Bihar Election: पहले चरण के चुनाव प्रचार में गूंजा 'जंगलराज' बनाम 'गुंडाराज' का मुद्दा, विकास और रोजगार छूटे पीछे
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के प्रचार में 'जंगलराज' बनाम 'गुंडाराज' का मुद्दा छाया रहा। एनडीए ने राजद शासन को 'जंगलराज' बताकर घेरा, तो महागठबंधन ने सत्ता पक्ष पर अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया। विकास और रोजगार जैसे मुद्दे पीछे छूट गए। दोनों गठबंधनों ने भावनात्मक नैरेटिव पर जोर दिया, जिससे चुनावी माहौल गरमा गया।

प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (फाइल फोटो)
सुनील राज, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के मतदान के दिन नजदीक आ रहे हैं। मंगलवार को पहले दौरे के चुनाव प्रचार का अंतिम दिन है। अब प्रदेश के दोनों गठबंधनों का जोर दूसरे चरण के मतदान वाले क्षेत्रों पर है।
पहले चरण के प्रचार में राज्य की राजनीति अपने पुराने द्वंद्व में ही उलझी रही। दोनों गठबंधन के सहयोगी दलों ने अपने प्रचार के दौरान जंगलराज बनाम गुंडा राज पर सर्वाधिक जोर दिया।
भाजपा-जदयू गठबंधन जहां राजद के शासनकाल को जंगलराज बताकर मतदाताओं को चेताने में जुटे रहे, वहीं महागठबंधन सत्ता पक्ष पर अपराधियों को संरक्षण देने के आरोप जड़ता दिखा।
चुनावी मंचों से लेकर इंटरनेट मीडिया तक यह जुबानी जंग इतनी तेज रही कि विकास, रोजगार और शिक्षा जैसे वास्तविक मुद्दे हाशिये पर दिखाई दिए। सत्ता पक्ष के अधिकांश नेताओं के भाषण इस बात पर जोर देते रहे कि बिहार को फिर से अराजकता के दौर में नहीं जाने देंगे। एनडीए के शासन में कानून का राज कायम हुआ, लेकिन विपक्ष चाहता है कि राज्य फिर पुराने जंगलराज में लौट जाए।
जातिवाद और अपराध को संरक्षण देने का आरोप
दूसरी ओर, महागठबंधन ने पलटवार करते हुए एनडीए पर जातिवाद और अपराध को संरक्षण देने के आरोप लगाए। महागठबंधन का दावा रहा कि भाजपा और जदयू सरकार ने जातीय भेदभाव की ऐसी दीवार खड़ी कर दी है, जिससे आम नौजवान का भविष्य बर्बाद हो रहा है।
अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं, बल्कि उन्हें राजनीतिक संरक्षण दिया जा रहा है। भ्रष्ट अफसरशाही और सत्ता के संरक्षण में अपराध का नया मॉडल खड़ा किया गया है, जिसे सिस्टमेटिक जंगलराज कहा जा सकता है। दोनों गठबंधन के नेताओं के इस भाषणों को सुनने वाले-देखने वाले जानकार मानते हैं कि दोनों गठबंधन इस समय भावनात्मक नैरेटिव पर खेल रहे हैं।
बिहार की स्मृति में बैठा है जंगलराज शब्द
भाजपा-जदयू को पता है कि जंगलराज शब्द बिहार की राजनीतिक समृति में गहराई से बैठा है। वहीं, राजद इस बार अपराधियों को संरक्षण, विधि-व्यवस्था की बिगड़ी स्थिति स्थिति को भुनाने की कोशिश कर रहा है। दोनों ही पक्ष जनता को भय और असंतोष के बीच खींचने में लगे हैं।
चुनाव जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है राजनीतिक संवाद और अधिक तीखा हो रहा है। नतीजतन, बिहार की चुनावी राजनीति एक बार फिर विकास और नीति से ज्यादा आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में उलझ गई है। मतदाता इस बहस में किस नैरेटिव को ज्यादा अहमियत देते हैं यह समझना बेहद दुष्कर कार्य हो गया है।
बहरहाल एक दिन के बाद चुनाव प्रचार का पहला दौर समाप्त हो जाएगा। इसके बाद शुरू होगी दूसरे दौर की लड़ाई। अब यह देखना होगा कि दूसरे चरण के मतदान के मुद्दे क्या होंगे। बात जंगलराज बनाम गुंडाराज पर ही आगे बढ़ेगी या फिर विकास की बातों पर।

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