डॉक्टर नहीं, 10 बेड का अरवल नशा मुक्ति केंद्र 9 साल से खाली; गंभीर मरीज होते हैं पटना रेफर
अरवल जिले में युवाओं में नशे की लत बढ़ रही है। नशा मुक्ति केंद्र में डॉक्टर न होने से मरीजों को केवल परामर्श दिया जाता है। 2016 में खुले 10 बेड के केंद्र में 9 सालों में सिर्फ दो मरीज भर्ती हुए। गंभीर मरीजों को पटना रेफर किया जाता है। जागरूकता कार्यक्रमों पर लाखों खर्च होते हैं, पर स्थिति जस की तस है।

10 बेड का अरवल नशा मुक्ति केंद्र 9 साल से खाली
जागरण संवाददाता, अरवल। जिले के युवाओं में नशे का प्रचलन ज्यादा बढ़ गया है। शराबबंदी के बाद से युवा वर्ग का झुकाव स्मैक और गांजा,बोनफिक्स, सुलेशन जैसे नशीले पदार्थों की ओर अधिक हुआ है। शराब भी खुलेआम सभी जगह पर बिक रहा है।
नशा मुक्ति दिवस पर स्कूली बच्चों के साथ प्रभात फेरी, किसी होटल में सेमिनार आयोजित होता है और जागरूकता के नाम पर लाखों रुपए खर्च होते हैं और सरकारी खानापूर्ति हो जाती है।
9 साल में मात्र 2 मरीज
नशा करने वाले लोगों के उपचार के लिए और नशा से मुक्ति दिलाने के लिए सदर अस्पताल में 10 बेड का नशा मुक्ती केंद्र 2016 में खोला गया था। लेकिन 9 साल में मात्र दो रोगी को भर्ती किया गया। प्रतिदिन एक दर्जन से अधिक रोगी नशे के शिकार होकर अस्पताल में आते हैं। चिकित्सकों और कर्मियों के अभाव में नशा मुक्ति केंद्र में केवल काउंसलिंग कर उन्हें वापस घर भेज दिया जाता है।
गंभीर रूप से बीमार रहने पर पटना रेफर किया जाता है। नशा मुक्ति केंद्र में एक भी डॉक्टर की तैनाती नहीं है। नशा न मिलने से बीमार लोग जब इस केंद्र में आते हैं तो उनकी सिर्फ काउंसलिंग की जाती है। इलाज नहीं मिलने के कारण यहां अब रोगी नहीं आते हैं।
क्या कहते है पदाधिकारी
नशा मुक्ति केंद्र के नोडल पदाधिकारी डॉ अरविंद कुमार ने बताया कि नशे के शिकार लोग इलाज के लिए आते हैं। चिकित्सक के अभाव के कारण केवल काउंसलिंग की जाती है। नशा मुक्ति केंद्र में मरीज के इलाज के लिए 75 प्रतिशत दवा भी उपलब्ध हैं।

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