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    Bihar: यहां 58 सालों में एक भी हिंदू उम्मीदवार को नहीं मिली जीत, मुस्लिम वोटर निभाते निर्णायक भूमिका

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 04:39 PM (IST)

    किशनगंज सदर विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है लेकिन भाजपा और एआईएमआईएम भी यहाँ से चुनाव जीतने की कोशिश में हैं। इस सीट पर 19 चुनावों में से 16 बार मुस्लिम समुदाय के उम्मीदवार ही जीते हैं। 1967 के बाद से कोई भी हिंदू उम्मीदवार यहाँ से नहीं जीता है। मुस्लिम वोटों की भूमिका हमेशा निर्णायक रही है। किशनगंज में मुस्लिम आबादी लगभग 68% है।

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    किशनगंज से 58 वर्षों में एक भी हिंदू उम्मीदवार को नहीं मिली जीत

    अमरेंद्र कांत, किशनगंज। बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही राजनीतिक सरगर्मी भी बढ़ने लगी है। टिकट के दावेदारों की क्षेत्र में सक्रियता बढ़ गई है। जिले की किशनगंज सदर विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। इस सीट पर भाजपा व एआईएमआईएम की भी नजर है। भाजपा यहां से दो चुनाव में महज कुछ वोटों से हारी है, जबकि एआईएमआईएम भी यहां से एक बार जीत दर्ज कर चुकी है।

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    इस बार भी मुकाबला इन्हीं तीनों दलों के बीच होने की संभावना है, लेकिन सबसे अहम यह कि इस सीट पर हुए 19 बार चुनाव में 16 बार मुस्लिम समुदाय के उम्मीदवार को ही जीत मिली है। वर्ष 1967 के बाद 58 वर्षों में एक भी हिंदू उम्मीदवार जीत नहीं सके हैं।

    किशनगंज सदर विधानसभा सीट पर हर बार मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका निभाती है। 1967 में सुशीला कपूर के बाद कोई हिंदू प्रत्याशी यहां से जीत दर्ज नहीं कर सके। इस सीट पर हुए 19 चुनाव में कांग्रेस ने 10 बार, राजद ने तीन बार अन्य दलों में प्रज्ञा सोशलिस्ट पार्टी, जनता दल, लोकदल और एआईएमआईएम को एक-एक बार जीत मिल चुकी है।

    भाजपा ने इस सीट से कभी जीत हासिल नहीं की है। हालांकि, 2010 में भाजपा की स्वीटी सिंह महज 264 मत से और 2्र020 के चुनाव में 1381 मतों से पराजित हुई है। इस बार के चुनाव में यह माना जा रहा है कि अगर कांग्रेस, भाजपा के बीच मुकाबले में एआईएमआईएम मुस्लिम वोट में सेंधमारी करती है तो इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।

    इस विधानसभा से वर्ष 1952 में सबसे पहले हिंदू कैंडिडेट रावतमल अग्रवाल ने कांग्रेस से जीत हासिल की। 1955 में कांग्रेस के कमलेश्वरी प्रसाद यादव विजय रहे। उसके बाद 1967 में सोशलिस्ट पार्टी से सुशीला कपूर जीत दर्ज की।

    14 जनवरी 1990 को पूर्णिया से अलग होकर बना किशनगंज जिला को पूर्वाेत्तर भारत का प्रवेश द्वार कहा जाता है। नेपाल और बंगाल की सीमा से सटे इस जिले में मुस्लिम समुदाय की आबादी करीब 68 फीसद है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी 16 लाख 90 हजार 948 थी।

    वर्तमान में आबादी करीब 22 लाख है। 2020 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो किशनगंज विधानसभा सीट पर कुल दो लाख 83 हजार 199 मतदाताओं में से एक लाख 77 हजार 577 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। इस विधानसभा क्षेत्र में करीब 60 प्रतिशत मुस्लमि व 40 प्रतिशत हिंदू वोटर हैं। मुस्लिम वोट में अगर एआईएमआईएम सेंधमारी करती है तो इसका भाजपा एनडीए को मिल सकता है।

    इस सीट की बात करें तो पर वर्ष 1952 में सबसे पहले हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से रावतमल अग्रवाल चुनाव जीते थे। जिसके बाद 1955 में कांग्रेस के कमलेश्वरी प्रसाद यादव ने जीत हासिल की थी। वर्ष 1957 में कांग्रेस के अब्दुल हयात विधायक बने।

    1962 में स्वतंत्र पार्टी के मु. हुसैन आजाद ने जीत हासिल की। लेकिन 1967 के चुनाव में प्रज्ञा सोशलिस्ट पार्टी की सुशीला कपूर ने चुनाव में जीत दर्ज की। लेकिन उसके बाद एक-दो विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो कांग्रेस, राजद का कब्जा रहा।

    यहां से वर्ष 2020 में तस्लीमुद्दीन भी राजद के टिकट पर विधायक बने थे। जबकि वर्तमान सांसद मु. जावेद कांग्रेस के टिकट पर दो बार विधायक बन चुके हैं।

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