Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    East Champaran: जल जमाव से नहीं मिली निजात, हर साल तबाह होती हजारों एकड़ फसल

    Updated: Fri, 24 Oct 2025 01:13 PM (IST)

    पूर्वी चंपारण में जल जमाव की समस्या से किसान परेशान हैं। हर साल बारिश से हजारों एकड़ फसल डूब जाती है, जिससे भारी नुकसान होता है। किसान खेती करने में असमर्थ हैं और सरकार से समाधान की मांग कर रहे हैं ताकि उन्हें इस समस्या से निजात मिल सके।

    Hero Image

    जलजमाव से हजारों एकड़ फसल तबाह। फोटो जागरण

    संवाद सहयोगी, केसरिया। बड़े पैमाने पर चंवर (खेतों) में पानी का ठहराव केसरिया के किसानों की बड़ी समस्या है। बरसात में प्रतिवर्ष हजारों एकड़ खड़ी फसल बर्बाद हो जाती है। पानी के निकास का समुचित इंतजाम नहीं होने के कारण महीनों तक पानी चंवर से नहीं निकल पाता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    परिणास्वरूप फसल सड़कर नष्ट हो जाती है। अभी अक्टूबर के पहले सप्ताह में हुई भारी बारिश के कारण केसरिया एवं संग्रमापुर प्रखंड के अनेक गांवों के किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है।

    केसरिया के लोहरगांवा, कुशहर, महमदपुर , केसरिया नगर पंचायत, बथना एवं प्रदुम्न छपरा के चवर में अत्यधिक पानी जमा होने से हजारों एकड़ खड़ी फसल बर्बाद हो गई। ग्रामीणों का कहना है कि इस तरह की तबाही प्राकृतिक कारणों से ज्यादा मानवजनित है।

    आमतौर पर रघवा एवं सुमौती (बरसाती नदी) से होकर चवर का पानी निकलता है। लेकिन नदी के रास्ते में बड़े-बड़े अवरोध बन जाने से पानी का प्रवाह धीमा हो जाता है। जब तक खेतों में पानी का स्तर कम होता है तब तक फसल नष्ट हो जाती है।

    बरसाती नदियों के रास्ते में मछली पकड़ने के लिए भी बाड़ लगाने का काम किया जाता है, जो पानी के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करती है। साफ-सफाई नहीं होने से जगह-जगह मिट्टी के टीले भी बन गए हैं। इनके कारण भी पानी के निकास में बाधा आती है।

    रेललाइन ने दो हिस्सों में चवर को बांटा

    लोगों का मानना है कि हाजीपुर-सुगौली रेललाइन के निर्माण में भी इस समस्या की अनदेखी की गई है। रेलवे लाइन के लिए मिट्टी भरने से पूरा चंवर दो भागों में बंट गया है। रेललाइन के लिए चंवर में दो छोटी-छोटी पुलिया बनाई गई है।

    अगर यह पुल बडा होता तो पानी का निकास तेजी से हो जाता। लेकिन अब पानी नहीं निकलने के कारण बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। रेलवे ट्रैक बनने के बाद पानी के बहाव का प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध हो गया है। पहले जहां बारिश का पानी आसानी से निकल जाता था, वहीं अब ट्रैक के दोनों ओर जमा हो गया है। इससे खेत तालाब में बदल गए हैं।

    रबी की फसल पर भी असर

    खेतों में देर तक पानी के ठहराव से रबी फसल की खेती पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। यूं कहें कि कई बार रबी की खेती नहीं हो पाती है। समय पर पानी नहीं सूखने के कारण खेत को किसान अगली फसल के लिए तैयार नहीं कर पाते हैं।

    ऐसे में गेहूं और तेलहन जैसी फसलें भी नहीं हो पाती हैं। इस बार भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। यह स्थिति तो किसानों पर दोहरी मार के समान है। खेत का पानी जब तक सूखेगा तब तक खेती का समय बीत चुका होगा। इस क्षेत्र के किसानों की यह बड़ी समस्या है।

    क्या कहते हैं लोग

    इस संबंध में किसान मुकेश कुमार, विशुराज सिंह, रंजन कुमार, राजदीप कुशवाहा आदि ने बताया कि खेतों में लंबे समय तक पानी का ठहराव इस क्षेत्र की पुरानी एवं बड़ी समस्या है।

    इस बार अक्टूबर में हुई भारी बारिश के कारण मक्का, धान और सब्जी की फसल पूरी तरह नष्ट हो चुकी है। इससे क्षेत्र में आर्थिक संकट गहराता जा रहा है। किसान अपनी मेहनत की पाई-पाई जोड़कर इस उम्मीद से खेती करता है कि फसल अच्छी होगी।

    लेकिन इस तरह की स्थिति ने किसानों की कमर ही तोड़ दी है। दिक्कत यह है कि इस समस्या को प्रशासनिक अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि गंभीरता से लेते ही नहीं हैं। अगर इस समस्या का स्थाई समाधान नहीं हुआ तो किसानों की परेशानी दूर नहीं होगी।