Bihar Election 2025: 16 साल बाद गांव में वोट डालेंगे कछुआ और बासकुंड के लोग, जंगल पार करने की मजबूरी खत्म
बिहार के कछुआ और बासकुंड गांव के लोग 16 साल बाद मतदान करेंगे। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण पहले मतदान संभव नहीं था। सुरक्षा व्यवस्था बेहतर होने पर चुनाव आयोग ने मतदान केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया, जिससे ग्रामीणों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने का अवसर मिलेगा।
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16 वर्ष बाद गांव में वोट डालेंगे कछुआ और बासकुंड के लोग। फोटो जागरण
संवाद सूत्र, चानन (लखीसराय)। वक्त बदलने के साथ अब वह भी दिन आ गया जब दो दशक बाद लखीसराय जिले के सूर्यगढ़ा विधानसभा क्षेत्र के चार गावों के सैकड़ों मतदाता अपने ही गांव में मतदान करेंगे।
इस बार विधानसभा चुनाव में चानन प्रखंड के माओवाद प्रभावित इलाकों में मतदाताओं को वोट डालने के लिए लंबी दूरी तय नहीं करनी पड़ेगी और लोग अपने-अपने गांवों में ही मतदान करेंगे।
इस प्रकार माओवादियों का गढ़ माने जाने वाले कछुआ और बासकुंड गांव में अर्द्धसैनिक बलों के पहरे में इस गांवों में पहली बार ईवीएम के पी की आवाज सुनाई देगी। बताते चलें कि लखीसराय जिले का 56 मतदान केंद्र माओवाद प्रभावित है।
इसमें पिछले लोकसभा चुनाव में पांच माओवाद प्रभावित मतदान केंद्र को बदलकर मैदानी भाग में लाया गया था। लेकिन इस बार माओंवाद मुक्त होने के बाद चुनाव आयोग ने उन पांच मतदान केंद्रों को उनके मूल स्थान पर बहाल किया है।
इसमें चानन प्रखंड क्षेत्र के दो मतदान केंद्र संख्या क्रमश: 407 सामुदायिक भवन कछुआ में 363 मतदाता है। इसमें 243 पुरुष व 252 महिला व मतदान केंद्र संख्या- 417 उत्क्रमित मध्य विद्यालय बासकुंड-कछुआ में 495 मतदाता है। इसमें 186 पुरुष व 177 महिला मतदाता शामिल है।
इससे पहले इन दोनों मतदान केंद्र के मतदाताओ को वोट डालने के लिए छह-सात और 10 किलोमीटर दूर जंगल व पहाड़ पार कर पैदल जाना पड़ता था। कछुआ गांव के होलिल कोड़ा व भुखो कोड़ा बताते हैं कि पहले वोट डालने के लिए सात-आठ किलोमीटर दूर जंगल व पहाड़ पार कर प्राथमिकता विद्यालय जंगल टोला बेलदरिया जाना पड़ता था।
वहीं बासकुंड गांव निवासी बिजो कोड़ा व सुरेश कोड़ा बताते है कि पहले वोट डालने के लिए दस किलोमीटर दूर जंगल व पहाड पार कर उत्क्रमित मध्य विद्यालय महुलिया वोट डालने जाना पड़ता था।
इस बार गांव में ही बूथ बन जाने से लोगों में खुशी है। वे कहते हैं, पहले भय का माहौल था,अधिकारी तक नहीं आते थे। अब माओवादी खत्म हो गए हैं, सरकार ने गांव में ही बूथ बना दिया, अब सभी वोट डालेंगे।

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