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    JLNMCH Bhagalpur में मरीजों का इलाज करते-करते 5 डाक्टरों की जान पर आफत... 3 को संक्रमण, 2 को एमडीआर टीबी

    Updated: Mon, 01 Sep 2025 01:45 AM (IST)

    JLNMCH Bhagalpur पूर्वी बिहार के सबसे बड़े अस्पताल जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कालेज एंड हास्पिटल में मरीजों का इलाज करते-करते तीन डाक्टर को संक्रमण और दो डाक्टर को एमडीआर टीबी की गंभीर बीमारी लग गई है। जेएलएनएमसीएच प्रबंधन ने बताया कि अब पांचों डाक्टरों की स्थिति सामान्य है। वे विभाग में नियमित ड्यूटी कर रहे हैं। यहां पिछले दिनों ब्रेन टीबी के शिकार छात्र की मौत हो गई थी।

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    JLNMCH Bhagalpur के पांच डाक्टरों में संक्रमण के चलते जान पर आफत बन आई है।

    जागरण संवाददाता, भागलपुर। Bihar News जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कालेज अस्पताल के टीबी एवं चेस्ट रोग विभाग में संक्रमित चिकित्सकों (एमबीबीएस इंटर्न) की स्थिति अब धीरे-धीरे सामान्य होने लगी है। विभाग के मुताबिक, फिलहाल पांच डाक्टर इस संक्रमण के शिकार हैं। इनमें में सिर्फ दो ही एमडीआर टीबी के शिकार हैं। तीन डाक्टरों के शरीर में केवल संक्रमण है। संक्रमित डाक्टर तीन माह में ही ठीक हो जाएंगे। वहीं, विभाग का कहना है कि जिस छात्र की मौत एमडीआर टीबी से होने की बात कही जा रही है, वह छात्र ब्रेन टीबी का शिकार था।

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    सीवाई टीबी जांच में संक्रमित मिले थे तीन डाक्टर

    टीबी एवं चेस्ट विभाग में कार्यरत चिकित्सकों की सीवाई टीबी जांच कराई गई थी। इस जांच से यह पता चलता है कि किसी व्यक्ति के शरीर में टीबी का संक्रमण तो नहीं है। संक्रमण मिलने पर आगे चल कर टीबी के रोगी होने की संभावना रहती है। सीवाई जांच में विभाग के तीन चिकित्सक (एमबीबीएस इंटर्न) संक्रमित मिले। ये छात्र अस्पताल के इस वार्ड में कार्य करते हैं। संक्रमित होने के बाद तीनों इंटर्न छात्रों को तुरंत दवा आरंभ किया गया। जिसके बाद इनका संक्रमण धीरे-धीरे कम होने लगा है। अब ये सामान्य रूप से कार्य भी कर रहे हैं।

    दो छात्र एमडीआर टीबी के, धीरे-धीरे हो रहे ठीक

    टीबी एवं चेस्ट विभाग में ही कार्य करने वाले दो इंटर्न छात्र एमडीआर टीबी के शिकार हैं। इनमें एक छात्र जून माह से एमडीआर टीबी की दवा खा रहे हैं जबकि, दूसरा सात माह से दवा खा रहे हैं। रोग निकलते ही दोनों छात्रों की दवा आरंभ कर दी गई थी। इन दोनों की स्थिति में भी तेजी से सुधार हो रहा है। ये सावधानी के साथ मरीजों का इलाज भी कर रहे हैं। इन दोनों के अलावा विभाग के कोई भी डाक्टर इस रोग से ग्रसित नहीं है।

    मृतक छात्र ब्रेन टीबी का रोगी था

    पिछले दिनों इंटर्न कर रहे एक छात्र की मौत हो गई थी। जिसके बाद टीबी का यह मामला सामने आया। विभाग के मुताबिक जिस इंटर्न छात्र की मौत हुई थी, वह ब्रेन टीबी का शिकार था। जिसे चिकित्सीय भाषा में ट्यूबरकुलस मेनिन्जाइटिस या इंट्राक्रैनियल ट्यूबरकुलोमा कहा जाता है। चिकित्सकों के अनुसार ब्रेन टीबी का मरीज किसी दूसरे को संक्रमित नहीं करता है। टीबी रोग में इस टीबी को सबसे खतरनाक माना जाता है।

    सामान्य तौर पर 40 प्रतिशत लोगों के शरीर में टीबी का जीवाणु से होता है। अगर किसी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है तो वह टीबी का रोगी हो जाता है। टीबी शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है। ऐसे में अगर टीबी का जीवाणु मस्तिष्क के अंदर चला जाता है तो यह ब्रेन टीबी हो जाता है। सामान्य रूप से टीबी की दवा छह से नौ माह खायी जाती है।

    ब्रेन टीबी के मरीज को डेढ़ साल दवा खानी होती है। अगर यह मरीज अचानक बेहोश हो जाए तो तत्काल इलाज की जरूरत होती है। इलाज नहीं मिलने पर मरीज कोमा में चला जाता है। जिससे बचने की संभावना बेहद कम हो जाती है। वहीं जिस छात्र की मौत हुई है वह सामान्य एवं एमडीआर टीबी का रोगी नहीं था।

    क्या होता है एमडीआर टीबी

    एमडीआर टीबी (मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस) एक प्रकार की टीबी है। जो सामान्य टीबी दवाओं के प्रतिरोधी होती है। सामान्य टीबी रोगी को जो दवा दी जाती है। अगर रोगी दवा का सेवन नहीं करे या रोगी के शरीर में जो जीवाणु है वह नहीं मरता है तो एमडीआर टीबी हो जाता है।