Women Power in Polls:मतदान में महिला पावर! साइकिल से भरी रफ्तार, दीदियों’ ने की मत वर्षा
बिहार में मतदान के दौरान घूंघट ओढ़े महिलाएं लोकतंत्र को मजबूत कर रही हैं। महिला सशक्तिकरण की योजनाओं, जैसे साइकिल योजना और जीविका समूहों ने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई है। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना और पंचायतों में आरक्षण ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2010 में महिलाओं ने पुरुषों को मतदान में पीछे छोड़ दिया, और 2015 में सबसे अधिक 60.57% मतदान किया।

जीविका दीदियों ने महिलाओं की लोकतंत्र में भागीदारी को पंख लगाए
अक्षय पांडेय, पटना। घूंघट ओढ़े महिलाएं बिहार में मतदान के लिए कतार में खड़े होकर लोकतंत्र को मजबूत करने में सबसे अग्रणी भूमिका अदा कर रही हैं। संस्कारों को सहेजने वाली आधी आबादी में ये परिवर्तन ऐसे नहीं आया। इसके लिए अवसर और महिला केंद्रित योजनाओं ने बड़ी भूमिका निभाई।
साइकिल से रफ्तार भरने की शुरुआत हुई। जीविका दीदियों ने महिलाओं की लोकतंत्र में भागीदारी को पंख लगाए।
पंचायती राज्य व्यवस्था में आरक्षण ने मुखर बनाया। ''''मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना'''' ने आधी आबादी को सीधे सरकार से जोड़ दिया। शराबबंदी से मुंह भले पुरुषों के सूखे, पर महिलाओं को सुरक्षा का एहसास हुआ।
बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं की भागीदारी की बात करें, तो अबतक सबसे अधिक 60.57 प्रतिशत मत वर्ष 2015 में पड़े। 2020 के चुनाव में यह आंकड़ा थोड़ा कम होकर 59.58 प्रतिशत तक पहुंचा।
90, 95 और 2000 में महिलाओं ने 50 प्रतिशत से अधिक मत दिए। 2005 की फरवरी और नवंबर में हुए चुनाव में मत प्रतिशत क्रमशः 42.51 और 44.50 पहुंच गया।
आधी आबादी को योजनाओं से प्रोत्साहन
इस परिवर्तन मुख्य कारण महिला-केंद्रित योजनाएं रहीं। ''''मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना'''' के तहत 1.25 करोड़ महिलाओं को 10 हजार रुपये दिए गए, जो स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहन बना। जीविका समूहों ने ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त किया।
साइकिल योजना (2006 से) ने लड़कियों की शिक्षा बढ़ाई। पंचायतों में 50 प्रतिशत आरक्षण, सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत, विधवाओं की पेंशन (400 से 1,400 रुपये) और शराबबंदी ने महिलाओं को सुरक्षा का एहसास दिया।
2010 में पुरुषों से अव्वल हो गईं महिलाएं
अंगुली पर स्याही लगाने में पुरुष का महिलाओं को पछाड़ने का सिलसिला वर्ष 2010 में टूटा। इस साल पुरुष ने 51.11 प्रतिशत मत दिया, तो महिलाओं की लोकतंत्र को मजबूत करने में भागीदारी 54.44 प्रतिशत पहुंच गई।
2015 में भी महिलाएं चुप्पा मतदाता निकलीं। इस साल पुरुषों ने 53.32 और महिलाओं ने 60.57 प्रतिशत मत दिए।
बाहर गए पुरुष, महिलाओं ने संभाली जिम्मेदारी
एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूय (आद्री) की सदस्य सचिव व अर्थशास्त्रीय अस्मिता गुप्ता कहती हैं कि देश में बीते 40 वर्षों में महिला मतदाताओं की संख्या बढ़ी है।
पलायन की वजह से पुरुष राज्य से बाहर गए, तो महिलाओं ने सरकार बनाने में भागीदार बनने की जिम्मेदारी संभाल ली। प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या बढ़ाने में साइकिल योजना और जीविका का बड़ा योगदान रहा।
एक अध्ययन के मुताबिक साइकिल हाथ में आई, तो लड़कियों का बीच में पढ़ाई छोड़ने का आंकड़ा खत्म होने लगा।
पंचायत में 50 प्रतिशत आरक्षण और पुलिस में आधी आबादी के भागीदारी से महिलाओं की महत्वकांक्षाएं बढ़ीं। बिहार में अलग ये रहा कि 2015 और 2020 के चुनाव में पुरुषों से ज्यादा मत महिलाओं ने दिए।
बीते 20 की सरकारी योजनाओं और चाक-चौबंद सुरक्षा ने तस्वीर तो बदली ही है।
जीविका समूह ने बदला राज्य का परिदृश्य
महिला अधिकारों के लिए कार्य करने वाली पद्मश्री सुधा वर्गीज कहती हैं कि सरकार चुनने में आधी आबादी अधिक सक्रिय हुई है, इसे जानने के लिए अब किसी आंकड़े की जरूरत नहीं रह गई।
बिहार में ये परिदृश्य जीविका समूह ने बदला है। अनुसूचित जातियों से जुड़ी महिलाओं अभी भी जागरूक नहीं हैं। पार्टियां महिलाओं को मत के तौर पर तो देखती हैं, पर टिकट देने में पीछे हट जाती हैं।
दलों के घोषणा पत्र में महिलाओं को केंद्र में रखने की बातें होनी चाहिए। बराबरी की बात कागजों से निकलकर जमीन दिखे, तो महिला मतदाताओं की संख्या में और इजाफा होगा।
| वर्ष | वोट प्रतिशत | पुरुष | महिला |
| 1962 | 44.47 | 54.94 | 32.47 |
| 1967 | 51.51 | 60.82 | 41.09 |
| 1969 | 52.79 | 62.86 | 41.43 |
| 1972 | 52.79 | 63.06 | 41.30 |
| 1977 | 50.51 | 71.27 | 38.32 |
| 1980 | 57.28 | 66.57 | 46.86 |
| 1985 | 56.27 | 65.81 | 45.63 |
| 1990 | 62.04 | 69.63 | 53.25 |
| 1995 | 61.79 | 67.13 | 55.80 |
| 2000 | 62.57 | 70.71 | 53.28 |
| 2005 (फरवरी) | 46.49 | 49.94 | 42.51 |
| 2005 (नवंबर) | 45.01 | 47.02 | 44.5 |
| 2010 | 52.65 | 51.11 | 54.44 |
| 2015 | 56.66 | 53.32 | 60.57 |
| 2020 | 62.57 | 54.68 | 59.58 |

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