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    महज 13 साल की उम्र में पूर्णिया से उठी थी लिली रे की डोली, मरीचिका के लिए मिला था साहित्य अकादमी पुरस्कार

    By Dilip Kumar ShuklaEdited By:
    Updated: Fri, 04 Feb 2022 09:56 PM (IST)

    Lily Ray passes away लिली रे के रुप में फणीश्वरनाथ रेणु की माटी ने एक और नूर खो दिया। उनका निधन 4 फरवरी 2022 को हो गया। 1982 में उपन्यास मरीचिका के लिए उन्‍होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था। उनकी शादी 13 वर्ष की उम्र में हो गई थी।

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    Lily Ray passes away: लिली रे का जन्म लालगंज में हुआ था

    प्रकाश वत्स, पूर्णिया। मैथिली की मूर्धन्य साहित्यकार लिली रे के रुप में कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की माटी ने एक और नूर खो दिया। सन 1982 में अपनी चर्चित उपन्यास मरीचिका के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लिली रे का यूं जाना हर किसी को खल रहा है। जिले के केनगर प्रखंड के रामनगर गांव में तत्कालीन स्टेट परिवार में जन्म लेने वाली लिली रे का इस क्षेत्र से दिली जुड़ाव उनकी रचनाओं में भी दिखता रहा। महज 13 साल की उम्र में ही यहां से उनकी डोली उठी थी। आज उनकी अर्थी उठने की खबर ने यहां के हर शख्स को गमजदा कर दिया है।

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    मधुबनी जिले के लालगंज में हुआ था जन्म

    रामनगर स्टेट के वर्तमान पीढ़ी के हिमकर मिश्रा ने बताया कि लिली रे उनकी बुआ थी। उनके पूर्वज मूल रुप से मधुबनी जिले के लालगंज के रहने वाले थे। लिली रे का जन्म लालगंज में ही हुआ था। उनके जन्म के बाद ही स्टेट की हिस्सेदारी में उन लोगों की हिस्सेदारी में रामनगर स्टेट आया था और उनके दादा यानि लिली रे के पिता भीमनाथ मिश्र यहां आ गए थे। स्व. भीमनाथ मिश्र प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे। यहां 13 वर्ष की आयु में उस दौर की प्रथा के अनुसार उनकी शादी वर्तमान कटिहार जिले के दुर्गागंज निवासी डा. हरेंद्र नारायण रे से हुआ था। वहां से वे लोग दार्जिलिंग शिफ्ट कर गए थे और बाद के दिनों में दिल्ली में अपने आईएएस पुत्र के पास रहने लगी थी।

    कभी नहीं देखी थी स्कूल का मुंह मगर बर्लिन तक बजा कलम डंका

    बतौर हिमकर मिश्रा उस समय उनका परिवार इलाके का राज परिवार माना जाता था। लिली रे परिवार में राजकुमारी की तरह थी। वे सबकी दुलारी थी। ऐसे में वे कभी स्कूल नहीं गई। कुछ दिनों तक उनके लिए शिक्षक ही घर पर आते थे। बाद में महज 13 साल में ही उनकी शादी हो गई और फिर स्कूल या कालेज की पढ़ाई से वे पूरी तरह वंचित रह गई। बतौर श्री मिश्रा उनकी बुआ को पढऩे लिखने का शौक बचपन से ही था। शादी के बाद जब उनकी बुआ ससुराल जा रही थी तो एक पेटी में केवल पुस्तक व अन्य सामग्री थी। भावों को जीने वाली लिली रे की लेखन यात्रा सन 1953 से आरंभ हुई और 1982 में चर्चित उपन्यास मरीचिका के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। बाद में पूर्णिया के ही माटी के कालजयी बांग्ला साहित्यकार सतीनाथ भादुड़ी की अमर कृति जागरी का अंग्रेजी में विजील नाम से अनुवाद किया, जो जर्मनी सहित कई देशों में काफी लोकप्रिय रही।

    छद्म नाम से छपी थी पहली कहानी, सामाजिक वर्जनाओं पर कुठाराघात था मरीचिका

    लिली रे की पहली कहानी रोगिनी थी। मैथिली में यह उनकी पहली रचना उनके छद्म नाम कल्पना शरण के नाम के छपी थी। बाद में उन्होंने वास्तविक नाम से कई कहानियां व उपन्यास भी लिखी। चर्चित उपन्यास सामाजिक वर्जनाओं पर बड़ा कुठाराघात था। बेमेल प्रेम के बाद सामाजिक प्रताडऩा व प्रेमी युगल के पलायन की पीड़ा को उसमें रखने का प्रयास था। मैथिली के साहित्यकार सुरेंद्रनाथ मिश्र के अनुसार दरअसल इस उपन्यास में हर चीज छायावाद में लिखी गई थी। इसका विषय वस्तु इसी इलाके के एक अन्य राजघराने के इर्द-गिर्द केंद्रित था।

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