Sonpur Mela: शाम ढलते ही जवां हो उठती है मेला नगरी, थिएटरों में खूब लग रहा ग्लैमर का तड़का
सोनपुर मेला, एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला, शाम होते ही जवां हो उठता है। थिएटरों में ग्लैमर का तड़का लगने से दर्शकों की भीड़ उमड़ रही है। मेले में मनोरंजन और उत्साह का माहौल है, जहाँ लोग कार्यक्रमों का आनंद ले रहे हैं।

सोनपुर मेले में दिख रहे संस्कृति के विविध रंग। जागरण
संवाद सूत्र, नयागांव (सारण)। दिन में आस्था, परंपरा और लोकजीवन की समृद्ध झलक दिखाने वाला हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला रात होते ही मानो एक नए शहर में बदल जाता है!
एक ऐसी ‘मनोरंजन नगरी’, जहां कदम-कदम पर रोशनी, संगीत और धमाकेदार मंचीय प्रदर्शन दर्शकों को बांधे रखते हैं। युवाओं के ठहाकों, तालियों और हूटिंग से रातें यूं गूंजती हैं जैसे मेला नहीं, कोई विशाल नाइट-फेस्टिवल चल रहा हो।
इस बार मेले के छह बड़े थिएटर लगाए गए हैं। थियेटरो ने दर्शकों की धड़कनें बढ़ा रखी हैं। नखास में गुलाब विकास, इंडिया थिएटर और शोभा सम्राट थिएटर के बाहर शाम ढलने से पहले ही भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ता है।
शाम होते ही पहुंचने लगती युवाओं की भीड़
गज ग्राह चौक के पास पायल एक नजर थिएटर में दर्शक देर रात तक रोशनी और तालियों की धुन पर थिरकते रहते हैं।मंच पर ग्रुप डांस की धमाकेदार एंट्री, रंग-बिरंगी पोशाकें, धुआं, फ्लैशलाइट और तेज बीट्स मिलकर ऐसा माहौल बना देते हैं कि हर उम्र का दर्शक तालियों में खो जाता है।
उद्घोषक जब माइक पर चिल्लाते हैं, सावधान! अगला धमाका शुरू होने वाला है तो भीड़ में मानो नई ऊर्जा भर जाती है।
लेकिन सोनपुर मेला की रातें हमेशा ऐसी नहीं थीं। कभी यही इलाका लोककलाओं की आत्मा हुआ करता था। नगाड़ों की थाप, घुंघरुओं की झंकार, ठुमरी-दादरा और नौटंकी के संवाद दूर-दूर तक गूंजते थे।
समय के साथ बदला मनोरंजन का चेहरा
समाजसेवी शत्रुघ्न कुमार पुरानी यादें ताजा करते हुए कहते हैं, सोनपुर मेला का थिएटर कभी कला की पाठशाला थी। आज के शोर में वो आत्मा कहीं खो गई है।
फिर भी, यह सच है कि बदलते समय के साथ मनोरंजन का चेहरा भी बदला है। आज दर्शक पारंपरिक गायन से ज्यादा रोशनी, तेज संगीत और ग्रुप परफॉर्मेंस के रोमांच को पसंद कर रहे हैं।
मंच पर 40–50 कलाकारों का एक साथ थिरकना, लाइट इफेक्ट्स और DJ ट्रैक्स युवा पीढ़ी के लिए आकर्षण का मुख्य केंद्र बन चुके हैं।
इस बार ठंड कम होने से रात की भीड़ और चहल-पहल में खूब इजाफा हुआ है। हर थिएटर देर रात तक खचाखच भरा दिखता है, और मेला के गलियारों में गुज़रते लोग भी इन रंगमंचों की चमक और आवाज़ों से खुद को रोक नहीं पाते।

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