Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Bihar Politics: कहीं दोस्ती, कहीं दुश्मनी वाला रिश्ता... बिहार में मजबूरी में वाम दल दे रहे कांग्रेस का साथ

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 01:32 PM (IST)

    बिहार में वाम दलों और कांग्रेस के बीच गठबंधन की स्थिति डांवाडोल है। वामदल विचारधारा पर कायम नहीं रह पाए हैं और अब मजबूरी में कांग्रेस का साथ दे रहे हैं लेकिन उनसे दूरी भी बनाए हुए हैं। वोटर अधिकार यात्रा में भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य के अलावा अन्य वामपंथी नेताओं ने दूरी रखी। इसका मुख्य कारण भाजपा का विरोध है।

    Hero Image
    बिहार में मजबूरी में वाम दल दे रहे कांग्रेस का साथ

    दीनानाथ साहनी, पटना। वामदलों का कांग्रेस से रिश्ता कहीं दोस्ती, कहीं दुश्मनी जैसा है। वे अपनी विचारधारा पर कायम नहीं रह पाए, जिसका नुकसान उन्हें उठाना पड़ा। अब बिहार में वामदल मजबूरी में कांग्रेस का साथ दे रहे हैं, लेकिन एक हद तक दूरी भी बना रहे हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    संपूर्ण वोटर अधिकार यात्रा में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी/लिबरेशन) यानी भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य को छोड़ दें तो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के तमाम बड़े नेताओं ने दूरी बनाए रखी। केवल पटना में वोटर अधिकार मार्च में भाकपा-माकपा का शीर्ष नेतृत्व दिखा।

    पूरी यात्रा के दौरान राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के कमोवेश तमाम बड़े नेता, कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों, झारखंड मुक्ति मोर्चा के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव शामिल हुए, लेकिन भाकपा के महासचिव डी. राजा और माकपा के महासचिव एम.ए.बेबी इस यात्रा में नहीं दिखे।

    यह दीगर बात है कि वोटर अधिकार यात्रा के समापन पर पटना में आयोजित कार्यक्रम में भाकपा के राष्ट्रीय सचिव एनी राजा मंच पर बैठे नजर आए। चूंकि दीपंकर भट्टाचार्य पूरी यात्रा में राहुल-तेजस्वी के साथ थे, तो वे मंच पर भी उपस्थित रहे।

    आखिरी वक्त में माकपा के महासचिव एमए. बेबी जरूर मंच पर दिखे। इससे पहले कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में विपक्षी दलों के सम्मिलित होने के राहुल गांधी के आग्रह पर वामदलों ने आपत्ति जताई थी और दूरी बनाई थी।

    भाकपा के राज्य सचिव मंडल के एक सदस्य ने नाम नहीं छापने की शर्त बताया कि कहने को तो यह महागठबंधन द्वारा वोटर अधिकार यात्रा निकाली गई, लेकिन यह यात्रा सिर्फ राहुल गांधी का रोड शो के रूप में ज्यादा नजर आया। फिर भी हमारी पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने यात्रा में बड़ी भागीदारी निभाई।

    वाम दल गठबंधन के लिए मजबूर क्यों?

    यह पहला मौका है, जब बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के साथ तीन प्रमुख वामपंथी दलों का एक मुकम्मल शक्ल में चुनावी गठबंधन हुआ है। इसमें विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) भी शामिल है।

    यह भी खास बात है कि महागठबंधन नाम से जाने जा रहे इस चुनावी तालमेल की चर्चा अब सवालों से अधिक संभावनाओं के सिलसिले में होने लगी है। इसकी पहली वजह बनी हैं वो एसआईआर, जिसको लेकर वोटर अधिकार यात्रा निकाली गई। इसमें वामदलों के कार्यकर्ता भी सक्रिय रहे।

    जाहिर है कि भिन्न विचारधारा और कई आर्थिक-सामाजिक मुद्दों पर मतभेदों के बावजूद राजद और कांग्रेस से इन वामदलों के चुनावी तालमेल का मुख्य आधार ही भाजपा के विरोध में एक अहम मोर्चा बनना है। इस विरोध को देशहित में एक बड़ा मकसद मानते हुए वामपंथी नेता खुल कर कहते हैं कि जहां कहीं एनडीए की सत्ता है, वहां सांप्रदायिक ताकतें संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए ख़तरा बन चुकी हैं।

    इसी वैचारिक दलील के बूते वामदल उन सवालों को यहां चुनावी संदर्भ में गैरजरूरी बता कर टालते भी हैं, जो सवाल लालू-राबड़ी परिवार या कांग्रेसी अथवा गांधी परिवार से जुड़े शासनकाल के भ्रष्टाचार या बुरे हाल को लेकर उठाए जाते हैं।

    ऐसे में भाकपा-माले के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि किसी बड़े मकसद के लिए कुछ छोटे-छोटे समझौते करने पड़ जाते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या वर्तमान हालात में वामपंथी दल एक बार फिर अपनी खोई राजनीतिक जमीन हासिल कर पाएंगे?

    यह भी पढ़ें- Bihar Politics: 'किस्त जारी होने का डर... कहीं अगला नंबर मेरा न हो', लीगल नोटिस पर अंदर की बात बता गए PK

    comedy show banner
    comedy show banner