बिहार विधानसभा की समितियों में अब कम हो जाएगी राजद की हिस्सेदारी, कांग्रेस को मिल सकता है नेतृत्व
इस बार विधानसभा समितियों में राजद की हिस्सेदारी कम होने की संभावना है, क्योंकि सदन में उनका संख्या बल घट गया है। राजद को लोक लेखा समिति मिलने की उम्मी ...और पढ़ें

राज्य ब्यूरो, पटना। विधानसभा की समितियों में भी राजद की हिस्सेदारी इस बार कम हो जानी है। असली कारण सदन में संख्या बल है। इस बार पार्टी को दो समितियों में नेतृत्व मिलने की आशा है। उनमें से लोक लेखा समिति की अपेक्षा स्वाभाविक है, क्योंकि विधानसभा में राजद मुख्य विरोधी दल है।
सरकार मेहरबान हुई तो एक समिति की अध्यक्षता कांग्रेस के हिस्से में आ सकती है। इस तरह महागठबंधन को तीन समितियों से ही संतोष करना होगा। पिछली बार कुल 10 समितियों में सभापति की भूमिका में महागठबंधन के विधायक रहे थे। उनमें से छह का नेतृत्व राजद ने किया था।
इस बार राजद के मात्र 25 विधायक हैं। अगर एक विधायक भी कम हुआ होता, तो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के दर्जा हेतु सरकार की कृपा अपेक्षित हो जाती। दो विधायक कम होने पर तो दावेदारी का कोई आधार भी नहीं बनता।
2010 में तो सदन में राजद की संख्या इस पद के लायक भी नहीं थी। उसके बाद से पार्टी के अब तक के इतिहास में इस बार दूसरी बड़ी पराजय हुई है। विधानसभा की तीन सीटों (ढाका, जहानाबाद, बोधगया) पर तो एक हजार से भी कम मतों के अंतर से जीत हुई है। वोटिंग के समीकरण में मामूली परिवर्तन भी 2010 जैसी स्थिति बना देती। तब राजद के मात्र 22 विधायक थे।
विधानसभा में 20 से 25 समितियों का गठन होता है। बहरहाल, 25 विधायकों के बूते राजद को दो से अधिक समितियों में नेतृत्व मिलने की संभावना कम ही है। कांग्रेस के छह और वामदलों के तीन और इंडियन इंक्लूसिव पार्टी के एक विधायक के दम पर तीसरी समिति मिल सकती है।
संख्या बल और गठबंधन धर्म की मर्यादा के अंतर्गत राजद चाहेगा कि उसका नेतृत्व कांग्रेस को दिया जाएगा, क्योंकि महागठबंधन की एकजुटता के लिए अभी कांग्रेस को साधे रखना बेहद आवश्यक है। ऐसी परिस्थिति में भी राजद को संतोष इसलिए है, क्योंकि समितियां अब कागजी मात्र रह गई हैं। पिछली विधानसभा में समितियों के कामकाज के आधार पर ऐसा एक विधायक का मानना है।
लोक लेखा समिति का नेतृत्व विपक्ष को दिए जाने की विधायी परंपरा है, जिसका अब तक अनुपालन होता रहा है। पिछली बार भाई वीरेंद्र ने इस समिति का नेतृत्व किया था, जो इस बार भी मनेर से विजयी रहे हैं।
इसके अलावा राजद को पुस्तकालय, बिहार विरासत विकास, आंतरिक संसाधन व केंद्रीय सहायता, शून्यकाल और गैर-सरकारी संकल्प समिति का सभापतित्व मिला था। गैर-सरकारी संकल्प समिति के सभापति तेजप्रताप यादव थे, जो इस बार राजद से अलग होकर अपने जनशक्ति जनता दल के टिकट पर चुनाव हार चुके हैं।

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