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    जितिया व्रत 2025: 14 सितंबर को सूर्योदय के साथ शुरू होगा निर्जला उपवास, जानिए शुभ मुहूर्त

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 03:02 PM (IST)

    इस बार जीवित्पुत्रिका यानि जितिया व्रत 13 सितंबर को ओठगन पूजा से शुरू होगा। पंडित संजय झा के अनुसार व्रती माताएं 13 सितंबर की रात तक ओठगन पूजन कर सकती हैं। 14 सितंबर को निर्जला उपवास होगा और 15 सितंबर को व्रत का पारण होगा। यह व्रत संतान की दीर्घायु के लिए किया जाता है जिसमे माताएं निर्जला व्रत रखती हैं और जीमूतवाहन की पूजा करती हैं।

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    जितिया व्रत 2025: 14 सितंबर को सूर्योदय के साथ शुरू होगा निर्जला उपवास, जानिए शुभ मुहूर्त

    मिथिलेश कुमार, बिहपुर। जीवित्पुत्रिका यानि जितिया व्रत (Jitiya Vrat 2025 Date) का प्रारंभ इस बार 13 सितंबर को ओठगन पूजा के साथ होगा। बिहपुर के सोनवर्षा निवासी अखिल भारतीय पुरोहित महासंघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पंडित संजय झा बताते हैं कि इस बार मिथिला पंचाग के अनुसार, 13 सितंबर को षष्ठी तिथि का समापन होने बाद दिन के 11:15 बजे से सप्तमी तिथि का प्रवेश होगा।

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    व्रती माताएं 13 सितंबर की पूरी रात तक ही ओठगन पूजन कर विशिष्ठ भोजन कर सकती हैं। 14 सितंबर को सूर्योदय काल से प्रदोष व्यापिनी अष्टमी तिथि रहने के कारण व्रती निराहार व निर्जला उपवास करेंगी, जबकि व्रत का पारण यानि समापन 15को प्रात: 06:36 बजे होगा।

    कुपुत्रो जायेत क्वाचिदपि कुमाता न भवित अर्थात पुत्र कुपुत्र हो सकता है पर माता कुमाता कभी नहीं।इसी संदेश को चरितार्थ करता है माताओं के द्वारा आश्विन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाने वाला कठिन तप व्रत जीवित्पुत्रिका यानि जितिया व्रत।

    पंडित संजय झा बताते हैं कि माताओं द्वारा अपनी संतानों के लिए किए जाने वाला यह तप व्रत व्रती माताओं के लिए काफी कष्टकारी होता है। जिसमें अन्न तो दूर व्रती माता पानी की एक बूंद भी व्रत के पारण के पूर्व ग्रहण नहीं करती हैं।

    पंडित श्री झा ने कहा कि यह व्रत सनातन धर्म के अनुसार माताएं पुरातन काल से करती चली आ रही हैं। यह कठिन तप व्रत एक मां के सिवा कोई दूसरा कर भी नहीं सकता है। व्रती मां अपनी संतान के सौभाग्य व दीर्घायु जीवन के लिए सनातन धर्म के विधिविधानुसार सतयुग से करती आ रही है।

    इस व्रत में व्रती माताएं डाला भरती हैं, जिसमें कुशी मटर, मिठाई, बांस, बेल, जील व झिंगली के पत्ते देकर उसे मान के एक पत्ते से ढक देती हैं। ऐसी मान्यता है कि डाल में भरे बांस को वंश, जील को जीव, बेल को सिर के रूप में पूजा जाता है।

    इस व्रत में राजा शालिवाहन के पुत्र जीमुतवाहन की पूजा होती है। गंगापार यानि नवगछिया अनुमंडल समेत पूरे अंगप्रदेश में इस व्रत के प्रति लोगों की गहरी आस्था व श्रद्धा व माताओं का अटूट विश्वास है।