यहां शादी के लिए लड़के के पास जमीन जायदाद नहीं, नाव होना भी जरूरी वरना रहना पड़ेगा कुंवारा
अमदाबाद प्रखंड में बाढ़ की वजह से नाव एक अनिवार्य जरूरत है। यहाँ लोग शादी से पहले लड़के के घर में नाव देखते हैं। झारखंड और बंगाल से रिश्ते के लिए आने वाले लोग भी इस बात का ध्यान रखते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि हर साल बाढ़ आती है, लेकिन कोई उनकी सुध नहीं लेता। नाव के बिना उनका जीवन मुश्किल है।

शादी के लिए लड़के के पास नांव होना जरूरी
मनीष कुमार सिंह, अमदाबाद (कटिहार)। हेलो, लड़का देख लिए। लड़का, घर-परिवार अच्छा है और खास बात यह है कि लड़के के घर अपनी नाव भी है। गदाई आवाज में नंदलाल सिंह भगवान टोला में अनिल चौधरी के लड़के को अपनी बेटी के वर के लिए देखने के बाद चेहरे पर सुकून लिए अपने घर फोन पर इस बात की जानकारी दे रहे थे।
यह किसी ट्रेजरी फिल्म का सीन नहीं बल्कि हकीकत है साल में तीन से चार महीने तक बाढ़ की पानी से घिरे अमदाबाद प्रखंड के एक दर्जन से अधिक गांवों की। यहां नाव पहली और अनिवार्य जरूरत है। सूखे दिनों में यहां के लोग आवागमन कर लेते हैं, लेकिन बाढ़ के समय में बिना नाव के लोगों की जिंदगी थम सी जाती है।
पशुचारा लाना हो या अस्पताल जाना, किसी भी छोटे-बड़े काम, घरेलू सामान लेने के लिए प्रखंड मुख्यालय पहुंचना हो इन सभी कार्यों के लिए नाव की आवश्यकता पड़ती है। यहां बाढ़ का प्रकोप तीन से चार माह तक रहता है।
समीपवर्ती राज्य झारखंड एवं पश्चिम बंगाल के लोग यहां अक्सर शादी-विवाह के सिलसिले में पहुंचते रहते हैं। बेटे बेटियों की शादी संबंध में नाव भी देखा जाता है। आलम यह है कि बेटी देने वाले पहले यह सुनिश्चित करते है कि लड़के के घर रोजगार के साथ अपनी नाव है या नहीं।
ये गांव सबसे अधिक प्रभावित
बाढ़ के दौरान आवागमन की सभी सड़कें जलमग्न हो जाती है। ऐसे में प्रखंड के भगवान टोला, रतन टोला, झब्बू टोला, कृति टोला, युसुफ टोला, सुबेदार टोला सहित कई गांव के लोग नाव से आगमन करते हैं।
अपना घरेलू सामान खरीदना हो या गर्भवती महिला एवं अन्य मरीज को लेकर अस्पताल जाना हो इसके लिए नाव की आवश्यकता पड़ती है।
ग्रामीणों में पीड़ा, हमारी सुध किसी को नहीं
अपनी लड़की का संबंध के लिए लड़का देखने आए नंदलाल सिंह ने कहा कि अमदाबाद में बाढ़ की गंभीर समस्या से परिचित हैं। ऐसे में वे लोग शादी से पूर्व सुनिश्चित करते हैं कि लड़के के पास अपना नाव भी हो।
अनिल चौधरी, महेंद्र चौधरी, भोला सिंह आदि ने कहा कि हर साल तीन से चार माह तक बाढ़ की समस्या झेलते हैं। बावजूद हमारी सुध कोई नहीं लेता। बिना नाव के कहीं आना जाना संभव नहीं है। इसलिए यहां के अधिकांश लोग अपना अपना नाव रखते हैं।
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