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    Air Pollution: बिहार में बक्सर की हवा सबसे खराब, खतरनाक स्तर पर पहुंचा AQ; सामने आई वजह

    Updated: Sun, 19 Jan 2025 06:30 PM (IST)

    बिहार के बक्सर में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है जिससे लोग चिंतित हैं। बीते 24 घंटे में शहर का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 278 दर्ज किया जा रहा है जो खराब की श्रेणी में आता है। रविवार को राज्य के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में बक्सर नंबर एक पर रहा। शहर में हवा की गुणवत्ता को बिगाड़ने में धूलकणों का अहम योगदान है।

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    बक्सर में सुबह के समय छाया धुंध। (जागरण फोटो)

    जागरण संवाददाता, बक्सर: लगातार चौथे दिन बक्सर प्रदेश का सबसे प्रदूषित शहर रहा है। हालंकि लगातार दूसरे दिन इसमें मामूली सुधार भी हुआ है। रविवार की शाम केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी दैनिक रिपोर्ट में इसकी पुष्टि हुई है।

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    इसके मुताबिक बीते 24 घंटे के अंदर शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक 278 दर्ज किया गया है, जो खराब की श्रेणी में आता है।

    शहर की हवा की गुणवत्ता मापने के लिए चरित्रवन स्थित बिजली कार्यालय में उपकरण लगाए गए हैं। यहां लगाए गए एक डिस्प्ले बोर्ड पर वायु प्रदूषण का लाइव हाल भी प्रदर्शित किया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार शहर की हवा को प्रदूषित करने में सबसे बड़ा योगदान पीएम 2.5 कणों का है।

    हवा में इन कणों की मात्रा बढ़ना फेफड़ों के लिए अधिक हानिकारक है, क्योंकि इनका आकार छोटा होने के कारण ये आसानी से श्वसन प्रणाली के अंदर तक चले जाते हैं।

    बिहार के दूसरे सभी शहर बक्सर से पीछे हैं।  अगर बिहार के दूसरे शहरों की बात करें, तो आरा 147, औरंगाबाद 211, बेगूसराय 161, बेतिया 149, भागलपुर 98, छपरा 84, गया 205, हाजीपुर 156, कटिहार 66, किशनगंज 181, मोतिहारी 161, मुजफ्फरपुर 132, पटना 192, पूर्णिया 138, राजगीर 208, सासाराम 98 और सिवान 105 एक्यूआई के साथ प्रदूषण के मामले में बक्सर से पीछे रहे।

    देश के दूसरे प्रमुख शहरों की बात करें, तो अगरतला 185, अहमदाबाद 157, आइजोल केवल 35, आगरा 86, बेंगलुरु 95, भोपाल 143, भुवनेश्वर 210, चंडीगढ़ 300, दिल्ली का एक्यूआई 368 दर्ज किया गया है। राष्ट्रीय स्तर पर भी कुछ ही शहर प्रदूषण के मामले में बक्सर से खराब हाल वाले रहे।

    ठोस कणों की अधिक मात्रा से प्रदूषित हो रही हवा

    केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में हवा की गुणवत्ता मापने के लिए सात कारकों को देखा जाता है। इनमें ओजोन, कार्बन मोनो आक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड, अमोनिया, नाइट्रोजन डाई आक्साइड, पीएम 2.5 और पीएम 10 कण शामिल हैं।

    बक्सर की बात करें तो बीते 24 घंटे के अंदर नाइट्रोजन डाई आक्साइड, अमोनिया और सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा लगातार नियंत्रण में ही रही है। लेकिन पीएम 2.5 की मात्रा ज्यादातर समय में खतरनाक, जबकि पीएम 10 चेतावनी स्तर पर रहा है।

