ऐसी की नजरे निहारते निहारते थक जाए पर हटाए ना हटे। श्री कृष्ण जन्मोत्सव मेला तेघड़ा में हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस समय पूरा तेघड़ा कृष्ण धाम के रूप में सुसज्जित रहता है।
2025 में 99 वर्ष में प्रवेश कर रहा तेघड़ा का श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेला विराट स्वरूप में पहुंच चुका है । आयोजकों की तैयारी ऐसी चल रही है जैसे लग रहा है तेघड़ा मिनी मथुरा वृंदावन के स्वरूप को अपने को आतुर है। यहां 16 अगस्त से 20 अगस्त तक मेले का आयोजन होगा। 21 अगस्त को मूर्ति का विसर्जन होगा। मंडपों की आकर्षक सजावट जय कन्हैया लाल की मदन गोपाल की के जयकारा से यहां के आठ किलोमीटर का क्षेत्र गुंजायमान रहेगा। 1928 में एक पंडाल से शुरू हुआ मेला अब 15 पंडाल मंडप तक पहुंच चुका है। मेला आयोजन के पीछे यहां फैली प्लेग महामारी में हुई भारी संख्या में लोगों की मौत जैसी किवदंती भी है। कारण जो भी हो लगभग आठ किलोमीटर क्षेत्र में फैले मेला परिसर जो श्रद्धालुओं के लिए एक दिन में घूम पाना भी मुश्किल है।
1927 में आई थी महामारी
बात वर्ष 1927 की है। जहां चारों ओर कोहराम मचा था। तेघड़ा बाजार सहित ग्रामीण क्षेत्र के लोग घर छोड़कर भाग रहे थे। कुछ लोग इससे बचने के लिए जिला से पलायन कर गए थे। बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे। प्लेग महामारी इस कदर फैली थी कि नाम सुनते ही लोगों के हाथ पांव फूलने लगते थे। उस समय इसकी चपेट में आने का मतलब था मौत। क्योंकि तब इसका समुचित इलाज नहीं था। इससे बचने के लिए लोगों ने कई यज्ञ एवं अनुष्ठान किया। टोना टोटका का भी सहारा लिया गया। बावजूद इसके कोई निदान नहीं निकाला। यह सब देखकर लोगों में निराशा का माहौल बन गया था। इसी दौरान यहां चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली आशा की किरण जागा गई।
चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली ने दी थी सलाह
वर्ष 1927 में भारत भ्रमण के दौरान चैतन्य महाप्रभु की कीर्तन मंडली तेघड़ा पहुंची थी। यात्रा विश्राम के दौरान यहां के लोगों ने महामारी की स्थिति से उन्हें अवगत कराया। स्थिति को देखकर उन्होंने भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाने की सलाह दी। उनकी सलाह पर सर्वप्रथम 1928 में स्टेशन रोड में स्वर्गीय बंसी पोद्दार, विशेश्वर लाल एवं लखन साह के नेतृत्व में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। भगवान की महिमा अपार थी। श्री कृष्ण जन्मोत्सव मेला के आयोजन के बाद तेघड़ा में लोगों को प्लेग से निजात मिलने लगी । 1929 में स्वर्गीय सूर्यनारायण पोद्दार हाकीम,नुनु पोद्दार, हरिलाल सहित उनके नेतृत्व मैन रोड में मुख्य मंडप में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। इसके बाद यह सिलसिला करीब तीन दशकों तक चला। समय के साथ मेला का आकार भी बदल गया।
वक्त के साथ बदलते गया मेला का आकार
समय के साथ तेघड़ा में श्री कृष्ण जन्मोत्सव मेला में मंडपों की संख्या बढ़ती गई। स्व लखी साह, स्व रामेश्वर साह, हरिलाल मखारिया के नेतृत्व में पूर्वी क्षेत्र में मेला मनाया जाने लगा। 1932 में डा कृष्ण नारायण पोद्दार, कारी लाल साह सहित अन्य के नेतृत्व में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाने लगा। इसके बाद 1990 में चैती दुर्गा स्थान एवं प्रखंड कार्यालय परिसर में भी बनाए जाने लगा। 2000 में यह मेला स्टेशन रोड से आगे बढ़ते हुए नया ब्लाक कार्यालय की तरफ फैल गया।
तेघड़ा रजिस्ट्री ऑफिस कार्यालय से लेकर त्रिवेणी मार्केट तक। धीरे-धीरे तेघड़ा में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मेले का विस्तार हो गया। मेला में झूला थिएटर का भी आयोजन होने लगा। वर्तमान में यह मेला लगभग आठ किलोमीटर परिक्षेत्र में 15 मंडप में आयोजित हो रहा है। मेले में मनोरंजन के लिए विभिन्न तरह के अत्याधुनिक झूले लगाए जाते हैं। यहां का मेला अनवरत दिन-रात 24 घंटे लगातार पांच दिनों तक चलता है। प्रतिदिन मेला में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
वक्त के साथ बदलते गया मेला का स्वरूप
पेट्रोमैक्स और लालटेन की रोशनी से रोशन होता था तेघड़ा का मेला क्षेत्र शुरुआत के दिनों में मेले में पहुंचने वाले दुकानदारों के पेट्रोमैक्स से मेला परिसर में रोशनी होती थी। अब एलईडी की रंग बिरंगी रोशनी से पूरा तेघड़ा का मेला परिसर नहाया रहता है। पहले श्री कृष्ण जन्मोत्सव मेले में कूट पर डिजाइन किया जाता था और चमकी का चूर्ण चिपकाकर मंडप तैयार किया जाता था। बिजली का काम सिर्फ मंडप में होता था जो पटना से आता था।
पटना से ही दास एंड कंपनी का साउंड भी आता था उस समय तेघड़ा में बिजली नहीं थी। सड़के भी कच्ची थी। दुकानदार बाहर से आते थे साथ में पेट्रोमैक्स और लालटेन लाते थे। मेला परिसर में उसी की रोशनी से बाजार रोशन होता था। वर्ष 1960 में तीसरी मंडप का निर्माण हरीलाल, चिरंजी लाल ,राघो साह, विसो सिंह मधुरापुर, सीताराम सिंह कसवा, डॉ नरेश सिंह, राजेंद्र सुल्तानिया उर्फ कल्लू के सहयोग से स्टेट बैंक के पास शुरू हुआ। वर्ष 1975 में पश्चिमी क्षेत्र में स्व सूर्य नारायण साह के मकान में चौथे मंडप का निर्माण शुरू हुआ। तेघड़ा में बिजली वर्ष 1960 में आई। तेघड़ा अस्पताल से सत्संग मंदिर तक एवं स्टेशन रोड में सेंट्रल बैंक तक बिजली लगी। इसका उद्घाटन बिहार सरकार के बिजली एवं सिंचाई मंत्री तेघड़ा के तत्कालीन विधायक रामचरित्र सिंह ने किया था
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