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    बिहार में वाम दलों को चुनौती: 2020 का प्रदर्शन दोहराना है मकसद, नतीजे तय करेंगे भाकपा, माकपा व माले की राजनीतिक हैसियत

    Updated: Sat, 08 Nov 2025 01:06 PM (IST)

    बिहार में पहले चरण का मतदान हो चुका है और दूसरे चरण में 11 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। महागठबंधन के साथ वामपंथी दल 33 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, जिन्हें 2020 के प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती है। पिछले चुनाव में वाम दलों ने 16 सीटें जीती थीं। इस बार महागठबंधन में सीटों के बंटवारे में उन्हें खास महत्व नहीं मिला है, इसलिए यह चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।

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    वाम दलों के नेताओं को चुनाव में प्रदर्शन बेहतर होने की उम्मीद

    दीनानाथ साहनी, पटना। बिहार में पहले चरण का चुनाव संपन्न हो चुका है और दूसरे चरण में 11 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। इस बार के चुनाव में महागठबंधन के साथ वामपंथी दल 33 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं और उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहरा पाने की चुनौती है।

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    साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के साथ ही वाम दलों ने 24 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 16 सीटों पर जीत हासिल की थी।

    चुनाव परिणाम आने के बाद राजनीतिक हलकों में इसकी चर्चा खूब हुई थी। तब वाम दलों ने बिहार में न केवल सीटें जीतीं, बल्कि राज्य की सत्ता-समीकरण में अपनी राजनीतिक उपस्थिति और प्रभाव को एक बार फिर मजबूती से दर्ज कराया था।

    उस समय राजनीतिक दलों ने स्वीकार किया था कि चुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया है कि वामपंथ को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


    इस बार बिहार चुनाव में वाम दलों के लिए पुनरुत्थान का भी सवाल है। वो भी इस राजनीतिक परिस्थिति में जब महागठबंधन में सीट शेयरिंग में वाम दलों को खास महत्व नहीं दिया गया।

    राज्य में मजबूत संगठन और जनाधार को देखते भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने 40 सीटों की मांग महागठबंधन से की थी, उसे मात्र 20 सीटें दी गईं।

    भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने 24 सीटों की मांग रखी थी, लेकिन उसे मात्र छह सीटें दी गईं। हालांकि भाकपा नौ सीटों पर चुनाव लड़ रही है, इसमें तीन सीटों पर उसका फ्रेंडली फाइट कांग्रेस से है।

    ये सीटे हैं-बिहारशरीफ, राजापाकड़ और करगहर। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने 12 सीटों की मांग थी, किंतु उसे महागठबंधन ने सिर्फ चार सीटें दीं। इस तरह वाम दलों के लिए यह चुनाव राजनीतिक अस्तित्व से जुड़ा है।


    ऐसे में वाम दलों की उम्मीद भरी निगाहें एक बार फिर बिहार की जनता की ओर टिकी हैं। वैसे तीनों ही पार्टियों के नेता पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में बेहतर नतीजों के दावे कर रहे हैं।

    खासकर भाकपा-माले को सफलता की ज्यादा उम्मीद है क्योंकि महागठबंधन से गठजोड़ कर माले 2024 के लोकसभा चुनाव में भी मगध-शाहाबाद क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने में सफल रहा था और उसके दो सांसद जीते थे।

    माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने इस तथ्य को रेखांकित करते हुए वाम दलों को 2020 की तुलना में अधिक सीट जीतने की उम्मीद जतायी है।

    उनका कहना है कि पिछले चुनाव में कुछ सीटों पर वाम पार्टियों की हार का मार्जिन बहुत कम था।

    1972 में भाकपा का सबसे बेहतर प्रदर्शन

    वर्ष 1962 से 2020 तक वाम दलों का प्रदर्शन को देखें तो 1972 में भाकपा का सबसे बेहतर प्रदर्शन रहा। तब भाकपा ने 35 सीटों पर चुनाव जीता था और भाकपा मुख्य विपक्षी दल बनी थी और सुनील मुखर्जी प्रतिपक्ष के नेता बने थे।

    1962 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाकपा को 12 सीटों पर जीत मिली थी। 1964 में भाकपा से अलग होकर माकपा का गठन हुआ।

    जिसके बाद साल 1967 के चुनाव में भाकपा को जहां 26 और माकपा को 4 सीटों पर जीत हासिल हुई। 1977 के चुनाव में भाकपा ने 21 और माकपा ने 4 सीटें जीतीं।1980 के विधानसभा चुनाव में भाकपा को 23 और माकपा को 6 सीटों पर जीत हुई।

    1985 में भाकपा ने 12 व माकपा ने एक सीट जीती। 1990 में भाकपा को 23 और माकपा को 6, 1995 में भाकपा को 26, माकपा को 2, भाकपा-माले को 6, 2000 में भाकपा को 5, माकपा को 2, भाकपा-माले को 6, 2005 के अक्टूबर में भाकपा को 3, माकपा को 1 एवं भाकपा-माले को 5, 2010 में भाकपा को 1, 2015 में भाकपा-माले को 3, 2020 में भाकपा एवंमाकपा को 2-2 और भाकपा-माले को 12 सीटों पर जीत मिली।