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    Bihapur Assembly Election: बिहपुर में कमल बनाम नौका का मुकाबला, किस ओर जा रही जनता?

    Updated: Wed, 05 Nov 2025 01:21 PM (IST)

    बिहपुर विधानसभा चुनाव में समीकरण बदल गए हैं। अब मुकाबला भाजपा (कमल) और जदयू (नौका) के बीच होने की संभावना है। सभी राजनीतिक दल चुनाव की तैयारी में जुटे हैं और मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। इस बार मुकाबला दिलचस्प होने की उम्मीद है, क्योंकि दो प्रमुख गठबंधन आमने-सामने हैं।

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    बिहपुर में बदले समीकरण

    संजय सिंह, भागलपुर। बिहपुर विधानसभा क्षेत्र की सियासत इस बार फिर से करवट ले रही है। 2025 के चुनाव में मुकाबला इस बार और रोचक हो गया है। भाजपा से मौजूदा विधायक इंजीनियर कुमार शैलेंद्र मैदान में हैं, जबकि महागठबंधन ने वीआईपी की अर्पणा कुमारी पर दांव लगाया है।

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    अर्पणा गंगोता समाज से आती हैं और महिलाओं में उनकी पकड़ मजबूत मानी जा रही है। उन्हें भागलपुर के सांसद अजय मंडल का समर्थन मिलने की चर्चा है। दूसरी ओर, भाजपा प्रत्याशी शैलेंद्र को संगठन की मजबूती, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थन और एनडीए की एकजुटता का लाभ मिलने की उम्मीद है।

    बिहपुर की सियासत हमेशा जातीय समीकरणों से तय होती रही है। यहां भूमिहार, गंगोता, यादव और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं। भाजपा के शैलेंद्र भूमिहार समाज से हैं, जबकि वीआईपी की अर्पणा गंगोता वर्ग से आती हैं।

    शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल के जदयू में शामिल होने से एनडीए को गंगोता वोटों में सेंध की उम्मीद है, वहीं वीआईपी एम-वाई (मुस्लिम-यादव) और मल्लाह वोटरों के भरोसे है।

    हालांकि जन सुराज पार्टी के पवन चौधरी स्थानीय मुद्दों पर जोर दे रहे हैं, और निर्दलीय अवनीश कुमार भूमिहार मतदाताओं में सक्रिय हैं। लत्तीपुर के किसान रमेश यादव कहते हैं। लोग तो बहुत हैं, लेकिन असली लड़ाई कमल और नौका में ही है। बाकी सब स्वाद बढ़ाने वाले मसाले हैं।

    पिछले चुनावों में कैसा रहा परिणाम

    2020 का चुनाव बिहपुर के राजनीतिक इतिहास में बड़ा मोड़ साबित हुआ था। भाजपा प्रत्याशी इंजीनियर कुमार शैलेंद्र ने राजद के प्रभाव वाले इस क्षेत्र में लालटेन की परंपरागत रोशनी बुझा दी थी। उन्होंने राजद प्रत्याशी शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल को 6129 मतों के अंतर से हराया था।

    इनमें भाजपा के शैलेंद्र को 48.53 प्रतिशत, राजद के शैलेश कुमार को 44.45 प्रतिशत, बसपा के एमडी हैदर अली को 2.36 प्रतिशत, और निर्दलीय 0.91 प्रतिशत मिले थे। नोटा 1.81 प्रतिशत का बटन दबाया था। बिहपुर का राजनीतिक इतिहास हमेशा दिलचस्प रहा है। इस सीट पर 2000 में राजद के शैलेश कुमार ने बाजी मारी, तो 2005 के दोनों चुनावों में बुलो मंडल राजद के टिकट पर विजयी हुए।

    2010 में भाजपा के कुमार शैलेंद्र ने पहली बार जीत दर्ज की, लेकिन 2015 में राजद की वर्षा रानी ने उन्हें मात दी। 2020 में शैलेंद्र ने दोबारा वापसी करते हुए लालटेन की रोशनी बुझा दी। 2025 का चुनाव आते-आते यह सीट फिर चर्चा में है। इस बार सबसे बड़ा बदलाव यह है कि राजद की सीट सहयोगी दल वीआईपी के पास चली गई।

    अब लालटेन नहीं, तो रोशनी कौन जलाएगा?

    नतीजा, राजद का पारंपरिक चुनाव चिन्ह लालटेन मतपत्र से गायब रहेगा। यही कारण है कि नारायणपुर, बिहपुर और खरीक प्रखंडों में यह सवाल गूंज रहा है। अब लालटेन नहीं, तो रोशनी कौन जलाएगा? बभनगामा बाजार की चाय की दुकान पर चर्चा गर्म थी। बुजुर्ग शिवलाल मंडल बोले पहले हर चुनाव में लालटेन जलती थी, अब बुझ गई।

    अब लोग नया रास्ता देख रहे हैं। उनके बगल में बैठे राजेश मिश्र ने कहा शैलेंद्र जी ने सड़क और पुलिया बनवाई है, जनता उन्हें फिर मौका दे सकती है। वहीं शिक्षिका सुनीता देवी ने कहा महिलाओं में अर्पणा कुमारी का नाम खूब चल रहा है। वे घर-घर जाकर मुद्दों पर बात कर रही हैं।

    इस बार बिहपुर में जातीयता से ज्यादा स्थानीय मुद्दे भी चर्चा में हैं। झंडापुर के सुबोध यादव कहते हैं, लालटेन तो बिहपुर की पहचान थी, अब जब नहीं है, तो चुनाव कुछ बदला-बदला सा लग रहा है। वहीं कालेज छात्रा नेहा गुप्ता कहती हैं, अब युवा वर्ग जात-पात नहीं, काम देखता है। लोग विकास और रोजगार पर वोट देंगे, चिह्न देखकर नहीं।

    दोनों प्रत्याशियों ने झोंकी ताकत

    भाजपा और वीआईपी दोनों ने प्रचार अभियान में पूरी ताकत झोंक दी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सभा नवगछिया में हो चुकी है, जबकि गृहमंत्री अमित शाह सात नवंबर को बिहपुर के जयरामपुर में और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी खरीक के अठगामा हाई स्कूल में जनसभा करेंगे।

    दूसरी ओर, अर्पणा कुमारी ने महिला जनसंपर्क अभियान की शुरुआत बिहपुर बाजार से की है। गांवों की दीवारों पर अब कमल और नौका के निशान साफ दिखने लगे हैं। बिहपुर की राजनीति इस बार प्रतीकों के बदलने और समीकरणों के पुनर्गठन की कहानी बन गई है।

    भाजपा के पास सत्ता और संगठन की ताकत है, तो वीआईपी की अर्पणा कुमारी के पास जनसंपर्क और महिला वर्ग का भरोसा। जन सुराज और निर्दलीयों की मौजूदगी मुकाबले को और दिलचस्प बना रही है।