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    18 साल बाद संपत्ति विवाद में कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला, बेटी को पिता की प्रॉपर्टी में बराबरी का हक

    Updated: Fri, 05 Sep 2025 12:26 PM (IST)

    बनमनखी न्यायालय ने 18 साल पुराने संपत्ति विवाद में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। दिवंगत भगवती देवी ने पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी के लिए मुकदमा दायर किया था। अदालत ने फैसला सुनाया कि बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार है। मुकदमे के दौरान कई बाधाएं आईं लेकिन अंततः न्याय मिला जो बेटियों के सम्मान की जीत है। भुवनेश्वर राय ने अदालत के फैसले पर संतोष व्यक्त किया।

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    18 साल बाद संपत्ति विवाद में कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला

    संवाद सहयोगी, बनमनखी (पूर्णिया)। न्याय में आस्था और धैर्य का अद्भुत उदाहरण पेश करते हुए बनमनखी व्यवहार न्यायालय के मुंसिफ अनुराग ने 18 वर्ष पुराने टाइटल सूट नंबर 78/2007 में ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

    कोशी शरण देवोत्तर पंचायत के मालिनियां निवासी दिवंगत भगवती देवी द्वारा पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी के दावे से शुरू हुई यह लड़ाई वर्षों की प्रतीक्षा, परिजनों की मौत और सुनवाई में आई बाधाओं के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि पुत्री को पिता की संपत्ति में बराबरी का अधिकार प्राप्त है।

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    अदालत का यह आदेश सिर्फ़ एक परिवार की जीत नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था पर विश्वास और बेटियों के सम्मान की स्वीकृति है। साल 2007 में पारिवारिक उपेक्षा से आहत होकर भगवती देवी ने पूर्णिया न्यायालय में मुकदमा दायर किया था। बीमारी और अदालती दौड़-भाग से थककर उनकी मृत्यु हो गई।

    इसके बाद उनके पुत्र भुवनेश्वर राय और चंदेश्वरी राय ने मुकदमे को आगे बढ़ाया। मुकदमे की लंबी अवधि में दोनों पक्षों के पांच सदस्य काल के गाल में समा गए, फिर भी भुवनेश्वर राय ने अदालत पर भरोसा नहीं छोड़ा।

    इस दौरान उन पर जानलेवा हमला भी हुआ, सिर पर लोहे की राड से प्रहार किया गया, लेकिन उन्होंने कहा कि यह लड़ाई केवल ज़मीन-जायदाद की नहीं, बल्कि बेटियों के सम्मान और हक की है।

    सुनवाई के दौरान मामला पूर्णिया से बनमनखी न्यायालय में स्थानांतरित हुआ और कई बार अधिकारियों के तबादले से इसकी रफ्तार धीमी हो गई, लेकिन हाल में मुंसिफ अनुराग के पदभार ग्रहण करने के बाद मामले की त्वरित सुनवाई हुई और 28 अगस्त 2025 को ऐतिहासिक फैसला आया। आदेश सुनते ही भुवनेश्वर राय की आंखों से छलकते आंसू 18 वर्षों की पीड़ा और धैर्य की गवाही दे रहे थे।

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