East Champaran News: बदहाल जेपी आश्रम पर अतिक्रमणकारियों की नजर, शिकायत के बाद भी प्रशासन मौन
पताही में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की स्मृति में बना जेपी आश्रम उपेक्षा और अतिक्रमण का शिकार हो रहा है। जहाँ कभी क्रांति की योजनाएँ बनती थीं, वहाँ अब कब्जा हो रहा है। स्थानीय लोग सरकार से इसे अतिक्रमण से मुक्त कराने और संरक्षित करने की मांग कर रहे हैं ताकि जेपी की यादें बनी रहें और आने वाली पीढ़ी इतिहास से जुड़ सके।
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पताही की बदहाल जेपी आश्रम पर अतिक्रमणकारियों की नजर। फोटो जागरण
आदित्य कुमार सिंह, पताही। संपूर्ण क्रांति के नायक लोकनायक जयप्रकाश नारायण की स्मृति से जुड़े पताही प्रखंड मुख्यालय स्थित जेपी आश्रम अब उपेक्षा और अतिक्रमण का शिकार हो रहा है। वर्षों पहले जिस स्थल पर क्रांति की योजनाएं बनीं, आज वहां बालू-पत्थर रखकर कब्जा किया जा रहा है।
आश्रम परिसर पशुओं का चारागाह बन गया है। स्थानीय लोगों ने जेपी आश्रम की जमीन पर धीरे-धीरे कब्जा जमाना शुरू कर दिया है। मुख्य द्वार के पास बालू और पत्थर रख कर अतिक्रमण की कोशिश की जा रही है।
बताया जाता है कि पांच जून 1974 को पटना में संपूर्ण क्रांति का नारा देने के बाद जयप्रकाश नारायण क्षेत्र भ्रमण के दौरान पताही आए थे। आपातकाल के दौरान पताही बाजार में एक बड़ी सभा की गई थी।
आंदोलन उग्र हुआ तो अंचल और प्रखंड कार्यालय को आंदोलनकारियों ने घेर लिया। हालात बेकाबू होते देख तत्कालीन अंचल अधिकारी ने आंदोलनकारियों पर गोली चलवा दी थी। इस घटना में पताही के तीन युवक शहीद हो गए थे।
जेपी के विचारों से प्रभावित होकर बेतौना पंचायत के खुटौना निवासी स्व. अवधेश सिंह ने छह कट्ठा भूमि जेपी आश्रम के लिए दान में दी थी। यह जमीन बिहार सरकार के नाम निबंधित भी कर दी गई थी।
उस भूखंड पर चार कमरे बनवाए गए थे, जहां जेपी के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की बैठकें और जनहित के कार्यक्रम होते थे। समय के साथ यह स्थल उपेक्षा का शिकार होता गया।
न तो प्रशासन की कोई पहल दिखी, न ही जनप्रतिनिधियों ने इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की कोशिश की। आज हालत यह है कि जेपी आश्रम की पहचान ही मिटती जा रही है।
स्थानीय लोगों की मांग है कि राज्य सरकार इस स्थल का निरीक्षण कर इसे अतिक्रमण से मुक्त कराएं। साथ ही जेपी की यादों को सहेजते हुए इसे संरक्षित किया जाए, ताकि आने वाली पीढ़ी इतिहास से जुड़ सके।
क्या कहते हैं ग्रामीण
पताही के रुपनी गांव के सुखारी मेहता का कहना है कि पांच साल पहले विधानसभा चुनाव के दौरान नेताजी ने वादा किया था कि इस स्थल का विकास किया जाएगा, लेकिन अब पांच साल बीत गए और कोई काम नहीं हुआ।
इसी वजह से लोग धीरे-धीरे इस जमीन पर कब्जा करना शुरू कर चुके हैं। प्रशासन की उदासीनता ने स्थिति और गंभीर बना दी है। पताही के मनीष कुमार का कहना है कि जेपी आश्रम की यह जमीन धीरे-धीरे कब्जे की चपेट में है। कई बार शिकायत के बाद भी प्रशासन मौन है।
अब हम लोग इस मुद्दे को चुनाव में उठाएंगे। जो उम्मीदवार जेपी की विरासत को बचाने की बात करेगा, वही हमारा जनप्रतिनिधि होगा। वहीं, महारानी टोला के प्रेम शंकर तिवारी बताते हैं कि माननीय जी और अधिकारी रोज इसी मार्ग से गुजरते हैं, लेकिन आंख मूंदे रहते हैं।
हम सबने तय किया है कि इस बार चुनाव में यही मुद्दा सबसे पहले उठेगा। प्रत्याशी से सीधे पूछा जाएगा कि इस भूमि की रक्षा के लिए उनकी क्या योजना है। पंचगछिया गांव के शिवम कुमार ने कहा कि जेपी आश्रम सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि लोकनायक की विचारधारा का प्रतीक है।
अब यह जमीन निजी कब्जे की भेंट चढ़ रही है। इस बार हम गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं ताकि यह मुद्दा चुनाव में मजबूती से उठे। नन्हकार के राहुल कुमार का कहते हैं कि जेपी आश्रम की जमीन पर धीरे-धीरे कब्जा हो रहा है।
लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों की नजर इस ओर नहीं है। नेता जी के द्वारा अब इस मुद्दे पर ध्यान ही नहीं दिया जाता है, जो स्थानीय लोगों के लिए चिंता का कारण बन गया है।
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