Lily Ray passes away: कटिहार और पूर्णिया के साहित्य जगत में शोक, गम में डूबा दुर्गागंज
Lily Ray passes away साहित्यकार लिली रे के निधन की सूचना से कटिहार और पूर्णिया के साहित्यकारों में शोक है। कटिहार के दुर्गागंज गांव में हर ओर शोक है। उनके भतीजा ने बताया कि 40 वर्षों से उनकी चाची गांव नहीं आई थी।

नीरज श्रीवास्तव, हसनगंज (कटिहार)। सुप्रसिद्ध मैथिली साहित्यकार लिली रे के निधन की सूचना मिलते ही दुर्गागंज गांव में शोक की लहर दौड़ गई। गांव से कोई खास लगाव नहीं होने पर भी ग्रामीण उनकी उपलब्धि पर नाज करते थे। लिली रे के भतीजा सुरेंद्र नारायण राय ने बताया कि पिछले 40 वर्षों से उनकी चाची गांव नहीं आई थी। चाचा जब तक जीवित रहे उनके साथ कभी कभी गांव आ जाया करती थी।
10 वर्ष पूर्व चाचा डा. एचएन राय का भी निधन हो गया है। घर के सभी गांव से बाहर रहते हैं। 1940 में लिली रे की शादी हुई थी। विवाह के बाद कुछ वर्षों तक दुर्गापूजा सहित घर में होने वाले मांगलिक सहित अन्य कार्यक्रमों में आना जाना हुआ था। लेकिन पिछले कई वर्षों से दिल्ली में अपने छोटे बेटे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे अरविंद रे के साथ ही रहा करती थी। गांव के नई पीढ़ी को उनके विषय में कोई खास जानकारी नहीं है।
बुजुर्ग बतासते हैं कि 1982 में मरीचिका उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलने पर गांव में जश्न मनाया गया था। 4 फरवरी 2022 को निधन की सूचना सुरेंद्रे नारायण को उनके एक रिश्तेदार ने दी। उन्होंने कहा कि निधन से परिवार में गम का माहौल है। परिवार के कुछ सदस्य दिल्ली रहते हैं। श्राद्ध कर्म में दिल्ली में रहने वाले रिश्तेदार व परिवार के लोग शामिल होंगे।
सुरेंद्र बताते हैं कि उनकी चाची के बड़े पुत्र रविदं रे जेएनयू में प्राध्यापक थे। कुछ वर्ष पूर्व उनका निधन हो गया। लीली रे को जानने वाले कुछ ग्रामीणों ने बताया कि सार्वजनिक कार्यक्रमों से वह दूर रहा करती थी। लेकिन लोगों से घुलना मिलना तथा खुलकर बातें करना उनका शगल था। ग्रामीणों ने कहा कि लिली जी के कारण साहित्य क्षेत्र में उनके गांव की पहचान थी।
लिली रे के निधन से साहित्य जगत में शोक, दी श्रद्धांजलि
मैथिली भाषा की मूर्धन्य साहित्यकार लिली रे के निधन की खबर से साहित्य जगत में भी शोक की लहर दौड़ गई है। पूर्णिया के साहित्यकारों ने इसे अपूरणीय क्षति बताते हुए उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किया है। बता दें कि लिली रे ने अपने जीवन काल में मैथिली साहित्य में उल्लेखनीय योगदान दिया। उनके द्वारा रचित कृति में रंगीन पर्दा और मरीचिका सबसे ज्यादा चर्चित रही। सन 1982 में साहित्य अकादमी की ओर से उन्हें उनकी उल्लेखनीय कृति मरीचिका के लिए सम्मानित भी किया गया था। साथ ही उन्होंने कई हिंदी और बांग्ला भाषा की कृति का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया है।
साहित्यकारों ने कहा कि उनके यूं चले जाने से साहित्य जगत की जो क्षति हुई है, उसकी भरपाई शायद अब कभी संभव नहीं हो पाएगी। श्रद्धांजलि देनेवालों में पूर्णिया की साहित्यिक चौपाल चटकधाम से आकाशवाणी के पूर्व निदेशक विजय नंदन प्रसाद, वरिष्ठ कवि गौरी शंकर पूर्वोत्तरी, मदन मोहन मर्मज्ञ, गिरिजा नंदन मिश्र, अवकाश प्राप्त प्रोफेसर अमरेंद्र ठाकुर, वरिष्ठ कथाकार चंद्रकांत राय, पूर्णिया विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. शंभू कुशाग्र, महेश विद्रोही, कवि संजय सनातन, वरिष्ठ रंगकर्मी व लेखक गोविंद प्रसाद दास, रंजीत तिवारी, प्रियंवद जायसवाल, सुनील समदर्शी, युवा कवि अतुल मलिक अनजान, साहित्यिक पत्रिका संस्पर्श के संपादक उमेश पंडित उत्पल, साहित्यकार भोलानाथ आलोक, शिवनारायण शर्मा व्यथित व डा. रामनरेश भक्त शामिल हैं।
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