सुरक्षा मानकों को दरकिनार कर दौड़ रहीं लंबी दूरी की बसें,स्लीपर बसों में खतरे में यात्रियों की जान
गोपालगंज जिले से लंबी दूरी की यात्रा करने वाली बसों की हालत जर्जर है, जिससे यात्रियों की सुरक्षा खतरे में है। फिटनेस जांच में कमी और ओवरलोडिंग आम बात है। स्लीपर बसों में सुरक्षा मानकों का उल्लंघन हो रहा है, जिससे दुर्घटना का खतरा बढ़ गया है। स्थानीय लोगों ने बसों की तत्काल फिटनेस जांच कराने और मानक पूरा न करने वाली बसों का परिचालन बंद करने की मांग की है।

स्लीपर बसों में खतरे में यात्रियों की जान
रजत कुमार, गोपालगंज। जिले से दिल्ली, हरियाणा, झारखंड सहित कई राज्यों के लिए रोजाना सैकड़ों यात्री बसों से सफर करते हैं, लेकिन लंबी दूरी तय कराने वाली इन बसों की हालत बेहद जर्जर होती जा रही है।
हाल में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर कानपुर के पास एक बस के अनियंत्रित होकर पलटने की घटना में गोपालगंज के चार यात्री गंभीर रूप से घायल हो गए। वहीं सिवान के एक की मौत हो गई और चार लोग घायल हो गए। इसके बावजूद परिवहन विभाग की लापरवाही पर कोई लगाम नहीं लग रही।
फिटनेस जांच की गंभीर कमी
राजेंद्र बस स्टैंड से प्रतिदिन बड़ी संख्या में यात्री यात्रा करते हैं, परंतु बसों की स्थिति देखकर वे सफर शुरू करने से पहले ही डर जाते हैं। कई बसों में रख-रखाव, सफाई और फिटनेस जांच की गंभीर कमी पाई जाती है।
बावजूद इसके, बिना उचित प्रमाणन के बसें लगातार सड़कों पर दौड़ रही हैं। कई बस मालिक पुराने माडल को हल्की मरम्मत कर दोबारा चलाने लगते हैं, जिससे यात्रियों की सुरक्षा पर बड़ा खतरा बना रहता है।
भीड़-भाड़ के समय ओवरलोडिंग आम बात
त्योहारों और भीड़-भाड़ के समय ओवरलोडिंग आम बात है, जो हादसे की आशंका बढ़ाती है। कई चालक बिना पर्याप्त आराम के लंबी दूरी की यात्रा कराते हैं, जिससे नियंत्रण खोने का जोखिम बढ़ता है।
स्थानीय लोगों ने मांग की है कि जिले से चलने वाली सभी लंबी दूरी की बसों की तत्काल फिटनेस जांच कराई जाए और मानक पूरा न करने वाली बसों का परिचालन बंद किया जाए। बस स्टैंड पर नियमित निरीक्षण टीम की तैनाती की भी मांग जोर पकड़ रही है।
जिला परिवहन पदाधिकारी शशि शेखर ने बताया कि बसों की नियमित जांच की जाती है और बाहरी राज्यों से रजिस्ट्रेशन वाली बसों की भी जांच सुनिश्चित की जाती है।
मानक ताक पर रख सड़कों पर दौड़ रहीं स्लीपर बसें
स्लीपर बसों में हो चुके कई हादसों से सबक न लेते हुए परिवहन विभाग और पुलिस की लापरवाही अब भी जारी है। कई स्लीपर बसें सुरक्षा मानकों को पूरी तरह ताक पर रखकर सड़क पर धड़ल्ले से चलाई जा रही हैं।
संचालक विभागीय मिलीभगत का फायदा उठाकर नियमों की अनदेखी कर रहे हैं। स्लीपर बसों में गैलरी, सीटों की दूरी और आपातकालीन निकासी संबंधी मानकों का पालन कहीं नहीं दिखता। दुर्घटना की स्थिति में यात्रियों का स्लीपर बर्थ से बाहर निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
कई बसों में आग बुझाने वाले उपकरण भी उपलब्ध नहीं हैं, जो रात के समय लंबी दूरी की यात्रा में बड़ा खतरा साबित हो सकता है। विभागीय रिकार्ड में बसें संचालित दिखती हैं, सवारियां भी भरती हैं, लेकिन इन बसों की वास्तविक स्थिति जांच के अभाव में बदहाल होती जा रही है।
स्थानीय यात्रियों का कहना है कि मानकहीन स्लीपर बसें जान जोखिम में डालकर परिचालित की जा रही हैं। हाल के हादसों के बावजूद न तो सख्त चेकिंग की जा रही है और न ही किसी प्रकार की ठोस कार्रवाई। परिवहन विभाग पर यह सवाल भी उठ रहा है कि आखिर नियमों के विपरीत चल रही इन बसों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही।
मानक से ऊंची बाडी, बंद इमरजेंसी डोर
ऐसी बसों में स्लीपर बनाने के लिए बॉडी को जरूरत से ज्यादा ऊंचा कर दिया जाता है। कई बार इमरजेंसी विंडो भी बंद कर दी जाती है, ताकि स्लीपर की संख्या अधिक रखी जा सके। संकरी गलियों और छोटी खिड़कियों के चलते आपात स्थिति में यात्री निकल नहीं पाते।
फायर सेफ्टी और फर्स्ट एड किट का अभाव इन बसों को और खतरनाक बना देता है। वहीं, बस संचालक पुरानी साधारण बसें खरीद लेते हैं। इसके बाद उसी पर स्लीपर की बाडी बनवा देते हैं।
इनमें सुरक्षा मानकों का अनुपालन करने की बजाय अधिक कमाई के हिसाब से सवारियों की सीटें बनाई जाती हैं। यही वजह है कि चिंगारी के दौरान चंद मिनट में बसें आग के गोले में तब्दील हो जाती हैं।
स्लीपरों बसों में मुख्य सुरक्षा खामियां
- एक ही दरवाजा, इमरजेंसी निकास नहीं।
- मानकविहीन ऊंची बाडी, बंद खिड़कियां।
- संकरी गैलरी, ऊपरी स्लीपर से बाहर निकलना कठिन।
- फायर सेफ्टी, फर्स्ट एड किट, रिफ्लेक्टर का अभाव।
- बसों की नियमित फिटनेस जांच नहीं।
- पुरानी बसों को मामूली मरम्मत कर सड़क पर उतार देना।
- ओवरलोडिंग व बिना आराम के ड्राइविंग।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।