चुनावी मौसम में पेट है असली वोटर, नाश्ता इधर, खाना उधर, जीत की गारंटी भरपेट भोजन!
बिहार में विधानसभा चुनाव के माहौल में, कुछ लोगों के लिए पेट असली वोटर बन गया है। सुबह नाश्ता, दोपहर में खाना और शाम को पकौड़े, यही आजकल राजनीतिक चर्चा का विषय है। लोग एक पार्टी से दूसरी पार्टी में भोजन के लिए जा रहे हैं और हर नेता को जीत का आश्वासन दे रहे हैं। आसपास के इलाकों में यह कहावत चल पड़ी है कि 'जिसका मेन्यू भारी, उसी की सरकार जारी'।

चुनावी मौसम में पेट है असली वोटर
जागरण संवाददाता, बक्सर। विधानसभा चुनाव का माहौल गर्म है और इसके साथ ही कुछ खास लोगों के पेट भी फुल ट्यूनिंग पर हैं। शहर के राजनीतिक गलियारों में अब मुद्दे नहीं, मेन्यू की चर्चा है। कौन-सा पार्टी कार्यालय में सुबह का नाश्ता अच्छा है और किसके यहां दोपहर का खाना ज्यादा स्वादिष्ट, यही अब लोकतंत्र का असली एजेंडा बन गया है।
सुबह आठ बजे कुछ अनुभवी चुनावी नागरिक घर से निकलते हैं। पहले पड़ाव पर पहुंचते ही चाय, बिस्कुट और नमकीन का दौर चलता है। नेता जी का भाषण अभी शुरू भी नहीं हुआ होता कि प्लेटें साफ हो जाती हैं और ये जनता का प्रतिनिधि वर्ग अगला टारगेट तय कर लेता है अब चलो दूसरे दफ्तर, वहां आज पूड़ी-सब्जी की व्यवस्था है।
दो प्लेट पकौड़े आते-आते विकास खुद पीछे छूट जाता
दोपहर तक ये जनता इतनी मेहनत कर लेती है कि मानो पूरा चुनावी प्रचार अकेले इसी ने संभाल रखा हो। खाना खाते हुए सब एक सुर में कहते हैं, “भाई साहब, इस बार जीत तो आपकी ही तय है!” इतना सुनते ही पार्टी कार्यकर्ता भी प्रसन्न और पेट भी तृप्त।
शाम होते-होते इनका काफिला किसी तीसरे दल के दफ्तर में पहुंच जाता है, जहां चाय के साथ पकौड़े मिलते हैं और “विकास” पर चर्चा इतनी गहरी होती है कि अगले दो प्लेट पकौड़े आते-आते विकास खुद पीछे छूट जाता है।
रात को घर लौटते हुए ये जनता मुस्कुराती है, “आज तो लोकतंत्र सच में मजबूत हुआ—तीनों दलों को समान अवसर मिला!”आसपास के मोहल्लों में अब एक नई कहावत चल पड़ी है, जिसका मेन्यू भारी, उसी की सरकार जारी।
बक्सर का मौसम चाहे कैसा भी हो, पर चुनावी मौसम में पेट और पार्टी दोनों बराबर गरम हैं। अब देखना यह है कि वोट किसे मिलता है, क्योंकि पेट तो पहले ही सबका भर चुका है!

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