Bihar Election: सात पुश्तें नहीं तारी, तार दिया समाज... बिहार के वे विधायक जिन्होंने जनता की सेवा को माना परम धर्म
राजनीति में कई ऐसे नेता हुए जिन्होंने सत्ता पाने के बाद भी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। राम इकबाल वरसी जैसे नेताओं ने सादगी का जीवन जिया और जनता की सेवा को प्राथमिकता दी। मेघराज मेधावी ने शिक्षा के महत्व को समझा और लगातार जनसेवा में लगे रहे। काली राम ने अपने पुत्रों को हुनर की विरासत सौंपी। दिनेश्वर प्रसाद ने सादा जीवन जिया और राधा मोहन राय ने गरीबों के लिए त्याग किया।

बिहार के वे विधायक जिनकी सादगी आज भी मिसाल। फोटो जागरण
जागरण टीम, पटना। सांसद-विधायक बनने के बाद ‘सात पुश्तों को तार देने’ की प्रचलित कहावत है, लेकिन ऐसे भी हैं, जिन्हें सत्ता और विधायकी प्रभावित नहीं कर सका।
चुनावी महापर्व में ऐसे जनप्रतिनिधियों का स्मरण करते हैं, जिन्होंने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया, मौकापरस्त बनकर दल-बदल नहीं किया, आदर्श जीवन व्यतीत किया।
चुनावी राजनीति में उतरे तो स्वयं की जीत की बजाय जनता जीत जाए का ध्येय रखा। राजनीति को सेवा का माध्यम माना और जीवन भर उसका अनुकरण करते रहे।
भले ही तत्कालीन युग में सीमित संसाधन, समर्थन की कमी व राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति के अभाव में इनके सोच व विचारों का व्यापक क्रियान्वयन नहीं हो सका, लेकिन वह आज सर्वाधिक प्रासंगिक हैं।
इनके विचारों व कृतित्वों में राजनीतिक शुचिता, वंशवाद का विरोध, भ्रष्टाचार का निदान, समानता का अधिकार, जाति प्रथा का ह्रास व जनसंख्या नियोजन की पूरी कार्य योजना है।
हम और आप छह व 11 नवंबर को ईवीएम का बटन दबाकर ऐसे जनप्रतिनिधियों का चयन करें, जो इतने दृष्टि संपन्न हों, नैतिक हों, कर्तव्यनिष्ठ हों कि आगामी पांच वर्षों के दौरान स्वयं की सात पुश्तें तारने की बजाय समाज को तार देने का उद्यम करें।
विरोधी उम्मीदवार की मां से लिया जीत का आशीर्वाद
भोजपुर जिले के पीरो विधानसभा क्षेत्र से सोशलिस्ट पार्टी के विधायक रहे राम इकबाल वरसी स्वतंत्रता सेनानी थे। समाजवादी चिंतन को वास्तविकता के धरातल पर दिशा दी।
प्रसिद्ध समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने उन्हें “पीरो का गांधी” कहा था। जीवन सादगी, त्याग और आदर्शों की मिसाल था। रोहतास जिले के डालमियानगर के मथुरापुर कॉलोनी में जीवन का अधिकांश समय व्यतीत किया।
उनके पुत्र शिवजी सिंह तिलौथू के राधा संता कॉलेज में हैं। परिवार का रहन सहन और जीवन सादगी भरा है। उनकी राजनीति का अंदाज विशिष्ट था। आज जहां नेताओं में एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ मची है, शब्दों की मर्यादा टूट रही है।
वहीं वरसी 1969 में चुनाव मैदान में उतरने के बाद अपने खिलाफ लड़ रहे विरोधी उम्मीदवार के घर जा पहुंचे, उनकी मां से जीत का आशीर्वाद लिया। चुनाव जीतने के बाद वह दोबारा भी वहां गए।
उनका मानना था कि राजनीति जनसेवा है। ऐसे में राजकोष पर पहला अधिकार जनता का है और जनता के पैसे से नेता अपनी जीविका चलाए, यह अनुचित है। वह राजनेताओं के पेंशन को हराम बताते थे।
पूरा जीवन अभावों में व्यतीत किए, कभी जगजाहिर नहीं होने दिया। पूर्व सांसद नागेंद्र नाथ ओझा ने उनसे जुड़ा एक संस्मरण साझा किया था -“एक दिन वरसी जी मुझसे 100 रुपये उधार मांगने आए। जब मैंने 500 रुपये देने की पेशकश की तो बोले- ‘लगता है तू भी नाजायज कमा रहा क्या?’”
