आस्था वही, रूप नया: ब्रिटिश काल से जारी बड़गांव, औंगारी छठ मेले को मिलता रहा है सरकारी प्रोत्साहन
बड़गांव और औंगारी में ब्रिटिश काल से छठ मेला लगता आ रहा है, जो आज भी जारी है। सरकार की तरफ से लगातार प्रोत्साहन मिलने से मेले का विकास हुआ है। हर साल यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, जो छठ मैया की पूजा-अर्चना करते हैं। यह मेला क्षेत्र की संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है।

श्री कृष्ण के पौत्र राजा साम्ब द्वारा स्थापित बड़गांव सूर्य मंदिर के निकट लगाया गया जर्मन हैंगर और तालाब
राकेश पांडेय, नालंदा। लोक आस्था के महान पर्व छठ महापर्व का नालंदा से गहरा ऐतिहासिक संबंध रहा है। विशेष रूप से बड़गांव और औंगारी धाम में इस पर्व का आयोजन ब्रिटिश काल से ही सरकारी प्रोत्साहन और सहयोग के साथ होता आ रहा है। उस दौर में भी औपनिवेशिक सरकार ने न केवल इस पर्व को मान्यता दी थी, बल्कि आयोजन के लिए फंडिंग की परंपरा भी शुरू की थी।
ब्रिटिश सरकार से शुरू हुआ सहयोग
ऐतिहासिक अभिलेख बताते हैं कि सन् 1941 में ब्रिटिश शासन ने बड़गांव छठ मेले के लिए 334 रुपये और ओंगारी धाम मेले के लिए 221 रुपये की राशि अस्थायी जल आपूर्ति और अन्य सुविधाओं के लिए स्वीकृत की थी। यह उस दौर में काफी बड़ी रकम मानी जाती थी। बाद के वर्षों में यह राशि क्रमशः बढ़ाई जाती रही, जो अब लगभग 13 लाख रुपये तक पहुंच चुकी है।
छठ को मिली थी आधिकारिक मान्यता
ब्रिटिश काल में ही छठ पर्व को औपचारिक पर्व के रूप में मान्यता प्राप्त थी। 1912 में छठ पर्व के अवसर पर अवकाश (छुट्टी) का प्रविधान जोड़ा गया था। बाद में 1921 में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत इसे आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त पर्व के रूप में दर्ज किया गया।
लेखकों और इतिहासकारों ने किया उल्लेख
प्रसिद्ध लेखक एवं भाषाविद जार्ज ग्रियर्सन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक बिहार पीजेंट लाइफ में छठ पर्व को सूर्य देव के सम्मान में कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाने वाला प्रमुख हिन्दू पर्व बताया है। वहीं रैंब्ल्स इन बिहार नामक पुस्तक में बड़गांव और औंगारी में हर वर्ष छठ मेले के आयोजन का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
नालंदा नगर पंचायत बनने के बाद बढ़ा बजट
नालंदा को नगर पंचायत का दर्जा मिलने के बाद से छठ मेले की व्यवस्था और फंडिंग में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। इस संबंध में नगर पंचायत के कार्यपालक पदाधिकारी राजन कुमार ने बताया कि
नगर पंचायत को मेले की व्यवस्था हेतु तीन लाख रुपये तथा जिला को लगभग दस लाख रुपये की राशि प्राप्त होती है। इसी राशि से मेले में व्यवस्था, प्रकाश, स्वच्छता और अन्य जरूरी सुविधाओं का प्रबंध किया जाता है।
जानकारी हो कि पहली बार बड़े जर्मन हैंगर पंडालों का निर्माण कराया गया है। पहले श्रद्धालु स्वयं प्लास्टिक के टेंट लगाकर रहते थे, लेकिन अब सुविधा सम्पन्न व्यवस्था के कारण श्रद्धालुओं को काफी राहत मिली है।
सूर्य महोत्सव’ नाम मिला, परंपरा वही
कई वर्ष पहले इस ऐतिहासिक मेले को ‘नालंदा सूर्य महोत्सव’ का नाम दिया गया था, हालांकि इसके आयोजन की भावना और धार्मिक गरिमा आज भी लोक आस्था के छठ महापर्व की मूल परंपरा के अनुरूप ही बनी हुई है।
मुख्य तथ्य एक नज़र में
- 1941: ब्रिटिश शासन ने बड़गांव को ₹334 और औंगारी को ₹221 की राशि दी थी।
- 1912: छठ पर्व पर अवकाश (छुट्टी) का आधिकारिक प्रविधान शुरू हुआ।
- 1921: निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत छठ को आधिकारिक पर्व का दर्जा मिला।
- बिहार पीजेंट लाइफ और रम्बल्स इन बिहार में बड़गांव-ओंगारी छठ मेले का उल्लेख।
- वर्तमान बजट: कुल लगभग ₹13 लाख (जिला + नगर पंचायत मिलाकर)।
- पहली बार: इस वर्ष लगाए गए बड़े जर्मन हैंगर पंडाल।


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