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    Bihar chunav Result: समस्तीपुर की उजियारपुर सीट से आलोक मेहता की हैट्रिक

    By Angad Kumar Singh Edited By: Ajit kumar
    Updated: Fri, 14 Nov 2025 03:35 PM (IST)

    उजियारपुर विधानसभा क्षेत्र में राजद के आलोक कुमार मेहता ने एनडीए के प्रशांत कुमार पंकज को हराकर तीसरी बार जीत दर्ज की है। स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने और जनता से सीधा संवाद स्थापित करने के कारण उन्हें सफलता मिली। महिला मतदाताओं और यादव-कुशवाहा समुदाय के समर्थन ने उनकी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस परिणाम से स्पष्ट है कि बिहार की राजनीति में स्थानीय जनभावना और उम्मीदवार की विश्वसनीयता महत्वपूर्ण है।

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    विरोधी लहर के बीच आलोक मेहता ने जीत हासिल की है। फाइल फोटो

    संवाद सहयोगी, दलसिंहसराय (समस्तीपुर)। Bihar chunav Result: उजियारपुर विधानसभा क्षेत्र ने इस बार राजनीतिक इतिहास का नया अध्याय लिखा है। राजद के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री आलोक कुमार मेहता ने तीसरी बार लगातार जीत दर्ज कर हैट्रिक बना ली।

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    उन्होंने एनडीए गठबंधन के उम्मीदवार प्रशांत कुमार पंकज को 15881मतों से पराजित कर दिया। हालांकि अभी तक इसकी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है।

    इस जीत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि बिहार की राजनीति में स्थानीय जनभावना और उम्मीदवार का सीधा जुड़ाव गठबंधन की लहरों से अधिक असरदार होता है।

    एनडीए का प्रचार तेज, पर असर फीका

    चिराग पासवान, देवेंद्र फडणवीस जैसे बड़े नेताओं की मौजूदगी और केंद्र-राज्य की उपलब्धियों के दावे उजियारपुर के मतदाताओं को प्रभावित नहीं कर सके। मतदाताओं ने वायदे से अधिक स्थानीय कार्य और व्यक्तिगत संबंधों को प्राथमिकता दी।

    पूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद के जन सुराज से चुनाव लड़ने और भाजपा के स्थानीय नेताओं में मतभेद के कारण एनडीए को अपेक्षित एकजुटता नहीं मिल सकी। वोटरों ने इस चुनाव में स्पष्ट संदेश दिया कि केवल बाहरी नेताओं की अपील या बड़े प्रचार अभियान पर्याप्त नहीं।

    क्षेत्रीय सक्रियता और जनता के बीच उपस्थिति ही सफलता की कुंजी बन चुकी है। प्रशांत कुमार पंकज, जो पूर्व मंत्री रामलखन महतो के पुत्र हैं, अपने पारिवारिक राजनीतिक पहचान के बावजूद इस बार जनता से जुड़ाव की कमी महसूस कर गए। अचानक टिकट मिलने और टीम समन्वय की कमी भी उनकी हार में अहम रही।

    2015 में आलोक कुमार मेहता ने आरएलएसपी के कुमार अनंत को 47,460 मतों से हराकर अपने विधायक जीवन की शुरुआत की थी। 2020 में उन्होंने भाजपा के शील कुमार राय को 23,268 वोटों से मात दी।

    2025 की यह जीत न केवल उनकी साख को और मजबूत करती है, बल्कि राजद के लिए भी रणनीतिक उपलब्धि है। इस बार यादव और कुशवाहा समुदाय के मतों में दिलचस्प एकजुटता देखी गई। चार कुशवाहा प्रत्याशियों के मैदान में होने के बावजूद मेहता को इस वर्ग का बड़ा समर्थन मिला। यादव और अल्पसंख्यक मतदाताओं की एकजुटता ने भी उनकी जीत को निर्णायक बना दिया।

    महिला मतदाताओं की भूमिका निर्णायक

    महिला मतदाताओं ने इस चुनाव में पहले से अधिक संख्या में हिस्सा लिया। जानकारी के अनुसार, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे मसलों पर आलोक मेहता की गंभीरता ने ग्रामीण महिलाओं को प्रभावित किया। नीतीश कुमार की राहत योजनाओं और महिला सशक्तिकरण नीतियों का परोक्ष असर राजद उम्मीदवार के पक्ष में गया। महिला वोटों की यह बढ़त मेहता की जीत का अंतर बढ़ाने में अहम साबित हुई।

    स्थानीय मुद्दों पर आधारित अभियान

    उजियारपुर सीट पर सड़क, सिंचाई, शिक्षा और स्वास्थ्य प्राथमिक मुद्दे रहे। एनडीए ने राष्ट्रीय नीतियों और विकास योजनाओं का हवाला देकर प्रचार किया, जबकि आलोक मेहता ने प्रत्येक पंचायत में जाकर जनसंपर्क किया। उनका अभियान साइलेंट लेकिन प्रभावशाली रहा, जहां उन्होंने आम मतदाताओं से सीधे संवाद को प्राथमिकता दी।

    दलसिंहसराय से उजियारपुर तक प्रस्तावित सड़क चौड़ीकरण, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति सुधारने की योजना और किसानों के लिए सिंचाई साधनों की चर्चा उनके भाषणों का केंद्र रही। इससे गांव-गांव में उनका भरोसा बढ़ा और मतदाता स्थानीय मुद्दों के प्रति सजग हुए।

    जनता की अपेक्षाएं और भविष्य का संकेत

    उजियारपुर की जनता ने इस परिणाम के माध्यम से यह स्पष्ट संदेश दिया है कि राजनीतिक निष्ठाओं से ज्यादा अब कामकाज और विश्वसनीयता मायने रखती है। लगातार तीसरी बार के विजेता के रूप में आलोक कुमार मेहता से अब क्षेत्रीय विकास, युवाओं के रोजगार और शिक्षा सुविधाओं में सुधार की दिशा में ठोस पहल की उम्मीदें और बढ़ गई हैं।

    एनडीए के लिए यह हार आत्ममंथन का अवसर है। प्रशांत कुमार पंकज के रूप में उन्हें एक युवा चेहरा मिला है, जो यदि क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहते हैं तो भविष्य में उनका राजनीतिक आधार मजबूत हो सकता है।उजियारपुर की यह जंग एक बार फिर यह साबित करती है कि बिहार की राजनीति में सिंहासन अब पटना या दिल्ली के गलियारों से नहीं, बल्कि गांवों और पंचायतों के जनादेश से तय होता है।