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    Bihar Hot Seats 2025: दांव पर सम्राट-विजय और तारकिशोर की प्रतिष्ठा, 3 सीटों पर मुकाबला दिलचस्प

    Updated: Mon, 27 Oct 2025 02:26 PM (IST)

    तारापुर, लखीसराय और कटिहार विधानसभा सीटें राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनी हुई हैं। इन सीटों पर सत्तारूढ़ दलों के शीर्ष नेता चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे मुकाबला दिलचस्प हो गया है। जातीय समीकरणों, स्थानीय मुद्दों और भावनात्मक राजनीति के कारण हर सीट की अपनी अलग चुनौती है। इन चुनावों में सत्ताधारी दलों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, और नतीजे से पहले ही सियासी पारा चढ़ गया है।

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    सम्राट चौधरी, विजय सिन्हा और तारकिशोर प्रसाद।

    जागरण संवाददाता, भागलपुर। तारापुर, लखीसराय और कटिहार विधानसभा सीटें बिहार चुनाव 2025 की सियासत का केंद्र बन गईं हैं। कारण स्पष्ट है, इन तीनों सीटों पर सत्तारूढ़ दलों के शीर्ष चेहरे खुद मैदान में हैं। तारापुर से भाजपा के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, लखीसराय से उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा, और कटिहार से पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद चुनावी अखाड़े में हैं।

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    इन सीटों पर सिर्फ उम्मीदवार ही नहीं, बल्कि सत्ता पक्ष की साख और सियासी प्रतिष्ठा भी दांव पर है। हर सीट का समीकरण अलग है। कहीं जातीय गणित, कहीं स्थानीय नाराजगी तो कहीं परिवार और भावनाओं की राजनीति ने मुकाबले को पेचीदा बना दिया है।

    तारापुर में कुशवाहा बनाम वैश्य, लखीसराय में कांग्रेस बनाम एनडीए और कटिहार में वैश्य मतों की टूट-फूट ने चुनावी हवा बदल दी है। तीनों सीटों पर सीन गर्म है और मतदान के पहले ही सियासी तापमान चरम पर है।

    कुशवाहा व वैश्य वोटरों पर टिकी किस्मत, बिंद समाज भी ताकतवर

    मुंगेर जिले की तारापुर सीट पर पूरे राज्य की नजर है। यहां से उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। उनके सामने राजद के अरुण कुमार हैं, जो वैश्य समाज से हैं। यहां मुकाबला जातीय संतुलन और सियासी प्रतिष्ठा का विषय बन गया है। तारापुर में कुशवाहा (कोइरी) समुदाय का वर्चस्व है, जबकि वैश्य, यादव और अतिपिछड़े मतदाता भी बड़ी संख्या में हैं।

    सम्राट चौधरी का कुशवाहा समाज से होना उनके पक्ष में माहौल बना रहा है। इस बीच पूर्व वीआईपी नेता सकलदेव बिंद ने निर्दलीय नामांकन वापस लेकर सम्राट को समर्थन दे दिया है, जिससे लगभग 25 हजार बिंद मतदाता एनडीए के साथ जाते दिख रहे हैं।

    पिछली बार यह सीट जदयू के पास थी, जो अब भाजपा को मिली है। लगभग 3.10 लाख मतदाताओं में कुशवाहा सबसे बड़ी ताकत हैं, जबकि 15 प्रतिशत अनुसूचित जाति और सात प्रतिशत मुस्लिम मतदाता यहां निर्णायक भूमिका में होंगे। छह बार विधायक रह चुके शकुनी चौधरी इस बार बेटे सम्राट के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं।

    लखीसराय में एनडीए और महागठबंधन में कांटे का मुकाबला

    लखीसराय विधानसभा सीट पर मुकाबला बेहद रोमांचक हो गया है। उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा एनडीए के प्रत्याशी हैं और लगातार चौथी जीत की कोशिश में हैं। उनके सामने कांग्रेस के अमरेश कुमार अनीश ताल ठोक रहे हैं, जो 2020 में सिन्हा को कड़ी टक्कर दे चुके हैं। तब अमरेश को महज 10,483 मतों से हार का सामना करना पड़ा था।

    इस बार समीकरण पिछले चुनाव से बिल्कुल अलग हैं। पूर्व विधायक फुलैना सिंह और निर्दलीय रहे सुजीत कुमार अब कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में खुलकर प्रचार कर रहे हैं। दोनों को पिछली बार करीब 22 हजार वोट मिले थे। बड़हिया और टाल क्षेत्र में अनीश का प्रभाव बढ़ा है, जबकि शहर और व्यापारी वर्ग में विजय सिन्हा की पकड़ कायम है।

    विकास और स्थानीय मुद्दों पर नाराजगी की चर्चा भी लखीसराय में माहौल को पेचीदा बना रही है। वैश्य, कुशवाहा, यादव और अल्पसंख्यक मतदाता यहां का चुनावी गणित तय करेंगे। कुल मिलाकर यहां एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला दिख रहा है।

    कटिहार में सौरभ अग्रवाल की एंट्री से बदला समीकरण

    कटिहार विधानसभा क्षेत्र में इस बार मुकाबला दिलचस्प हो गया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद लगातार पांचवीं बार चुनावी मैदान में हैं। शुरुआत में भाजपा खेमे में पूरा आत्मविश्वास था, लेकिन अब सीन बदल चुका है।

    महागठबंधन के घटक वीआईपी से भाजपा एमएलसी अशोक अग्रवाल के पुत्र सौरभ अग्रवाल के मैदान में उतरने से भाजपा के परंपरागत वैश्य वोट बैंक में हलचल मच गई है।

    सौरभ का कटिहार से जुड़ाव उन्हें शहरी मतदाताओं और व्यापारी वर्ग में लोकप्रिय बना रहा है। उन्हें वीआईपी प्रत्याशी के रूप में राजद-कांग्रेस का भी समर्थन मिल रहा है। राजद के पूर्व मंत्री रामप्रकाश महतो निर्दलीय लड़ रहे हैं, जो यादव और ग्रामीण वोटरों में सेंध लगा सकते हैं।

    वहीं, जनसुराज के मोहम्मद गाजी शरीफ मुस्लिम मतों पर प्रभाव डाल रहे हैं। कटिहार के लगभग 25 प्रतिशत मुस्लिम और बड़ी संख्या में वैश्य मतदाता चुनावी गणित का केंद्र हैं। शहर भाजपा के साथ, लेकिन देहात में समीकरण फिसलते दिख रहे हैं। सौरभ की एंट्री ने चुनाव को पारिवारिक और भावनात्मक रंग दे दिया है।