आठ हजार में जीत गए चुनाव... भागलपुर के इस विधायक की सब देते हैं दाद, अब हो रहा करोड़ों का खेल
Bihar Election 2025: वर्ष 1952 के पहले बिहार विधानसभा चुनाव में भागलपुर सीट से सत्येंद्र नारायण अग्रवाल ने पूरे चुनाव में मात्र आठ हजार रुपये खर्च कर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। टीएनबी कालेज के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डा. रविशंकर कुमार चौधरी ने बताया कि उस दौर में राजनीति को सेवा का माध्यम माना जाता था, न कि शोहरत या संपत्ति अर्जित करने का।

Bihar Election 2025: वर्ष 1952 के पहले बिहार विधानसभा चुनाव में भागलपुर सीट से सत्येंद्र नारायण अग्रवाल विजयी हुए।
परिमल सिंह, भागलपुर। Bihar Election 2025 वक्त के साथ चुनावी राजनीति की तस्वीरें जिस तेजी से बदली हैं, उसे देखकर पुराने जमाने के जनप्रतिनिधि आज हैरान रह जाते हैं। वर्ष 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में भागलपुर सीट से सत्येंद्र नारायण अग्रवाल ने मात्र आठ हजार रुपये खर्च कर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। टीएनबी कालेज इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डा. रविशंकर कुमार चौधरी ने बताया कि उस दौर में राजनीति सेवा का माध्यम मानी जाती थी, न कि शोहरत या संपत्ति अर्जन का।
अग्रवाल जी की सादगी और जनसंपर्क के बल पर हुई यह जीत आज भी राजनीति के लिए मिसाल है। सत्येंद्र नारायण अग्रवाल की जीत का संस्मरण समाजसेवी व गांधीवादी स्व. मुकुटधारी अग्रवाल के किताब 'इंद्रधनुष जैसी जिंदगी' में दर्ज है। इस पुस्तक के अनुसार भागलपुर विधानसभा से सत्येन्द्र नारायण अग्रवाल ने साइकिल और पैदल यात्रा करते हुए गांव-गांव प्रचार किया था। पोस्टर, बैनर या लाउडस्पीकर जैसे साधन सीमित थे। जनता उम्मीदवार के काम, व्यवहार और ईमानदारी के आधार पर वोट करती थी।
वर्तमान परिदृश्य में आसमान छू गया चुनावी खर्च
समय के साथ राजनीति की दिशा और दशा दोनों बदल गई। चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित सीमा भले ही 40 लाख रुपये तक की हो, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बहुत आगे निकल चुकी है। आज एक सामान्य प्रत्याशी को चुनाव प्रचार, जनसंपर्क, वाहनों, सोशल मीडिया प्रचार और कार्यकर्ताओं के प्रबंधन पर करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
नेताओं की सादगी बनाम आज का प्रदर्शनकारी प्रचार
जहां 1950 के दशक में नेता अपने व्यक्तिगत संसाधनों से जनता तक पहुंचते थे, वहीं आज के युग में हेलिकॉप्टर रैलियां, भव्य रोड शो, डिजिटल कैंपेन और जनसभा की लागत चुनाव को एक ‘महासमर’ बना देती है। राजनीति का यह व्यावसायिक रूप लोकतंत्र के उस आदर्श स्वरूप से दूर जाता दिखता है, जहां सेवा सर्वोपरि थी।
जनता में बढ़ती दूरी और पारदर्शिता की मांग
राजनीति को करीब से देखने वाले एसएम कालेज के शिक्षक डा.दीपक कुमार दिनकर का कहना है कि चुनावी खर्च में हुई यह बढ़ोतरी लोकतंत्र के लिए चुनौती है। पारदर्शिता की कमी और धनबल का प्रभाव जनप्रतिनिधित्व की आत्मा को कमजोर कर रहा है। भागलपुर जैसे ऐतिहासिक निर्वाचन क्षेत्र में जहां कभी मात्र कुछ हजार में जनता का विश्वास जीता जाता था, वहीं आज करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी भरोसे की जंग कठिन हो गई है। उन्होंने बताया कि बदलते वक्त में जब चुनावी महासमर धनबल की होड़ में तब्दील हो चुका है, तब पुराने दौर की सादगी और जनविश्वास की कहानी लोकतंत्र की सच्ची आत्मा को याद दिलाती है।
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