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    कहलगांव से गोपालपुर तक एनडीए को मजबूत जनादेश, फिर भी अंग को मंत्री पद का इंतजार

    By Sanjay SinghEdited By: Nishant Bharti
    Updated: Thu, 20 Nov 2025 07:18 PM (IST)

    कहलगांव से गोपालपुर तक एनडीए को मजबूत समर्थन मिलने के बावजूद, अंग क्षेत्र को अभी भी मंत्री पद का इंतजार है। स्थानीय लोगों का मानना है कि क्षेत्र को सरकार में उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए ताकि विकास हो सके। वे सरकार से इस मामले पर ध्यान देने का आग्रह कर रहे हैं।

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    नीतीश कुमार के नए मंत्री

    संजय सिंह, भागलपुर। एनडीए की नई सरकार के गठन ने अंग प्रदेश में उत्साह का नया माहौल बनाया है। भागलपुर और बांका दोनों जिलों में जिस तरह सत्ता पक्ष के उम्मीदवारों को भारी समर्थन मिला, उसने यह उम्मीद पैदा की कि इस बार क्षेत्र का प्रतिनिधित्व सरकार में मजबूती से दर्ज होगा। 

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    चुनावी नतीजों ने साफ कर दिया था कि अंग प्रदेश ने बीजेपी–जदयू गठबंधन पर भरोसा जताते हुए कई नए और पुराने चेहरों को निर्णायक जनादेश दिया है। यही कारण था कि मंत्रिमंडल गठन से पहले यहां का वातावरण उम्मीदों से भरा हुआ था।

    लेकिन पहली सूची जारी होने के बाद इस उम्मीद के बीच हल्की-सी निराशा जरूर महसूस की गई। वजह यह कि क्षेत्र से कई नये विजेता और युवा चेहरों की चर्चा चल रही थी, पर शुरुआती चरण में किसी को भी जगह नहीं मिली। 

    अब पूरे इलाके में यह सवाल घूम रहा है कि इतनी मजबूत जीत और विविध प्रतिनिधित्व वाले परिणाम आने के बावजूद अंग प्रदेश पहली सूची से बाहर कैसे रह गया।

    कहलगांव के विधायक शुभानन्द मुकेश उन चेहरों में प्रमुख थे जिन पर क्षेत्र की नजर टिकी थी। उनका टिकट मुख्यमंत्री की पहल पर आया था और यह उनके पिता, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सदानन्द सिंह की राजनीतिक विरासत का सम्मान भी माना गया। कहलगांव की जनता ने उन्हें जिस मजबूती से जिताया, उसने इस उम्मीद को और मजबूत किया था कि नई सरकार में क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के तौर पर उनका नाम सामने आ सकता है।

    बुलो मंडल भी थे दावेदार

    इसी तरह बुलो मंडल भी प्रभावशाली दावेदारों में शामिल थे। राजद से हाल में आए और जदयू के टिकट पर गोपालपुर से भारी मतों से विजयी बुलो को लेकर यह माना जा रहा था कि गंगोता समाज में मजबूत पकड़ के कारण उन्हें शामिल कर पार्टी सामाजिक समीकरणों को मजबूती दे सकती है। उनकी जीत ने उनके प्रभाव को और स्पष्ट किया, इसलिए उम्मीदें भी अधिक थीं।

    पिछली सरकार में मंत्री रह चुके जयंत राज का नाम भी संभावित सूची में मजबूती से शामिल था। कामकाज का अनुभव और क्षेत्रीय पकड़ ने उन्हें स्वाभाविक दावेदारों की कतार में रखा था। लेकिन इस बार उनकी वापसी नहीं हुई, जिससे राजनीतिक हलकों में नई चर्चा खड़ी हो गई है कि अब प्राथमिकताए किस आधार पर तय हुईं।

    कई नए विधायकों से थी उम्मीद

    इन तीन नामों के अलावा भी अंग प्रदेश में कई नए और उभरते चेहरे जीतकर आए हैं जिन्होंने चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया है। इनमें युवाओं, नयी सामाजिक पृष्ठभूमियों और पहली बार विधानसभा पहुंचे नेताओं का अच्छा मिश्रण शामिल है। 

    इलाके में यह धारणा थी कि चूंकि इस बार परिणाम विविध सामाजिक समूहों को प्रतिबिंबित करते हैं, इसलिए मंत्रिमंडल में भी इससे मिलती-जुलती झलक दिखेगी। इन नए विधायकों में ऊर्जा और जनाधार दोनों मौजूद हैं, और माना जा रहा था कि सरकार के विस्तार में इनमें से कुछ को जिम्मेदारी मिल सकती है।