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    Bihar Election 2025: महागठबंधन से ज्यादा NDA में भितरघात, बड़े नेताओं ने संभाला मोर्चा

    Updated: Mon, 03 Nov 2025 02:15 PM (IST)

    मुजफ्फरपुर में बिहार विधानसभा चुनाव 205 के दौरान, कई सीटों पर भितरघात के कारण उम्मीदवारों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। महागठबंधन की तुलना में एनडीए में अधिक भितरघात देखा जा रहा है, जिससे नुकसान नियंत्रण के प्रयास तेज हो गए हैं। पारू, मुजफ्फरपुर और कुढ़नी जैसी सीटों पर स्थिति गंभीर है, जहां बागी और अंदरूनी कलह वोटों के बिखराव का कारण बन सकते हैं।

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    प्रेम शंकर मिश्रा, मुजफ्फरपुर। जब अपने विरोध में आ जाएं तो लड़ाई में जीत कठिन हो जाती है। बिहार विधानसभा चुनाव में जिले की कई सीटों पर भितरघात ने उम्मीदवारों को बेचैन कर रखा है। इसके डैमेज कंट्रोल में पार्टी के नेता लगे हैं, मगर अब भी कई जगहों पर स्थिति नियंत्रित नहीं हो सकी है।

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    अगर इसमें सुधार नहीं हो सका तो नजदीकी मुकाबले में परिणाम पर असर पड़ सकता है। एनडीए में सीटों पर अधिक दावेदारी के कारण भितरघात ज्यादा है। महागठबंधन में यह कम है। इसी कारण एनडीए में नेताओं पर कार्रवाई भी अधिक हुई है।

    अब जबकि मतदान में महज तीन दिन शेष रह गए, डैमेज कंट्रोल का प्रयास तेज हो गया है। इसके लिए प्रदेश से राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को पार्टियों ने झोंक दिया गया है। स्थिति नहीं सुधर पाने के हालात में चुनावी विजय की भी रणनीति बनाई जा रही है।

    जिले की 11 में से पारू में एनडीए को सबसे अधिक ताकत लगानी पड़ रही है। भितरघात के साथ यहां के चार बार विधायक रहे भाजपा के अशोक कुमार सिंह निर्दलीय ही मैदान में हैं।

    भाजपा ने उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित भी कर दिया। इसके बाद भी एनडीए को वोटों के विखराव रोकने में मेहनत करनी पड़ रही है।

    लंबे समय तक विधायक रहने के कारण उनकी भाजपा के कार्यकर्ताओं पर पकड़ रही है। अब यह सीट रालोमो के पास है। ऐसे में यहां समन्वय में कमी आ रही है। कई बड़े नेता यहां कैंप कर रहे हैं। इससे हालात बदलने की उम्मीद रालोमो उम्मीदवार मदन चौधरी कर रहे हैं।

    मुजफ्फरपुर विधानसभा सीट पर तो भाजपा से कोई बागी तो नहीं बने, मगर भितरघात चरम पर रहा। पार्टी के कई नेताओं और संगठन के पदाधिकारियों ने प्रचार से किनारा कर लिया। एक पूर्व माननीय भी रूठे ही रहे।

    मनाने में नेताओं का छूट रहा पसीना 

    पार्टी का दबाव भी यहां काम नहीं आया। बताया जा रहा कि उम्मीदवार रंजन कुमार की मदद तो दूर वोट बिगाड़ने का भी प्रयास भी हो रहा। स्थिति बिगड़ती देख यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या एवं अन्य वरीय नेताओं ने पार्टी नेताओं के साथ बैठक कर डैमेज कंट्रोल का प्रयास किया गया है।

    कहा गया कि लोकसभा चुनाव में यहां से 50 हजार से अधिक की लीड भाजपा को रही है। ऐसे में एकजुटता का पाठ पढ़ाया गया है। अब सबकुछ ठीक का दावा किया जा रहा है, मगर इंटरनेट मीडिया पर कुछ नेताओं के बयान अब भी विरोधाभासी हैं।

    पास की विधानसभा सीट कुढ़नी में तो भाजपा उम्मीदवार पंचायती राज मंत्री केदार प्रसाद गुप्ता को भितरघात के साथ बागी से निपटना पड़ रहा है। भाजपा ओबीसी मोर्चा के मंत्री धर्मेंद्र कुमार के निर्दलीय मैदान में रहने पर पार्टी ने उन्हें छह साल के लिए निष्कासित तो कर दिया, मगर वोटों में सेंधमारी का खतरा कायम है। इसको रोकना भाजपा के लिए चुनौती होगी।

    इसके अलावा गायघाट में भी कुछ यही स्थिति है। जदयू उम्मीदवार कोमल सिंह को पहले पार्टी के पूर्व विधायक महेश्वर यादव एवं उनके पुत्र प्रभात किरण का विरोध झेलना पड़ा।

    पार्टी विरोधी गतिविधि को देखते हुए पिता-पुत्र को जदयू ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब वे राजद में जाकर पार्टी उम्मीदवार के लिए प्रचार कर रहे हैं। दूसरी ओर यहां भाजपा के अशोक सिंह जन सुराज से मैदान में हैं।

    उन्हें भी भाजपा ने बाहर तो कर दिया, मगर चुनौती कायम है। इससे एनडीए के वोटों के विखराव को रोकने की चुनौती होगी। नजदीकी मुकाबले की स्थिति में सेंधमारी वाले वोट ही परिणाम पर असर डाल सकते हैं।