गुरुआ विधानसभा: चार पार्टियों में कांटे की टक्कर, कार्यकर्ताओं की ताकत तय करेगी 2025 का विधायक
गुरुआ विधानसभा क्षेत्र में 2025 के चुनावों में चार दलों के बीच कड़ी टक्कर होगी। कार्यकर्ताओं की मेहनत और समर्पण ही किसी भी दल की जीत सुनिश्चित करेंगे। सभी दल मतदाताओं को लुभाने के लिए नई रणनीतियां बना रहे हैं। 2025 का विधायक कौन होगा, यह कार्यकर्ताओं की ताकत पर निर्भर करेगा।

गुरुआ विधानसभा में कार्यकर्ताओं की ताकत निर्णायक साबित होगी। फोटो जागरण
आशीष कुमार, गुरारु। विधानसभा चुनाव 2025 के लिए गुरुआ विधानसभा क्षेत्र में विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतार दिया है। इनमें भाजपा, राजद और बसपा के प्रत्याशियों ने नामांकन कर दिया है, जबकि जन सुराज के प्रत्याशी का नामांकन होना बाकी है।
सभी प्रमुख दलों ने चुनाव प्रबंधन का अनुभव रखने वाले नेताओं को मैदान में उतारा है। राजद के प्रत्याशी विनय कुमार यहां के विधायक हैं, जिन्होंने पिछले पांच वर्षों में सोशल इंजीनियरिंग के तहत क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है। उनके प्रति विपक्षी दल के कार्यकर्ताओं में भी सम्मान है, जिससे चुनाव के दौरान उनका विरोध केवल राजनीतिक आधार पर होता है।
भाजपा ने उपेन्द्र प्रसाद को प्रत्याशी बनाया है, जो दो बार एनडीए के तहत जद यू के समर्थन से विधान परिषद सदस्य रह चुके हैं। उपेन्द्र ने अपने कार्यकाल में क्षेत्र में कई विकास कार्य किए हैं और अपने समर्थकों का एक मजबूत गुट तैयार किया है।
उन्हें महागठबंधन के घटक दल हम सेकूलर पार्टी से 2019 के आम चुनाव का अनुभव भी है, जिसमें उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह को लगभग पांच सौ वोटों से पीछे छोड़ दिया था।
जन सुराज पार्टी ने संजीव श्याम सिंह को प्रत्याशी घोषित किया है, जो दो बार विधान परिषद सदस्य रह चुके हैं। संजीव ने अपने कार्यकाल में कई विद्यालयों में विकास कार्य किए हैं और शिक्षक समुदाय में उनकी पहचान बनी हुई है।
बसपा ने राघवेंद्र नारायण यादव को फिर से चुनावी मैदान में उतारा है, जिन्होंने पिछले चुनाव में तीसरे स्थान पर रहते हुए 15,235 मत प्राप्त किए थे। राघवेंद्र ने पिछले पांच वर्षों में क्षेत्र में संगठनात्मक कार्यों में सक्रियता दिखाई है और सभी वर्गों के लोगों के साथ सहानुभूति दर्शाई है।
संजीव श्याम सिंह और राघवेंद्र नारायण यादव, जो पहले कथित जंगलराज के खिलाफ संघर्ष कर चुके हैं, अब अलग-अलग दलों में हैं, लेकिन उनके संबंध मित्रवत बने हुए हैं। इस स्थिति में चुनावी संघर्ष की गुंजाइश बढ़ गई है। प्रत्येक गांव में मतदाताओं तक पहुंचकर चुनावी लड़ाई जीतने की आवश्यकता है।
चुनाव प्रचार के लिए सीमित समय में प्रत्याशियों के लिए घर-घर पहुंचना संभव नहीं लगता, इसलिए मैन पावर ही अंतिम व्यक्ति तक दल और प्रत्याशी की पहुंच बना सकता है।
राजद, भाजपा, बसपा और जन सुराज सभी के पास कार्यकर्ताओं की एक मजबूत फौज है। अब यह देखना है कि किस दल के कार्यकर्ता कितनी ताकत लगाते हैं, क्योंकि यही कारक चुनावी जीत में निर्णायक साबित होगा।
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