'ये तेजस्वी की नहीं लालू यादव की हार', राजद के पुराने नेता ने खोला मोर्चा; बताया Lalu कैसे बने थे मुख्यमंत्री
राजद के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने लालू यादव पर हमला करते हुए कहा कि राजनीति Lalu Yadav और उनके परिवार के लिए व्यापार है। उन्होंने लालू यादव के मुख्यमंत्री काल की चर्चा करते हुए कई हमले किए हैं और कहा कि लालू प्रसाद परिस्थितिवश मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव में जनता ने उन्हें जमीन पर पटक दिया।

शिवानंद तिवारी और लालू यादव। फाइल फोटो
राज्य ब्यूरो, पटना। राजद के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने कहा है कि लालू प्रसाद परिस्थितिवश मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव में जनता ने उन्हें जमीन पर पटक दिया। राजनीति Lalu Yadav और उनके परिवार के लिए व्यापार है।
उन्होंने कहा कि यह हार तेजस्वी यादव की नहीं, लालू की है। क्योंकि तेजस्वी का अपना कोई व्यक्तित्व नहीं है। ये लालू यादव की ही आधुनिक प्रतिकृति है। आपादमस्तक अहंकार से चूर। यह चुनाव लालू राजनीति के अवसान का भी स्पष्ट संकेत है।
Shivanand Tiwari ने कहा कि लालू की राजनीति की तो 2010 में ही इतिश्री हो गई थी। उस चुनाव में लालू की पार्टी के मात्र बाइस विधायक ही विधान सभा में पहुंचे थे। हालत इतनी खराब हो गई थी कि राजद मुख्य विपक्षी दल की मान्यता भी नहीं मिल पाई थी, जबकि परिस्थितियों ने लालू यादव को एक समय मुख्यमंत्री बना दिया था।
शिवानंद ने बताया कैसे बनी थी लालू सरकार
शवानंद तिवारी ने सोमवार को अपने फेसबुक पोस्ट पर लालू प्रसाद के उत्थान से लेकर उनकी सत्ता पतन का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया है। कर्पूरी जी के निधन के बाद लालू यादव नेता विरोधी दल बने थे। 1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हारी, लेकिन किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला।
जनता दल के बाद वामपंथी पार्टियों और भाजपा को मिलाकर ही गैर कांग्रेसी सरकार बन सकती थी। जनता दल का केंद्रीय नेतृत्व लालू यादव को मुख्यमंत्री नहीं बनाना चाहता था। विशेष रूप से वीपी सिंह चाहते थे कि रामसुंदर दास मुख्यमंत्री बनें।
गठबंधन के नेता चयन के लिए जो पर्यवेक्षक दिल्ली से आए थे। उनको प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने अपनी इच्छा बता दी थी। इसलिए पर्यवेक्षकों ने पहले यह प्रयास किया कि सर्वसम्मति से रामसुंदर दास चुने जाएं। शरद यादव भी उस बैठक में मौजूद थे।
नीतीश कुमार के सहयोग से उन्होंने नेता पद के लिए विधायकों के बीच चुनाव कराने के लिए दबाव बनाया। जब चुनाव की नौबत आयी तो चंद्रशेखर ने अपनी ओर से रघुनाथ झा को भी उम्मीदवार बना दिया। नतीजा हुआ कि लालू यादव बहुत आराम से मुख्यमंत्री बनाए गए। वे कांग्रेस, वामपंथी और भाजपा के सहयोग से बिहार के मुख्यमंत्री बने।
लालू ने ताकत का सही इस्तेमाल नहीं किया
तिवारी ने लिखा कि लालू यादव के राजनैतिक जीवन के लिए मंडल कमीशन लागू किया जाना एक सुनहरा अवसर लेकर आया। इसके समर्थन में अभियान ने उनकी राजनीतिक प्रतिष्ठा को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा दिया था।
मंडल के विरोध में लालकृष्ण आडवाणी की रामरथ यात्रा ने उन्माद फैला दिया था। उस यात्रा को बिहार में रोकने और आडवाणी को गिरफ़्तार करने के बाद तो लालू यादव न सिर्फ़ राष्ट्रीय हीरो बन गए, बल्कि उनकी ख्याति देश की सीमा लांघ गई, लेकिन लालू प्रसाद ने इन दो ऐतिहासिक घटनाओं से जो ताकत और प्रतिष्ठा हासिल की थी, उसे संभालने और उस ताकत के सहारे छोटी और कमज़ोर जातियों को ऊपर उठाने का काम नहीं किया।
नीतीश कुमार की तारीफ
जेपी आन्दाेलन के अग्रणी नेता रहे शिवानंद तिवारी ने लिखा कि नीतीश कुमार जोखिम उठाने वाला कदम उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं उठाया। इसीलिए वे बिहार तक ही सीमित रह गए। काफी प्रयास के बाद वे लालू यादव से अलग हुए और सामाजिक न्याय आंदोलन को उन्होंने छोटी और कमजोर जातियों तथा महिलाओं तक पहुंचाया।
Nitish Kumar के कार्यक्रमों ने बिहार के समाज में बदलाव लाया। दूसरी ओर लालू यादव अपने परिवार से बाहर नहीं निकले. जाति उनके परिवार का ही विस्तार है. लालू और नीतीश की राजनीति का फर्क देखने के लिए इन दोनों ने किन लोगों को और किस आधार पर विधान परिषद और राज्यसभा में भेजा है इसकी सूची की तुलना की जा सकती है।

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