आरा में 'अतिक्रमण हटाओ अभियान' का नहीं दिख रहा असर, कार्रवाई के अगले ही दिन सड़क पर सजीं दुकानें
आरा शहर में अतिक्रमण हटाओ अभियान विफल होता दिख रहा है। कार्रवाई के अगले ही दिन सड़कों पर दुकानें फिर से सज गईं, जिससे यातायात बाधित हो गया। नगर निगम के अभियान का कोई खास असर नहीं दिख रहा है, क्योंकि दुकानदार बार-बार अतिक्रमण कर रहे हैं। प्रशासन को स्थायी समाधान निकालने की आवश्यकता है।

सड़कों पर सजी दुकानें। फोटो जागरण
जागरण संवाददाता, आरा। मंगलवार को जिला प्रशासन और नगर निगम की संयुक्त टीम ने शहर के प्रमुख इलाकों में अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया। सड़क, फुटपाथ और बाजार क्षेत्रों में फैले अवैध कब्जों को हटाया गया, लेकिन अभियान खत्म होते ही बमुश्किल चौबीस घंटे भी नहीं बीते और बुधवार की सुबह फिर से वही पुराना नज़ारा दिखाई देने लगा।
दुकानें दोबारा सड़कों पर सज चुकी थीं। यह स्थिति साफ दिखाती है कि अतिक्रमण हटाने का यह अभियान कितनी मजबूरी में और कितनी औपचारिकता के साथ चल रहा है।
स्थायी समाधान नहीं
शहरवासियों का कहना है कि यह प्रशासन की सबसे बड़ी बिडम्बना है कि अतिक्रमण हटाने के बाद भी स्थायी समाधान नहीं निकल पा रहा है। कई दुकानों के आगे कई-कई छोटी दुकानें और ठेले सजे दिखते हैं। एक दुकान के पीछे दुकान का मोहरा और उसके आगे ठेला लगाने का चलन आम हो चुका है।
इन ठेलों से न केवल जगह घिरी रहती है, बल्कि कई दुकानदार इनसे किराया भी वसूलते हैं। यह पूरा तंत्र अवैध तरीके से चल रहा है, जिससे शहर की सड़कें और बाजार लगातार बेहाल हो रहे हैं।
स्थानीय लोगों में मंटू का कहना है कि अतिक्रमण सिर्फ छोटे ठेला वालों की वजह से नहीं बल्कि उन दुकानदारों और मकान मालिकों की वजह से भी बढ़ रहा है जो फुटपाथ और सड़क के हिस्से पर कब्जा कर व्यवसाय चला रहे हैं।
कई लोग अपने दुकानों के आगे अस्थायी शेड, काउंटर, बोर्ड, कपड़े, चप्पल, सब्जियां और दूसरे सामान की दुकानें लगवा देते हैं। जब भविष्य में कार्रवाई होती है तो यह पूरा स्ट्रक्चर हटता है, लेकिन अगले ही दिन वापस खड़ा कर दिया जाता है।
तय कर रखा है किराया
सूत्र बताते हैं कि कई ठेला दुकानदारों को घूम-घूमकर बिक्री करने का नियम है, लेकिन शहर में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्होंने स्थायी ठेला लगाकर महीने का 10 हजार रुपये तक किराया तय कर लिया है।
यह न सिर्फ नियमों का उल्लंघन है बल्कि शहर की यातायात व्यवस्था की भी सबसे बड़ी समस्या बन चुका है। दिन में जहां अतिक्रमण हटाया जाता है, वहीं शाम होते ही पूरा इलाका फिर से दुकानों से भर जाता है।
जुर्माना लगाने की मांग
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि जब तक फोटो सहित पहचान कर स्थायी दुकानदारों, मकान मालिकों और किराए पर दुकान चलाने वालों पर भारी जुर्माना नहीं लगेगा, तब तक शहर से अतिक्रमण हट पाना मुश्किल है।
केवल ठेला हटाने से समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि उन लोगों पर भी कार्रवाई जरूरी है जो इस पूरे सिस्टम को बढ़ावा देते हैं। नगर निगम के अधिकारियों पर भी सवाल उठ रहे हैं कि आखिर बार-बार अभियान चलाने के बावजूद परिणाम स्थायी क्यों नहीं निकल रहा।
लोगों ने मांग की है कि प्रशासन अभियान को दिखावे तक सीमित न रखकर इसे सख्ती से लागू करे और दंडात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करे।

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