    कार्बन मोनो आक्साइड की मात्रा शाम को बढ़कर चेतावनी स्तर तक पहुंच रही है। शहर के बीच से सैकड़ों ट्रक, जिनमें 90 प्रतिशत बालू लदे होते हैं, उनकी आवाजाही से हवा का हाल बिगड़ता रहा है। हालांकि यह नियमित समस्या है और हवा में प्रदूषण की परेशानी बीते चार दिनों में काफी अधिक बढ़ गई है।

    ईंधन के रूप में कोयले के इस्तेमाल से बढ़ती कार्बन मोनो आक्साइड

    कार्बन मोनो आक्साइड पैदा करने में कच्चे कोयले का ईधन के रूप में इस्तेमाल प्रमुख वजह माना जाता है। शाम के वक्त कुछ घरों में अभी भी ईंधन के रूप में कोयले का इस्तेमाल हो रहा है। वहीं नुक्कड़ पर चाय-नाश्ते की दुकान चलाने वाले भी कोयले का इस्तेमाल कर रहे हैं। शाम को इसकी मात्रा बढ़ने का प्रमुख कारण नुक्कड़ की दुकानों पर कोयले का इस्तेमाल करना हो सकता है।

    सुबह 11 बजे से बढ़ रही पीएम 2.5 की मात्रा

    बीते 24 घंटे के लिए शहर की हवा के विश्लेषण से पता चलता है कि पीएम 2.5 की मात्रा सुबह 11 बजे से बढ़ना शुरू हो रही है। यह स्थिति रात एक बजे तक रही। रात दो बजे से सुबह 11 बजे के बीच इसका स्तर थोड़ा कम रहा है। पीएम 10 का उच्चतम स्तर रात 10 बजे के आसपास दर्ज किया गया है। बीते 24 घंटे में पीएम 2.5 का न्यूनतम, उच्चतम और औसत स्तर क्रमश: 173, 388 और 278 रहा। इसी तरह पीएम 10 का स्तर क्रमश: 127, 342 और 172 रहा।

    मोक्षधाम की ज्वाला तो नहीं बन रही वजह?

    जिले में बीते चार दिनों से वायु प्रदूषण का स्तर लगातार ही खतरनाक दर्ज किया जा रहा है। इसी बीच हवा का बहाव पूर्व की ओर से बदलकर पश्चिम की ओर से होना शुरू हुआ है। जिला मुख्यालय में स्थापित वायु गुणवत्ता मापने वाले उपकरण से केवल 400 मीटर की दूरी पर ठीक पश्चिम दिशा में गंगा के तट पर मोक्षधाम है, जहां 24 घंटे चिता की आग जलती रहती है।

    प्रतिदिन यहां औसतन 35 के आसपास शवों का दाह संस्कार होता है। भीषण ठंड और भीषण गर्मी में यह आंकड़ा बढ़कर 65-70 तक भी चला जाता है। यहां लकड़ी जलाकर पारंपरिक तरीके से दाह संस्कार होता है। यहां बिजली चलित शवदाह गृह बनाने के लिए करीब एक दशक पहले से ही चर्चा होती रही है। बीते वर्ष इसके लिए निर्माण कार्य भी शुरू किया गया, लेकिन इसकी रफ्तार काफी धीमी है।

    कृषि आधारित उद्योगों से भी बढ़ रहे धूलकण

    जिले में हाल के दिनों में धान की फसल कटी है। इसके बाद किसान इससे चावल निकालने की प्रक्रिया में जुटे हैं। चावल और चूड़ा मिलों में भी आजकल तेजी से काम हो रहा है। इस प्रक्रिया में धूल अधिक निकलती है। पछुआ हवा इस धूल को बहाकर दूर तक ले जा रही है।

    तारीखवार एक्यूआई का हाल 

    • 19 जनवरी : 278
    • 18 जनवरी : 293
    • 17 जनवरी : 380
    • 16 जनवरी : 325
    • 15 जनवरी : 128
    • 14 जनवरी : 113
    • 13 जनवरी : 122
    • 12 जनवरी : 133
    • 11 जनवरी : 136

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