बिहार चुनाव के पहले चरण में बंपर वोटिंग, फिर भी बूथ से दूर रहे शहरी वोटर; दूसरे फेज में मूड बदलने के आसार!
राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग के प्रयासों के बावजूद शहरी क्षेत्रों में मतदान के प्रति मतदाताओं की उदासीनता बरकरार है। 2025 के विधानसभा चुनाव में भी कई शहरी सीटों पर मतदान प्रतिशत कम रहा, जो लोकतंत्र के लिए निराशाजनक है। विशेषज्ञों का मानना है कि शहरों में मतदान को प्राथमिकता न देने के कारण यह समस्या बनी हुई है।
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क्या दूसरे फेज में शहरों में होगी बंपर वोटिंग। (जागरण)
राज्य ब्यूरो, पटना। राजनीतिक दलों के तमाम प्रयास एवं चुनाव आयोग की संपूर्ण जागरूकता के बावजूद मतदान के प्रति शहरी सीटों पर मतदाताओं की उदासीनता इस बार भारी रही।
चुनावी पारा भले ही राजनीतिक दलों के पोस्टर, दीवारों की रंगाई, इंटरनेट मीडिया अभियानों एवं रोज बदलते चुनावी बयानों से गरमाता रहा, लेकिन शहर के मतदान केंद्रों पर इसका असर कमजोर दिखा।
लोकतंत्र के इस सबसे बड़े पर्व में शहर के मतदाता फिर एक बार पिछड़ गए। हालांकि, पिछले चुनावों की तुलना में मामूली ही सही लेकिन जागरूकता बढ़ी है।
आजादी के उपरांत रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग के बावजूद 2025 के विधानसभा चुनाव में प्रथम चरण के मतदान संबंधित आंकड़े इसकी पुष्टि कर रहे हैं। राजधानी पटना की चार सीटों के साथ ही मुजफ्फरपुर, बिहारशरीफ एवं छपरा जैसी कई सीटें इस सूची में सम्मिलित है।
विशुद्ध रूप से शहरी विधानसभा क्षेत्र में सूचीबद्ध उपरोक्त सीटों पर पड़े वोट लोकतंत्र के प्रति निराशा जनक संकेत हैं। प्रथम चरण के 18 जिलों के 121 विधानसभा क्षेत्र में छह नवंबर को हुए मतदान के उपरांत 10 सीटें ऐसी चिह्नित हुई जहां 55 प्रतिशत से कम मतदान हुए हैं।
हालांकि, पिछले चुनावों की तुलना में शहरी क्षेत्र के मतदान प्रतिशत में सुधार भी हुआ है। ऐसे में अब मंगलवार को होने वाले मतदान के दौरान लोगों दायित्व बनता है कि वह इस दाग को धोने का प्रयास सुनिश्चित करें।
उदासीनता के कारणों की बात करें तो लंबी लाइनों को लेकर अरुचि, भीड़भाड़ वाली पार्किंग, छुट्टी के दिन घर से नहीं निकलने की आदत और राजनीतिक दलों से उपजी निराशा जैसे कारण अक्सर सामने आते हैं।
दूसरी ओर चुनाव आयोग ने जागरूकता अभियान से लेकर सेल्फी प्वाइंट तक तैयार किए, लेकिन इनका असर अपेक्षित नहीं दिखा। शहरों में रहने वाले मतदाता सूचना और सुविधाओं के मामले में आगे रहते हैं, फिर भी लोकतांत्रिक भागीदारी में पिछड़ रहे हैं।
यह अंतर समझ से परे है और हर चुनाव के बाद बहस को जन्म देता है। राजनीतिक दल भी इसे लेकर चिंतित हैं क्योंकि कम मतदान सीधे तौर पर उनके समीकरणों को प्रभावित करता है।
शहरी सीटों पर कम मतदान ने यह साफ कर दिया कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए सिर्फ ग्रामीण इलाकों के उत्साह पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। शहरों को भी आगे आकर अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।
चुनाव विशेषज्ञों की राय है कि जब तक शहर का मध्यम वर्ग मतदान को अपनी प्राथमिकता में सम्मिलित नहीं करेगा, तब तक इस समस्या का समाधान नहीं होगा। लोकतंत्र तभी सशक्त होगा जब हर मतदाता अपनी भूमिका निभाए।
60 प्रतिशत से कम मतदान वाली सीट
- कुम्हरार- 40.17
- बांकीपुर -41.32
- दीघा- 42.67
- दानापुर - 58.51
- बिहारशरीफ- 55.00
- अस्थावां- 56.81
- आरा- 56.38
- छपरा- 58.10
- एकमा- 58.70
- मुजफ्फरपुर -59.17

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