Baniapur Election 2025: बनियापुर की सियासत में भावनाओं का तूफान, सहानुभूति का दांव खेल रहे प्रत्याशी
बनियापुर विधानसभा क्षेत्र में चुनाव सहानुभूति और भावनाओं पर केंद्रित है। अशोक सिंह हत्याकांड फिर से चर्चा में है, जिसमें राजद और एनडीए एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। अन्य प्रत्याशी भी टिकट न मिलने या महिला होने के कारण सहानुभूति मांग रहे हैं। मतदाता अब भावनाओं के बजाय विकास और ईमानदारी पर ध्यान देने की बात कर रहे हैं।

केदारनाथ सिंह, चांदनी देवी और श्रवण कुमार महतो (फाइल फोटो)
राजू सिंह, बनियापुर (सारण)। बनियापुर विधानसभा क्षेत्र (Baniapur Assembly Seat Election 2025) में इस बार का चुनावी मुकाबला केवल नारे और वादों का नहीं, बल्कि सहानुभूति और भावनाओं की लहर पर सवार नजर आ रहा है। यहां राजनीतिक समीकरण अब तर्क और मुद्दों से आगे बढ़कर संवेदना की जंग बन गए हैं। एक ओर राजद समर्थित अशोक सिंह की हत्या का दर्द फिर से उभर आया है, वहीं दूसरी ओर विरोधी पक्ष इसे राजनीतिक साजिश बताकर निर्दोषता की दुहाई दे रहा है।
यह पूरा विवाद 1995 की उस घटना से जुड़ा है जब मशरक के तत्कालीन विधायक अशोक सिंह की पटना आवास पर हत्या कर दी गई थी। तीन दशक बाद भी यह मामला बनियापुर की राजनीति का केंद्र बना हुआ है। गांव की चौपालों से लेकर इंटरनेट मीडिया तक आज भी लोग उसी घटना की चर्चा करते हैं।
राजद समर्थित प्रत्याशी चांदनी देवी के समर्थक इस हत्या को राजनीतिक षड्यंत्र बताते हुए जनता से न्याय की अपील कर रहे हैं। उनका कहना है कि एक ईमानदार नेता की आवाज को साजिश के तहत दबा दिया गया। वे जनता से भावनात्मक अपील कर रहे हैं कि अब समय आ गया है कि इस अन्याय का जवाब वोट से दिया जाए।
वहीं एनडीए समर्थित केदारनाथ सिंह के गुट का कहना है कि अशोक सिंह हत्याकांड का बेवजह राजनीतिकरण किया जा रहा है। उनका दावा है कि इस मामले में उनके भाई निर्दोष हैं और उन्हें राजनीतिक रंजिश का शिकार बनाया गया है। उनका कहना है कि हत्या के वक्त बिहार में राजद की सरकार थी, फिर भी उन्हें फंसाया गया। यह राजनीति का सबसे बड़ा छल था। इस बयानबाजी से एनडीए खेमे में भी सहानुभूति की दूसरी लहर उठ खड़ी हुई है, जो साजिश के शिकार के रूप में अपनी बात जनता के सामने रख रही है। यह बयान भी जनता के बीच सहानुभूति की दूसरी परत बन रही है।
इसी भावनात्मक माहौल में अन्य प्रत्याशी भी अपनी सहानुभूति की कहानी लेकर मैदान में उतर आए हैं। जनशक्ति जनता दल की महिला प्रत्याशी पुष्पा सिंह का कहना है कि उन्हें महिला होने के कारण जनसुराज पार्टी से टिकट नहीं दिया गया। वह इसे अपने सम्मान और न्याय की लड़ाई बताते हुए जनता से समर्थन मांग रही हैं।
वहीं श्रवण कुमार महतो, जो पहले वीआईपी पार्टी से टिकट की उम्मीद लगाए बैठे थे, अब जनसुराज पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। उनका कहना है कि पिछली बार टिकट बेचा गया था, इसलिए वे इस बार जनता से राजनीतिक बेईमानी के खिलाफ न्याय की गुहार लगा रहे हैं। इसी तरह निर्दलीय प्रत्याशी रवि प्रकाश कुशवाहा भी उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी से टिकट नहीं मिलने को अन्याय बताकर भावनात्मक रूप से जनता के सामने अपनी बात रख रहे हैं।
चारों ओर से उठ रहे सहानुभूति कार्ड के इस माहौल में अब बनियापुर की चुनावी लड़ाई भावनाओं की जंग बन चुकी है। जहां पहले गोलियों और नारों का दौर होता था, वहीं अब आंसुओं और आरोपों का सैलाब उमड़ पड़ा है। हालांकि, आम मतदाता अब केवल भावनाओं में बहने के बजाय विवेक का परिचय दे रहा है। लोग कह रहे हैं कि अब समय आ गया है जब वोट किसी की सहानुभूति या पीड़ा पर नहीं, बल्कि काम, विकास और ईमानदारी के आधार पर पड़ेगा। यही समझदारी इस बार बनियापुर की असली ताकत बन सकती है।

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