राम विलास पासवान से तेजस्वी तक...राजनीति में जाति-धर्म की बात, शादी के लिए तोड़ी सारी दीवार
बिहार की राजनीति में जाति का गहरा प्रभाव है। कई नेता सार्वजनिक जीवन में जातिगत समीकरणों का उपयोग करते हैं, लेकिन निजी जीवन में अंतरजातीय और अंतर-धार्मिक विवाह करते हैं। तेजस्वी यादव, सुशील मोदी और राम विलास पासवान जैसे नेताओं के उदाहरण बताते हैं कि प्रेम में जाति की दीवारें टूटती हैं, पर चुनावी राजनीति में जाति का महत्व बना रहता है। 2025 के चुनाव में भी जाति एक महत्वपूर्ण कारक रहने की संभावना है।

बिहार के नेताओं की लव स्टोरी
डिजिटल डेस्क, पटना। बिहार की राजनीति का आधार रहा है जाति का गणित। यहां पार्टियां यादव, कुर्मी, भूमिहार और दलित वोटों के हिसाब से गठबंधन बनाती हैं और वोटर भी उसी पुरानी बेड़ी में जकड़ा रहता है।
इतिहास गवाह है कि जाति सिर्फ़ पहचान नहीं, बल्कि एक ख़ूनी हथियार रही है। 1990 के दशक के बारा (1992) और लक्ष्मणपुर-बाथे (1997) जैसे नरसंहारों ने दिखाया कि जाति के नाम पर लोग जान लेने-देने को तैयार रहते हैं। आज भी ग्रामीण बिहार में तनाव और सोशल मीडिया पर भड़काऊ टिप्पणियां बताती हैं कि जाति की पकड़ कितनी गहरी है।
2025 विधानसभा चुनाव के मुहाने पर, जब जातीय सर्वे और आरक्षण की बहस गरम है बिहार के नेताओं का प्रेम और शादी के मामले में जाति से बाहर निकल जाते हैं। ये वही नेता हैं, जो सार्वजनिक मंचों से जातिगत समीकरण साधकर वोटरों को रिझाते हैं और अपनी पार्टियों को जाति की धुरी पर खड़ा करते हैं। लेकिन निजी जीवन में यही नेता जाति और धर्म की दीवारें तोड़कर अंतरजातीय व अंतर-धार्मिक विवाह कर रहे हैं, जो उनके राजनीतिक रवैये से एकदम उलट है।
प्रेम में बंधन तोड़ने वाले नेता, मगर वोट के लिए जाति का दम
बिहार के दिग्गज नेताओं की ये निजी कहानियां उनके सार्वजनिक रुख से अलग संदेश देती हैं, जो 2025 के चुनावी माहौल में उनके दोहरे चरित्र को उजागर करता है।
तेजस्वी यादव: MY की सियासत, प्रेम में उदारता
राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव की पार्टी 'MY' (मुस्लिम-यादव) समीकरण पर वोट मांगती है। मगर तेजस्वी ने 2021 में क्रिश्चियन रेचल (अब राजश्री यादव) से अंतर-धार्मिक विवाह किया। यादव (OBC) पृष्ठभूमि से आने वाले इस नेता का यह कदम निजी जीवन में उदारता दिखाता है, जो उनकी पार्टी की जातिगत राजनीति से मेल नहीं खाता।
सुशील मोदी से राम विलास पासवान तक
बिहार की राजनीति के दो दिग्गज, सुशील कुमार मोदी और राम विलास पासवान, भले ही आज हमारे बीच न हों, लेकिन उनके निजी जीवन के निर्णय उनके दोहरे रुख को दर्शाते हैं। सुशील मोदी, वैश्य/बनिया पृष्ठभूमि से, ने 1986 में केरल की ईसाई जेसी जॉर्ज से प्रेम विवाह किया। यह अंतर-धार्मिक, अंतर-क्षेत्रीय विवाह था, जिसमें तत्कालीन भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने शिरकत की।
उनकी अगली पीढ़ी की शादियां भी अंतरजातीय/अंतरधार्मिक रहीं। इसी तरह, LJP संस्थापक राम विलास पासवान (दलित, पासवान जाति) ने 1983 में ब्राह्मण (सवर्ण) रीना शर्मा से अंतर-जातीय प्रेम विवाह किया। मगर उनकी पार्टियां क्रमशः सवर्ण और दलित वोटों पर निर्भर रहीं।
शांभवी चौधरी: दलित-सवर्ण प्रेम, एनडीए की सियासत
जदयू नेता अशोक चौधरी (पासी/दलित) की बेटी और सांसद शांभवी चौधरी ने 2022 में भूमिहार (सवर्ण) सायन कुणाल से विवाह किया। इस हाई-प्रोफ़ाइल दलित-सवर्ण प्रेम विवाह में नीतीश कुमार की सगाई में उपस्थिति ने इसे NDA के 'सबका साथ' के नारे से जोड़ा। मगर NDA की राजनीति अब भी जातिगत गठजोड़ पर टिकी है।
शाहनवाज से पप्पू यादव तक दोहरा रुख
BJP के सैयद शाहनवाज हुसैन ने 1994 में हिंदू (पंजाबी) रेणु शर्मा से अंतर-धार्मिक प्रेम विवाह किया। जन अधिकार पार्टी के पप्पू यादव (यादव, OBC) ने पंजाबी सिख रंजीत रंजन से प्रेम विवाह किया और अपनी बेटियों की शादियों में भी प्रगतिशील रुख अपनाया, पर उनकी राजनीति यादव वोटों पर निर्भर है।
प्रेम निजी, वोट जाति का
ऐसे तमाम नेता निजी जीवन में जाति-धर्म की दीवारें तोड़ रहे हैं, मगर उनकी पार्टियां और चुनावी रणनीतियां अब भी जाति के इर्द-गिर्द घूमती हैं। विश्लेषकों का मानना है कि ये निजी निर्णय युवा और शिक्षित वोटरों को प्रभावित कर सकते हैं, जो बदलाव की छवि चाहते हैं, लेकिन ग्रामीण बिहार, जहां 65% से ज़्यादा आबादी रहती है, में जाति की पकड़ अटूट है।
2023 का जातीय सर्वे और आरक्षण की बहस बताती हैं कि कोई भी पार्टी जातिगत आधार को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती। बिहार के ये नेता निजी जीवन में प्रेम के ज़रिए बेड़ियां तोड़ रहे हैं, मगर 2025 का चुनाव वोटरों को जाति के नाम पर रिझाने का खेल ही रहेगा।
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