मुंबई में राजनीति करने वाले जार्ज कैसे चुनाव लड़ने पहुंच गए मुजफ्फरपुर? यहां पढ़ें इनसाइड स्टोरी
Bihar Politics: जार्ज फर्नांडिस कर्नाटक के एक शहर मैंगलोर में पैदा हुए और वहीं पले- बढ़े। बाद में वे ट्रेड यूनियन की राजनीति से जुड़े और अपना शहर छोड़कर मुंबई उस समय के बंबई पहुंच गए। यहां भी कड़ा संघर्ष करते हुए मजदूरों के लिए मुकाम बनाया। इससे उनकी पहचान एक ट्रेड यूनियन लीडर के रूप में स्थापित हो गई। उन्होंने उसके बाद बिहार और खासकर मुजफ्फरपुर को चुनाव लड़ने के लिए क्यों चुना? इसकी रोचक कहानी है।

Bihar Politics जार्ज अपनी अलग शैली की राजनीति के लिए जाने गए। फाइल फोटो
अमरेंद्र तिवारी, मुजफ्फरपुर। Bihar Politics: बड़ौदा डायनामाइट केस (1976) में जार्ज तिहाड़ जेल में बंद थे। केस की हर तारीख पर उनसे कोर्ट में मिलने सचिदानंद सिन्हा जाया करते थे।
सचिदानंद के अनुज 75 वर्षीय मजदूर नेता अरविंद सिन्हा व उनके करीबी गांधीवादी अरविंद वरुण ने बताया कि जार्ज से मिलने का एक ही मकसद था लंदन के अखबारों में प्रकाशित बड़ौदा डायनामाइट केस और भारत संबंधी खबरों को जार्ज तक पहुंचाना।
जार्ज से जुड़ी खबरें लेखक निर्मल वर्मा लंदन के अपने संपर्कों के माध्यम से जुटाते और सचिदा बाबू अदालत में जार्ज साहब को सौंप देते। अखबार को जेल प्रशासन देने से मना करता था। इसके लिए अखबार के पन्नों में फल आदि लपेट कर दे दिया जाता। इससे पुलिस वालों का ध्यान उधर नहीं जाता।

'सच्ची' कहकर बुलाते थे जार्ज साहब
लोकनायक जयप्रकाश नारायण और डा. राममनोहर लोहिया से प्रभावित होकर सचिदानंद सिन्हा ने बीएससी प्रथम वर्ष में ही पटना साइंस कालेज की पढ़ाई छोड़ सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता बनने का निर्णय लिया।
1947-48 में धनबाद जाकर कोयला खदान मजदूरों के संगठन निर्माण की जिम्मेदारी संभाली। उसके बाद 1952 में मुंबई (तब बंबई) चले गए। मुंबई के डाकयार्ड में खलासी के रूप में कार्यरत होकर मजदूर आंदोलन से जुड़े।
यहीं मजदूर आंदोलन के दौरान वह जार्ज के करीब आए थे। ऐसा लगाव हो गया कि जार्ज साहब सचिदानंद को 'सच्ची' कहकर बुलाते थे। इसी दौरान उन्होंने लिखना शुरू किया और उनके विचारों से प्रभावित होकर डा.लोहिया ने उन्हें अपनी अंग्रेजी पत्रिका मैनकाइंड से जोड़ा। यहीं उनकी मुलाकात समाजवादी नेता किशन पटनायक से हुई।
जारी हुई जार्ज की हथकड़ी वाली तस्वीर
इमरजेंसी की समाप्ति की घोषणा के बाद चुनाव का बिगुल बज गया तो जार्ज की तीव्र इच्छा थी कि वे बड़ौदा से चुनाव लड़ें, लेकिन मोरारजी देसाई इस पर तैयार नहीं हुए। मंथन चल रहा था। बड़ौदा सीट वह अपने संगठन कांग्रेस के खाते में चाहते थे।
तब जार्ज के सामने अन्य आठ-दस लोकसभा क्षेत्रों के नाम रखे गए। जार्ज ने यह सूची सचिदा बाबू को दिखाई और उनकी राय मांगी। इस सूची में मुजफ्फरपुर भी शामिल था। सचिदा बाबू ने उन्हें सलाह दी कि उन नामों में सबसे सही मुजफ्फरपुर रहेगा।
बात बन गई। वह चुनाव लड़े। 1977 के चुनाव में हथकड़ी लगा जार्ज फर्नांडिस का पोस्टर बहुत लोकप्रिय हुआ था और वोटरों को छुआ। इस पोस्टर का आइडिया सचिदा बाबू का ही था। दिल्ली से इस पोस्टर की पहली खेप वे ही मुजफ्फरपुर लाए थे। उनके अनुज ने बताया कि स्थानीय लोग कनेक्ट हों, इसलिए जार्ज का नाम 'फरगु भाई' कहकर प्रचार कराया गया।

सच्चिदानंद सिन्हा पंचतत्व में विलीन
प्रख्यात लेखक और समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा (97) का अंतिम संस्कार मणिका मन किनारे किया गया। उनका पार्थिव शरीर जब लोगों द्वारा श्मशान की ओर ले जाया गया, तो वहां पहले से मौजूद सैकड़ों लोग श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए एकत्रित हुए।
इस अवसर पर ग्रामीणों की भी बड़ी संख्या थी। मुखाग्नि उनके छोटे भाई के पुत्र प्रशांत कुमार ने दी। लोगों ने बताया कि सच्चिदानंद सिन्हा के निधन से समाजवादी जगत में एक अपूरणीय क्षति हुई है, जिसकी भरपाई निकट भविष्य में संभव नहीं है।
ग्रामीण क्षेत्रों के विकास की रूपरेखा पर चर्चा के लिए दिवंगत पूर्व मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह भी अक्सर मणिका में सच्चिदानंद बाबू से मिलने आते थे। मौके पर माले नेता सह मुखिया उदय चौधरी, ओम प्रकाश सिंह, उनके पार्टी के सदस्य, पूर्व जिला पार्षद रुदल राम, रामवृक्ष राम, साहू भूपाल भारती, मुखिया विजय कुमार सिंह भी थे।

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