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    बिना बैटरी के चलेगा रिमोट, टावर से निकलने वाली तरंगों से मिलेगी ऊर्जा

    Updated: Mon, 17 Nov 2025 10:32 AM (IST)

    यह तकनीक भारत को एनर्जी इंटरनेट ऑफ थिंग्स के एक नए युग में ले जा सकती है, जहां उपकरण पर्यावरण से ऊर्जा लेकर हमेशा काम कर सकेंगे। विशेषज्ञों के अनुसार, यह शोध भारत की 5जी क्रांति को बढ़ावा देगा और स्मार्ट शहरों को स्वदेशी ऊर्जा समाधान देगा। इससे भारत ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा।

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    ट्रिपल आईटी भागलपुर। (जागरण)

    ललन तिवारी, भागलपुर। आने वाले समय में मोबाइल टावर अब सिर्फ नेटवर्क नहीं, बल्कि ऊर्जा का स्रोत भी बन सकता है। ट्रिपलआईटी (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी) भागलपुर के शोधकर्ताओं ने ऐसी तकनीक विकसित की है जो 5जी सेल टावरों से निकलने वाली रेडियो तरंगों से ऊर्जा संग्रहित कर छोटे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और सेंसर को चला सकती है।

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    यह तकनीक भविष्य में बैटरी-फ्री (बिना बैटरी वाले) उपकरणों की दुनिया की शुरुआत कर सकती है। इस क्रांतिकारी परियोजना का नेतृत्व डॉ. प्रकाश रंजन कर रहे हैं, जबकि डॉ. चेतन बार्डे सह-प्रधान अन्वेषक हैं। यह शोध आई हब दिव्य संपर्क आईआईटी रुड़की के सहयोग से चल रहा है। परियोजना का शीर्षक है इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एनर्जी हार्वेस्टिंग सिस्टम फॉर वायरलेस सेंसर नोड एंड आइओटी एप्लिकेशंस।

    मिलीमीटर वेव सिग्नल को डीसी ऊर्जा में बदला जाएगा

    डॉ. रंजन ने बताया कि भारत में अब तेजी से 5जी नेटवर्क का विस्तार हो रहा है। 5जी टावरों से निरंतर निकलने वाली मिलीमीटर वेव सिग्नल विशेष रूप से एन257 (26.5-29.5 जीएचजेड) और एन258 (24.25-27.5 जीएचजेड बैंड) को तकनीक की मदद से डीसी ऊर्जा में बदला जा सकेगा।

    यह ऊर्जा निकटवर्ती सेंसर, निगरानी यंत्रों या आइओटी डिवाइसों को शक्ति प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि अब चुनौती सिर्फ ऊर्जा संग्रहित करने की नहीं, बल्कि उसे स्थिर और बुद्धिमानी से उपयोग करने की है।

    इसके लिए हमने खास एमएमवेव रेक्टेना, इम्पीडेंस मैचिंग नेटवर्क और पावर मैनेजमेंट सर्किट विकसित किए हैं जो 5जी तरंगों को उपयोगी डीसी पावर में बदलते हैं।

    यह तकनीक भविष्य में उन इलाकों के लिए वरदान साबित हो सकती है जहां बिजली या चार्जिंग सुविधा सीमित है। इससे मोबाइल टावरों की संरचनात्मक स्थिति, सुरक्षा उपकरणों और पर्यावरण निगरानी सेंसरों को स्वयं-संचालित बनाया जा सकेगा।

    सह-प्रधान अन्वेषक डॉ. चेतन बार्डे ने बताया कि यह शोध भारतीय 5जी स्पेक्ट्रम को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इसमें मेटासर्फेस आधारित डिजाइन और शॉटकी डायोड युक्त सर्किट का प्रयोग किया गया है, जो उच्च आवृत्ति बैंड पर भी स्थिरता बनाए रखते हैं।



    यह तकनीक भारत को एनर्जी आइओटी (इनर्जी इंटरनेट ऑफ थिंग्स) के नए युग में ले जा सकती है, जहां डिवाइस खुद पर्यावरण से ऊर्जा खींचकर अनंतकाल तक कार्य कर सकेंगे। विशेषज्ञों के अनुसार, यह शोध न केवल भारत की 5जी क्रांति को गति देगा बल्कि स्मार्ट सिटी और औद्योगिक निगरानी तंत्र को भी पूरी तरह स्वदेशी ऊर्जा समाधान प्रदान करेगा।

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    -डॉ. मधुसुदन सिंह, निदेशक ट्रिपल आईटी भागलपुर