सरकार की आवास योजना से बने मकान
अनुसूचित जाति के मेघराज मेधावी भूमिहीन थे, जीवन यापन को मजदूरी करते थे, पर शिक्षा का महत्व जानते थे। जिले में एक-दो कालेज थे, उस जमाने में स्नातक उत्तीर्ण किया था।
कहते थे, सबको पढ़ना-लिखना चाहिए, तभी शोषण से मुक्ति मिलेगी, समतामूलक समाज की स्थापना हो सकेगी। जब भी विधानसभा चुनाव होता, लोग ही उन्हें बिक्रमगंज सीट से प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतार देते।
सीट सामान्य थी, लगातार पांच बार असफल रहे, परंतु जनसेवा में लगे रहे। उनकी लगन देख जनता का रुख बदला, 1985 में लोकदल के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे तो विधायक चुन लिए गए।
पांच वर्षों तक क्षेत्र का कुशलतापूर्वक नेतृत्व किया, सदन में क्षेत्र की समस्याएं पुरजोर तरीके से उठाते थे। स्वयं या परिवार के लिए कुछ नहीं जोड़ा। 1990 में उनका स्वर्गवास हो गया।
उनका परिवार आज भी मेहनत, मजदूरी व छोटी-मोटी निजी नौकरी पर आश्रित है। किसी की सरकारी नौकरी नहीं है। उनके पौत्र राजेश कुमार बताते हैं कि बाबा के चार पुत्र थे। घर पौत्र, पौत्रियों से भरा पूरा है, अभी भी अभाव है। सबके अपने मकान हैं, लेकिन सभी सरकार की आवास योजना से बने हैं।
पुत्र ने विरासत संभाली, राजनीति नहीं, हुनर की
जब जनसंघ (अब भाजपा) ने अपनी जड़ें जमाना शुरू ही किया था, तब 1969 के उस दौर में हुए विधानसभा चुनाव में संगठन से वैचारिक तौर पर जुड़े काली राम ने जीत की पताका लहरा दी थी।
1977 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में, फिर 1980 और 1990 में भाजपा के प्रत्याशी के रूप में उन्होंने चुनाव लड़े। राजनीति से पहले वह बांस की खचिया, सूप, टोकरी आदि बनाते थे, उनकी बैंड पार्टी भी थी। गीत-संगीत के शौकीन थे।
नाटक में अच्छी कलाकारी प्रस्तुत करते थे। गरीबी के कारण पढ़ाई जारी नहीं रख सके। नन मैट्रिक थे। बड़ी बात यह कि जनसंघ, बाद में भाजपा के स्तंभ माने जाने वाले यह नेता वंशवाद के पोषक नहीं थे।
तीन पुत्रों में किसी को राजनीति में आगे नहीं बढ़ाया, जबकि वह चाहते तो उस दौर में आसान था। आज पुत्र उनकी विरासत संभाल रहे हैं, परंतु राजनीति की, बल्कि हुनर की।
फतेहपुर प्रखंड के डुमरीचट्टी गांव में उनके पुत्र दिनेश राम बैंड बजाकर और पारंपरिक खचिया, सूप, टोकरी बेचकर आजीविका चला रहे हैं।
परिवार के अन्य सदस्य भी मेहनत, मजदूरी करते हैं। घर आज भी खपरैल है। पत्नी का जीवन भी अभावों में बांस की कारीगरी करते हुए व्यतीत हो गया।
जनता ने वोट व नोट देकर दो बार चुना विधायक
तत्कालीन सहार विधानसभा क्षेत्र का दो बार (1977 व 1980 ) में प्रतिनिधित्व करने वाले दिनेश्वर प्रसाद खेतिहर मजदूर के पुत्र थे। जेपी आंदोलन के दौरान आरा जेल गए तो वहां महामाया प्रसाद सिन्हा (पूर्व मुख्यमंत्री) के संपर्क में आए।
डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों के कायल थे। उस दौर के लोग बताते हैं कि उम्मीदवार बनकर क्षेत्र में आए तो फटे-पुराने कपड़े देख स्थानीय लोगों ने ही कुर्ता-पायजामा सिलवा दिया।
दोबारा 1980 में भी विधायक चुना गया, लेकिन दोनों चुनावों में घर से एक पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ा था। लोग उन्हें नोट और वोट दोनों देते थे।
स्वजन बताते हैं, पूर्व विधायक के नाते पटना में को-ऑपरेटिव की जमीन मकान बनाने के लिए मिल रही थी, लेकिन पैसे के अभाव में खरीदी नहीं जा सकी। चार बेटों व चार बेटियों के लिए मलौर गांव में एक साधारण मकान और कुछ जमीन है।
हकमारी देख स्वयं की डीलरशिप रद कराई, बेटे को भिजवाया जेल
पीरो प्रखंड के सुदूरवर्ती तार गांव के साधारण किसान परिवार के राधा मोहन राय ने सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर पीरो विधानसभा क्षेत्र (तत्कालीन) का 1952 व 1967 में प्रतिनिधित्व किया।
विधायक बनने के पहले उनके नाम गांव में जन वितरण प्रणाली की दुकान आवंटित थी, परंतु अनाज वितरण में लगातार गरीबों की हकमारी होती देख स्वयं पहल करके अपनी दुकान का लाइसेंस रद करा दिया।
विधायक चुने जाने के बाद एक बार उनके इकलौते पुत्र ने किसी से मारपीट कर दी तो उसे बचाने की बजाय गिरफ्तार करवाकर जेल भिजवाने में संकोच नहीं किया था। दो-दो बार विधायक रहने के बावजूद उन्होंने अपने कुनबे के लिए कुछ भी नहीं जोड़ा। आजीवन जनसेवा में लगे रहे।
इनपुट: रोहतास से उपेंद्र मिश्र, बिक्रमगंज से पार्थसारथी, भोजपुर से राणा अमरेश व विनोद सुमन, गया से हिमांशु गौतम
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