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    छह सीटों पर ‘साथी बनाम साथी’ की जंग, दूसरे चरण के मतदान में दिखेगा बड़ा राजनीतिक संग्राम

    By Sunil RajEdited By: Radha Krishna
    Updated: Mon, 10 Nov 2025 01:25 PM (IST)

    बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में महागठबंधन के भीतर छह सीटों पर 'साथी बनाम साथी' की जंग देखने को मिल रही है। राजद, कांग्रेस, सीपीआई और वीआईपी जैसी पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं। यह मुकाबला सिर्फ उम्मीदवारों का नहीं, बल्कि विचारधाराओं और राजनीतिक वफादारियों की भी टक्कर है, जो महागठबंधन की रणनीतिक कमजोरी को दर्शाता है।

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    बिहार विधानसभा चुनाव

    सुनील राज, पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में दूसरे चरण का मतदान जहां दोनों गठबंधनों के जनादेश का इम्तिहान है वहीं गठबंधन की राजनीति की स्थिरता की परीक्षा भी होगी। मंगलवार के मतदान में जिस तरह महागठबंधन के प्रमुख दल आधा दर्जन सीटों पर आमने-सामने हैं उससे प्रतीत होता है लड़ाई सत्ता-विपक्ष की नहीं बल्कि साथी बनाम साथी हो गई है।

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    दूसरे चरण के चुनाव में चार सीटों पर राजद-बनाम कांग्रेस, एक सीट पर सीपीआइ बनाम कांग्रेस और एक सीट पर राजद-वीआइपी के बीच आपसी टकराव होगा।

    नतीजा यह मुकाबला केवल उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि विचारधाराओं और सियासी वफादारियों की टकराहट का प्रतीक बन गया है। इन सीटों पर हर दल अपनी पकड़ साबित करने में जुटे हैं, चाहे साझेदारी की नींव ही क्यों न हिल जाए।


    जिन सीटों की यहां बात हो रही है उनमें एक सीट है करगहर। इस सीट पर एनडीए बनाम महागठबंधन की लड़ाई के बीच कांग्रेस के संतोष कुमार मिश्रा और सीपीआइ के महेंद्र प्रसाद गुप्ता के बीच भी टकराव दिखेगा।

    यह वही सीट है जहां वामदलों को जमीन देने पर कांग्रेस पहले से असहमति जता चुकी थी। इसके अलावा नरकटियागंज में राजद के दीपक यादव और कांग्रेस के शाश्वत केदार आमने-सामने हैं।

    यह सीट टिकट बंटवारे को लेकर आखिरी समय तक विवाद में रही। यहां लड़ाई केवल सीट की नहीं, बल्कि नेतृत्व की पकड़ की भी है।

    सिकंदरा में कांग्रेस के विनोद चौधरी के सामने राजद के वरिष्ठ नेता उदय नारायण चौधरी हैं। यहां एक ऐसा मुकाबला जिसने गठबंधन की नैतिकता पर भी सवाल खड़े किए हैं।

    इसी सीट पर दोस्ताना संघर्ष दिखाता है कि गठबंधन में समन्वय की कमी कितनी गहरी है।


    भागलपुर जि़ले की कहलगांव सीट पर राजद के रजनीश भारती और कांग्रेस के प्रवीण सिंह कुशवाहा के बीच लड़ाई ने गठबंधन की फील्ड स्ट्रेटेजी को झकझोर दिया है।

    इस सीट को कांग्रेस की परंपरागत सीट माना जाता रहा है। जहां से कभी सदानंद सिंह चुनाव जीतते थे। वहीं सुल्तानगंज में राजद के चंदन सिन्हा और कांग्रेस के ललन कुमार का मुकाबला इस बात का प्रमाण है कि स्थानीय नेताओं की महत्वकांक्षा ने गठबंधन के शीर्ष नेतृत्व को भी असहज कर दिया है।

    कैमूर जिले की चैनपुर सीट पर राजद और वीआइपी पार्टी के बीच संघर्ष ने गठबंधन के जातीय समीकरणों को उलझा दिया है।

    वीआइपी के गोविंद बिंद और राजद के ब्रज किशोर बिंद एक ही सामाजिक आधार पर दावा ठोक रहे हैं।


    छह सीटों पर साथी बनाम साथी का टकराव महागठबंधन के भीतर शक्ति-संतुलन की नई रेखाएं खींच रहा है। राजद जहां अपने विस्तारवादी रुख पर कायम दिखती है, वहीं कांग्रेस इस बार अपने अस्तित्व की जंग लड़ रही है।

    विश्लेषकों की मानें तो यह स्थिति महागठबंधन की रणनीतिक कमजोरी का संकेत है। जहां साझा दुश्मन से पहले सहयोगियों के बीच ही टकराव दिख रहा है।