Karakat Seat Election 2025: मुंह में विकास की बात, दिल में जातीय समीकरण; काराकाट में दिलचस्प मुकाबला
काराकाट विधानसभा क्षेत्र में चुनावी माहौल गर्म है। नेता विकास की बात कर रहे हैं, पर जनता में जातीय समीकरणों की चर्चा है। इस बार 13 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें एनडीए, महागठबंधन और निर्दलीय शामिल हैं। जातीय समीकरणों का प्रभाव हमेशा से यहां के चुनाव परिणामों पर रहा है, और इस बार भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। देखना यह है कि इस बार विकास की जीत होती है या जाति हावी रहती है।

मुंह में विकास की बात, दिल में जातीय समीकरण; काराकाट में दिलचस्प मुकाबला
पार्थसारथ पांडेय, बिक्रमगंज (रोहतास)। विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज होते ही काराकाट विधानसभा क्षेत्र में राजनीति का पारा चढ़ गया है। यहां नेता विकास की बात तो कर रहे हैं, लेकिन जनता के बीच चर्चा जातीय समीकरणों की ही हो रही है। काराकाट में इस बार मुकाबला दिलचस्प है, जहां 13 प्रत्याशी मैदान में हैं।
एनडीए की ओर से जदयू मैदान में है, जबकि महागठबंधन ने यह सीट भाकपा (माले) को दी है। इसके अलावा जन सुराज और बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी भी चुनावी रण में डटे हैं। इन सबके बीच निर्दलीय उम्मीदवार भी समीकरण बिगाड़ने की ताकत रखते हैं। मतदाता भले विकास की बातें सुन रहे हों, लेकिन गांव-गांव और टोले-टोले में चर्चा जातीय संतुलन और उम्मीदवार की सामाजिक पकड़ पर ही केंद्रित है।
काराकाट विधानसभा में कुल 3,29,269 मतदाता हैं, जिनमें 1,74,069 पुरुष, 1,55,180 महिला और 20 तृतीय लिंग के मतदाता शामिल हैं। इसमें 1576 वरीय नागरिक, 7784 युवा मतदाता, 3639 दिव्यांग मतदाता हैं। मतदान केंद्रों पर सुरक्षा और सुविधा की तैयारियां प्रशासन ने शुरू कर दी है।
कुल 409 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। जिनमें बिक्रमगंज प्रखंड में 117, बिक्रमगंज नगर में 41 संझौली 55, काराकाट प्रखंड में 182 और काराकाट नगर पंचायत क्षेत्र में 14 मतदान केंद्र हैं। 203 मतदान केंद्र अति संवेदनशील, 46 संवेदनशील और 5 आदर्श मतदान केंद्र बनाए गए हैं। आदर्श मतदान केंद्र पर सभी मतदान कर्मी महिलाएं होंगी।
काराकाट विधानसभा पहले भी राजनीतिक रूप से चर्चित रहा है। यहां के मतदाता जागरूक माने जाते हैं, लेकिन जातीय समीकरण हर बार परिणाम को प्रभावित करते हैं। पिछली बार हुए चुनाव में भी मतों का विभाजन इसी आधार पर हुआ था। इस बार हालांकि सभी दल विकास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसे मुद्दों को चुनावी एजेंडा बना रहे हैं, परंतु जमीनी स्तर पर जातिगत निष्ठा ही वोट के रुझान को तय करती दिख रही है।
काराकाट का चुनावी संग्राम इस बार केवल दलों के बीच नहीं, बल्कि विचारधाराओं और जातीय समीकरणों के बीच टकराव बन गया है। जनता अब यह तय करेगी कि इस बार विकास की जीत होगी या जाति ही हावी रहेगी।

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